शेयर बाजार रिफॉर्मर से FIR तक, माधबी पुरी बुच की हैरान करने वाली कहानी

शेयर बाजार रिफॉर्मर से FIR तक, माधबी पुरी बुच की हैरान करने वाली कहानी

Authored By: Suman

Published On: Monday, March 3, 2025

Updated On: Monday, March 3, 2025

माधबी पुरी बुच: शेयर बाजार सुधारक से FIR तक का सफर
माधबी पुरी बुच: शेयर बाजार सुधारक से FIR तक का सफर

Madhabi Puri Buch के कार्यकाल की शुरुआत एक रिफॉर्मर यानी सुधारक के रूप में हुई लेकिन उनके कार्यकाल के अंत में उनके ऊपर FIR तक हो गया. यही नहीं, अपने कार्यकाल के अंतिम दिन वह ऑफिस भी नहीं जा पाईं और उनका विदाई समारोह भी नहीं हुआ.

Authored By: Suman

Updated On: Monday, March 3, 2025

भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (SEBI) की पहली महिला प्रमुख रहीं माधबी पुरी बुच (Madhabi Puri Butch) की कहानी हैरान करने वाली है. उनके कार्यकाल की शुरुआत एक रिफॉर्मर यानी सुधारक के रूप में हुई लेकिन उनके कार्यकाल के अंत में उनके ऊपर FIR तक हो गया. यही नहीं, अपने कार्यकाल के अंतिम दिन वह ऑफिस भी नहीं जा पाईं और उनका विदाई समारोह भी नहीं हुआ.

अब मुंबई की एक स्पेशल कोर्ट ने शेयर बाजार में कथित जालसाजी और नियमों के उल्लंघन को लेकर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है. इस मामले में पांच अन्य लोग भी संदेह के घेरे में हैं.

उतार-चढ़ाव वाला कार्यकाल

उन्हें 1 मार्च 2022 को तीन साल के लिए सेबी का चेयरपर्सन बनाया गया था. माधबी पुरी बुच ने ऐसे समय में बाजार नियामक का पद संभाला था, जब रूस-यूक्रेन जंग शुरू होने के कारण शेयर बाजार में काफी उतार-चढ़ाव शुरू हुआ था. भारतीय जीवन बीमा निगम तब तक का सबसे बड़ा आईपीओ (LIC IPO) लाने की तैयारी कर रहा था. यानी उनके ही कार्यकाल में एलआईसी का सफल आईपीओ आया.

वह न केवल सेबी की पहली महिला चीफ थीं, बल्कि सबसे कम उम्र (57 साल) की प्रमुख भी थीं. यही नहीं, वह इस पद पर बैठने वाली निजी क्षेत्र से पहली अधिकारी भी थीं. हालांकि, इसके पहले वह करीब साढ़े चार साल तक सेबी में ही पूर्णकालिक सदस्य थीं.
वह पहली ऐसी प्रमुख भी थीं जिनको पूंजी बाजार का अनुभव था.

उन्हें फाइनेंशियल सेक्टर में काम करने का करीब तीन दशकों का अनुभव था. उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज और आईआईएम अहमदाबाद से पढ़ाई करने के बाद साल 1989 में ICICI बैंक में नौकरी शुरू की थी. इसके बाद वह ICICI Securities के सीईओ जैसे शीर्ष पद तक पहुंचीं.

उनका तीन साल का कार्यकाल काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा. उनके कई करीबियों का कहना है कि उनका जोर नियम बनाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता पर होता था. उन्होंने सेबी के नियम बनाने की प्रक्रिया में यह ध्यान रखा कि सभी पक्ष खुले और निडर तरीके से अपनी बात रखें.  वे डेटा और साइबर सुरक्षा पर खास जोर देती थीं. डेटा उनके पावर प्रजेंटेशन का ऑक्सीजन हुआ करता था.

अपने 100 दिन के शुरुआती कार्यकाल में उन्होंने सेबी में तेजी से कई बदलाव किए. उन्होंने सेबी के कामकाज में कॉरपोरेट संस्कृति, साइबर सुरक्षा पर जोर और टेक्नोलजी एवं डेटा के ज्यादा इस्तेमाल पर जोर दिया.

जब उन्होंने कार्यभार संभाला तो शेयर बाजार में T+2 क्लियरिंग होती थी यानी अगर कोई निवेशक शेयर बेचे तो उसे इसके दो दिन बाद अकाउंट में पैसा मिल जाता था. उन्होंने इसे कम करने का प्रयास किया और पहले T+1 और फिर T+0 क्लियरिंग प्रक्रिया अपनाई गई यानी अब शेयरों को बेचने पर उसी दिन पैसे मिल जाते हैं. T+0 प्रकिया चरबद्ध तरीके से लागू की जा रही है. रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शन (RPTs) बाजार के लिए चिंता का मसला तो था ही, माधबी पुरी बुच के लिए भी था. उन्होंने इसके लिए खुलासा मानकों को मजबूत करने पर जोर दिया.

उन्होंने सेबी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में ही उन्होंने साल 2018 में सहारा समूह को 14 हजार करोड़ रुपये निवेशकों को वापस करने के आदेश दिए थे.

विवादों से नाता

एनएसई को-लोकेशन घोटाले को लेकर एक संसदीय समिति ने उन्हें पूछताछ के लिए भी बुलाया. अगस्त 2024 में अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च (Hindenburg Research) की अदाणी समूह के बारे में आई रिपोर्ट ने भारतीय बाजार में बवाल मचा दिया. इसमें यह भी आरोप लगाया गया था कि माधबी बुच और उनके पति धवल बुच की ऐसी कई विदेशी कंपनियों में हिस्सेदारी है जो भारतीय बाजार में निवेश करते हैं. आरोप के मुताबिक ये कंपनियां अडानी समूह के शेयरों में हेर-फेर में भी संलिप्त थीं. बुच दंपती ने सारे आरोपों को खारिज करते हुए इसे चरित्र हनन का प्रयास बताया था. यही नहीं सितंबर 2024 में सेबी के करीब 1000 कर्मचारियों ने माधबी बुच के कामकाज के तरीके के विरोध में प्रदर्शन भी किया था.

बड़ी बेआबरू होकर निकलीं

28 फरवरी 2025 माधबी पुरी बुच के कार्यकाल का अंतिम दिन था. उन्हें सेवा विस्तार नहीं दिया गया. माधबी पुरी ​बुच का कार्यकाल का अंतिम दिन काफी चौंकाने वाला रहा. उन्हें फेयरवेल नहीं दिया गया और वे अंतिम दिन ऑफिस भी नहीं गईं. अंतिम दिन उन्होंने अपने घर से ही दफ्तर के सहयोगियों को ऑनलाइन मीटिंग में संबोधित किया. हालांकि एक अंग्रेजी अखबार का दावा है कि बुच को कोविड हो गया है, इसलिए वह दफ्तर नहीं गईं और उनका फेयरवेल बाद में होगा.

About the Author: Suman
सुमन गुप्ता एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो आर्थिक और राजनीतिक विषयों पर अच्छी पकड़ रखती हैं। कई पत्र—पत्रिकाओं के लिए पिछले दस साल से स्वतंत्र रूप से लेखन। राष्ट्रीय राजनीति, कोर इकोनॉमी, पर्सनल फाइनेंस, शेयर बाजार आदि से जुड़े उनके सैकड़ों रिपोर्ट, आर्टिकल प्रकाशित हो चुके हैं।
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