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Rupee slowdown: दो साल में 80 से 86, आखिर सरकार क्यों नहीं लगा पा रही रुपये पर लगाम
Rupee slowdown: दो साल में 80 से 86, आखिर सरकार क्यों नहीं लगा पा रही रुपये पर लगाम
Authored By: Suman
Published On: Tuesday, January 14, 2025
Last Updated On: Tuesday, January 14, 2025
रुपया पिछले कई साल से ढलान की ओर है और गिरावट के नित नए रिकॉर्ड बना रहा है। करीब दो साल में ही रुपया डॉलर के मुकाबले 80 से 86 तक चला गया है। जनवरी महीने में ही रुपया 1 फीसदी से ज्यादा गिर चुका है। अब जानकार यह अनुमान लगा रहे हैं कि रुपया जल्द ही 87 पार जा सकता है।
Authored By: Suman
Last Updated On: Tuesday, January 14, 2025
Rupee slowdown: भारतीय रुपया पिछले कई साल से ढलान की ओर है और गिरावट के नित नए रिकॉर्ड बना रहा है। करीब दो साल में ही रुपया डॉलर के मुकाबले 80 से 86 तक चला गया है। ऐसे में आम आदमी के मन में सवाल उठता है कि आखिर सरकार इस पर रोक क्यों नहीं लगा पा रही क्या है रुपये की गिरावट की वजहें आइए इसे समझते हैं.
सबसे पहले तो रुपये की 80 से 86 तक की यात्रा को देखते हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो सितंबर 2022 में डॉलर (Dollar) के मुकाबले रुपया 80 से 81 के बीच में था। इसके बाद इसके बाद यह अक्टूबर 2022 में 82 और 83 पार हो गया। इसके बाद इसमें काफी स्थिरता रही और फिर इसके 84 पार पहुंचने में दो साल लग गए। नवंबर 2024 में रुपया 84 पार हुआ लेकिन अगले एक ही महीने यानी दिसंबर 2024 में रुपया 85 पार हो गया। 19 दिसंबर 2024 को रुपया 85 पार हुआ था, इसके एक महीने ही कम समय में रुपया 86 पार हो गया।
रुपये की गिरावट से अर्थव्यवस्था और खासकर आयातकों (Importers) को काफी नुकसान होता है। लेकिन इस पर अंकुश लगाने का काम सीधे सरकार नहीं करती बल्कि इसका जिम्मा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को सौपा गया है। रिजर्व बैंक समय-समय पर कई तरह के कदम उठाते हुए रुपये पर अंकुश लगाने का काम करता है। लेकिन हालात को देखते हुए रिजर्व बैंक कई बार इस मामले में काफी ढील भी दे देता है। जैसे कि अक्टूबर 2022 से नवंबर 2024 में रिजर्व बैंक ने काफी सख्ती बरतते हुए रुपये पर काफी अंकुश रखा। लेकिन नवंबर 2024 के बाद रिजर्व बैंक उतनी सख्ती नहीं कर रहा और एक तरह से रुपये को ढील दे रखी है। रुपये पर अंकुश के लिए रिजर्व बैंक फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में हस्तक्षेप करता है और जरूरत के मुताबिक डॉलर की खरीद या बिक्री करता है।
सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपये में दो साल की सबसे बड़ी गिरावट आई और वह 86.58 के स्तर पर बंद हुआ था। मंगलवार को यह 86.57 के स्तर पर खुला और बाद में इसमें थोड़ी और मजबूती देखी गई। जनवरी महीने में ही रुपया 1 फीसदी से ज्यादा गिर चुका है। अब जानकार यह अनुमान लगा रहे हैं कि रुपया जल्द ही 87 पार जा सकता है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूसी कच्चे तेल पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं जिससे भारत का व्यापार घाटा बढ़ेगा और डॉलर की मांग बढ़ेगी। इससे रुपये पर और दबाव आएगा।
अमेरिकी डॉलर हो रहा मजबूत
रुपये की गिरावट की एक बड़ी वजह यह भी है कि अमेरिकी डॉलर मजबूत हो रहा है। छह प्रमुख मुद्राओें के मुकाबले डॉलर की ताकत दिखाने वाला डॉलर इंडेक्स दो साल के सर्वोच्च स्तर 109.72 तक चला गया है। अमेरिका में जॉब में ग्रोथ के उम्मीद से बेहतर आंकड़े आए हैं इससे वहां रेट कट की संभावना कमजोर पड़ी है और डॉलर में और मजबूती आई है। उधर कच्चे तेल का दाम बढ़ने से भारत की आयात लागत बढ़ती जा रही है। आयात पर ज्यादा डॉलर खर्च करने का मतलब यह है कि विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है। इन सब वजहों से रुपये पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
इन सबके बीच रिजर्व बैंक के हाथ थोड़े बंध जरूर गए हैं, लेकिन यह भी माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक जानबूझ कर रुपये को थोड़ी ढील दे रहा है ताकि रुपया अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं की तरह हो और थोड़ा प्रतिस्पर्धी बने।
जानकारों का मानना है कि इजरायल-हमास और रूस-यूक्रेन जंग और कई अन्य वजहों से जो वैश्विक हालात बने हैं उसमें रिजर्व बैंक के पास इसके अलावा बहुत कम रास्ते बचे हैं कि रुपये को धीरे-धीरे उसकी स्वाभाविक गति दी जाए। बहुत ज्यादा डॉलर की बिक्री या हस्तक्षेप करने से अर्थव्यवस्था में दूसरे तरह की समस्याएं पैदा होंगी।
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