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क्या है संचार साथी ऐप विवाद, जानें विपक्ष क्यों कर रहा है इसका विरोध?
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Tuesday, December 2, 2025
Last Updated On: Tuesday, December 2, 2025
संचार मंत्रालय के नए आदेश ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया है. अब भारत में बिकने वाले हर नए स्मार्टफोन में ‘संचार साथी ऐप’ पहले से इंस्टॉल होगा, जिसे हटाया भी नहीं जा सकेगा. सरकार इसे सुरक्षा का बड़ा कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे नागरिकों की निजता पर हमला और सरकारी निगरानी बढ़ाने की कोशिश मान रहा है. ऐप क्या करता है, विवाद क्यों बढ़ा और दोनों पक्ष क्या कह रहे हैं, जानें इस रिपोर्ट में.
Authored By: Ranjan Gupta
Last Updated On: Tuesday, December 2, 2025
Sanchar Sathi App Controversy 2025: देश में मोबाइल सुरक्षा को मजबूत बनाने के नाम पर शुरू हुआ ‘संचार साथी ऐप’ का कदम अब एक बड़े राजनीतिक विवाद में बदल गया है. केंद्र सरकार ने आदेश जारी करते हुए सभी स्मार्टफोन कंपनियों को अपने नए हैंडसेट में यह ऐप अनिवार्य रूप से इंस्टॉल करने को कहा है. पुराने फोन में भी इसे अपडेट के जरिए जोड़ने की तैयारी है. सरकार का दावा है कि यह ऐप चोरी, नकली IMEI, फर्जी कॉल और साइबर धोखाधड़ी पर रोक लगाने में मदद करेगा. लेकिन विपक्ष का आरोप है कि यह कदम नागरिकों की निजता पर सीधा हमला और सरकारी निगरानी बढ़ाने की कोशिश है. सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियों के बीच यह विवाद और भी गंभीर हो गया है. आखिर यह ऐप है क्या, सरकार ने ऐसा आदेश क्यों दिया, और विपक्ष इसे खतरनाक क्यों बता रहा है? आइए समझते हैं पूरा मामला.
क्या है ‘संचार साथी ऐप’?
‘संचार साथी ऐप’ सरकार का नया सुरक्षा टूल है. इस ऐप की मदद से कोई भी व्यक्ति अपने चोरी या खोए हुए मोबाइल को तुरंत ब्लॉक कर सकता है. फोन ब्लॉक होते ही वह चाहे जहां इस्तेमाल हो, एजेंसियां उसकी लोकेशन आसानी से पकड़ सकती हैं. ऐप में फर्जी कॉल, नकली SMS और गलत व्हाट्सऐप मैसेज की रिपोर्ट करने की सुविधा भी है. इसके अलावा, कोई भी उपयोगकर्ता अपने नाम पर कितने मोबाइल नंबर रजिस्टर्ड हैं, यह भी तुरंत चेक कर सकता है.
सरकार का दावा है कि ऐप का सबसे अहम फीचर KYM है. यह फोन की असलियत बताता है और जांचता है कि IMEI नंबर असली है या फर्जी. सरकार का कहना है कि नकली IMEI का इस्तेमाल अक्सर धोखाधड़ी और अवैध गतिविधियों में होता है. ऐसे में यह ऐप लोगों को साइबर फ्रॉड से बचा सकता है और मोबाइल सुरक्षा को पहले से ज्यादा मजबूत बना सकता है.
सरकार ने क्या आदेश जारी किया है?
मंत्रालय ने ऐपल, सैमसंग, वीवो, ओप्पो सहित सभी कंपनियों को आदेश दिया है कि वे अपने सभी नए स्मार्टफोन में संचार साथी ऐप पहले से इंस्टॉल करके बेचें. पुराने स्मार्टफोन को नए अपडेट के साथ यह सुविधा देनी होगी. कंपनियों को इसके लिए 90 दिन का समय दिया गया है. बड़ी बात यह है कि उपयोगकर्ता इस ऐप को न तो हटा सकेंगे और न ही इसमें कोई बदलाव कर सकेंगे.
ऐप को लेकर विवाद क्यों बढ़ रहा है?
सरकार के आदेश के बाद बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. विपक्ष का आरोप है कि यह आदेश लोगों की निजी जिंदगी में दखल देने जैसा है. शिवसेना (UBT) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे “बिग बॉस जैसी निगरानी” बताया. उनका कहना है कि सरकार शिकायत प्रणाली मजबूत करने के बजाय निगरानी बढ़ाने की कोशिश कर रही है. वहीं,
प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि धोखाधड़ी की रिपोर्ट करने और हर नागरिक की फोन गतिविधि पर नजर रखने के बीच बहुत पतली रेखा होती है. उन्होंने कहा, साइबर सुरक्षा जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सरकार को लोगों के फोन में झांकने का अधिकार मिल जाए. किसी आम नागरिक को यह पसंद नहीं आएगा.
अधिकारियों का क्या कहना है?
आईटी मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि यह कदम नागरिकों को फर्जी और अवैध डिवाइस से बचाने के लिए है. लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या सुरक्षा के नाम पर गोपनीयता से समझौता किया जा सकता है? विवाद इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल प्राइवेसी पर कड़ा रुख अपनाया है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ऐप का इस्तेमाल निगरानी के लिए होता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हो सकता है, जो जीवन और निजी स्वतंत्रता का अधिकार देता है.
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