Kesari chapter 2 Movie Review : बड़े पर्दे पर ‘बेपर्दा’ हुए जलियांवाला बाग के गुनहगार, पढ़िये फिल्म का सबसे सटीक रिव्यू

Kesari chapter 2 Movie Review : बड़े पर्दे पर ‘बेपर्दा’ हुए जलियांवाला बाग के गुनहगार, पढ़िये फिल्म का सबसे सटीक रिव्यू

Authored By: JP Yadav

Published On: Saturday, April 19, 2025

Updated On: Saturday, April 19, 2025

Kesari chapter 2 Movie Review : बड़े पर्दे पर 'बेपर्दा' हुए जलियांवाला बाग के गुनहगार, पढ़िये फिल्म का सबसे सटीक रिव्यू

Kesari chapter 2 Movie Review: अक्षय कुमार ने पर्दे पर सी. शंकरन नायर के किरदार को बखूबी निभाया है.आर माधवन भी अपने रोल में जंचे हैं.

Authored By: JP Yadav

Updated On: Saturday, April 19, 2025

Kesari chapter 2 Movie Review: देश प्रेम पर आधारित फिल्में देखने वालों के लिए अक्षय कुमार की ‘केसरी चैप्टर 2: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ जलियांवाला बाग’ सिनेमा के पर्दे पर दस्तक दे चुकी है. आजादी की लड़ाई में जलियांवाला बाग नरसंहार का भी अहम रोल रहा है. यह घटना आज भी लोगों को गुस्से से भर देती है. 13 अप्रैल, 1919 को हुआ यह नरसंहार इतिहास के पन्नों में काली स्याही में दर्ज है. इस घटना का जिक्र कई फिल्मों में प्रतीकात्मक हुआ है, लेकिन अक्षय कुमार ने ‘केसरी 2’ के जरिये इसे पर्दे पर उतारने की कोशिश की है. इसमें अक्षय ने सी शंकरन नायर की भूमिका निभाई है. जो जलियांवाला बाग के अपराधी जनरल डायर को सजा दिलाने की हरसंभल कोशिश करते हैं. सिनेमा हॉल में फिल्म चल रही है और यह दर्शकों को निर्भर करता है कि वो इसमें अक्षय कुमार को पास करते हैं या फिर फेल. केसरी चैप्टर-2 में अक्षय कुमार के साथ-साथ निर्देशक करण सिंह त्यागी भी अच्छी कोशिश करते हैं, लेकिन यह फिल्म केसरी के आसपास भी नहीं पहुंचती है.

शुरू के 20 मिनट और परगट सिंह

फिल्म की शुरुआत जलियांवाला बाग नरसंहार से शुरू होती है. इसमें परगट सिंह के किरदार को दिखाया गया है. वह अपनी मां और बहन के साथ जलियांवाला बाग आया है. उसके पिता मशहूर शायर किरपाल सिंह हैं. फायरिंग के दौरान दर्शकों को लगता है कि परगट ही फिल्म का नायक है. परगट में भगत सिंह की झलक नजर आती है. कृष्ण राव भी परगट सिंह के किरदार में छाप छोड़ते हैं। नरसंहार में अपनी मां और बहन को खोने वाले युवा और बहादुरी से इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले दिलेर के रूप में वह ध्‍यान खींचते हैं. यह किरदार जब तक फिल्म में है तब तक दर्शकों को इससे उम्मीद होती है. जैसे ही यह किरदार मरता है तो दर्शक मायूस हो जाते हैं. अगर इस किरदार को 10 से 15 मिनट और दिया जाता तो फिल्म कुछ और होती है. इस किरदार का जिक्र फिल्म के अंत तक होता है. सच बात तो यह है कि परगट सिंह को जो डॉयलॉग दिए गए हैं वो बेजोड़ हैं. अखबार वितरण पर यह किरदार सी. शंकरन नायर से कहता- सच छुट्टी पर कैसे जाएगा…

दिल को छू जाते हैं कई संवाद

इसके अलावा भी कई डॉयलॉग हैं जो दर्शकों के दिलों को छू जाते हैं. जनरल डायर… आपने जलियांवाला बाग में भीड़ को हटाने के लिए चेतावनी कैसे दी थी? क्या आपने उन पर आंसू गैस छोड़ी थी? क्या आपने हवा में गोलियां चलाई थीं? आपने बिना चेतावनी दिए भीड़ पर गोलियां चला दीं? आठ.. नौ.. ग्यारह महीने के बच्चे.. जिनकी छातियों में गोलियां लगी थीं। उनके हाथ में कौन से हथियार आपने देखे? उनके कड़े या फिर बंद मुट्ठी? हम क्राउन के खिलाफ नरसंहार का मुकदमा कर रहे हैं.

अक्षय ने की कोशिश

अक्षय कुमार पिछले कई सालों से देशभक्ति और सामाजिक विषयों पर फिल्म कर रहे हैं. इन फिल्मों में वह होरो तो बन जाते हैं, लेकिन कैरेक्टर को जीने में चूक जाते हैं. ‘केसरी चैप्टर 2: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ जलियांवाला बाग’ में भी यह है. अक्षय कुमार सी. शंकरन नायर का किरदार जीते हुए यह भूल जाते हैं कि वह साउथ इंडियन है. इस फिल्म में अक्षय कुमार को देखकर लगता है कि वह पंजाबी किरदार जी रहे हैं. निर्देशक करण सिंह त्यागी को यह ध्यान देना चाहिए था कि अक्षय कुमार अगर साउथ इंडियन किरदार सी. शंकरन नायर का किरदार जी रहे हैं तो बोली में जरूर आना चाहिए था. पेशा चाहे जो भी हो घर में हर शख्स अपनी मातृ भाषा में ही बातचीत करता है. अक्षय कुमार के साथ-साथ निर्देशक भी चूक जाते हैं. सबसे बड़ी खामी कि दर्शक पर्दे पर अक्षय कुमार को देखता है न कि सी. शंकरन नायर को. कुल मिलाकर अक्षय कुमार इस किरदार को निभाने में तो कामयाब रहे, लेकिन जीने में चूक गए. इससे अच्छा आर. माधवन को यह किरदार करने दिया जाता तो वह इसमें जान डाल देते. वह लुक में बहुत हद तक सी. शंकरन नायर लगते भी.

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मुख्य किरदार

अक्षय कुमार: सी. शंकरन नायर (भारतीय वकील)
अनन्या पांडे: दिलरीत गिल
आर. माधवन: नेविल मैककिनले (ब्रिटिश वकील)

कानून को लेकर रिसर्च अच्छी है

फिल्म देखने के दौरान दर्शकों के साथ-साथ क्रिटिक्स को भी लगता है कि इसमें कानून को लेकर रिसर्च अच्छी है. जिस मीडिया के जरिये अंग्रेजी शासन सी. शंकरन नायर को बदनाम करने की साजिश रचता है उससे ही सी. शंकरन नायर बाजी मार लेता है. फिल्म ‘केसरी चैप्टर 2’ के लिए सुमित सक्सेना ने चुन चुनकर संवाद गढ़े हैं. वहीं निर्देशक करण सिंह त्यागी ने अमृतपाल सिंह बिंद्रा के साथ लिखी पटकथा में चार चांद लगाए हैं. कहानी में अनन्या पांडे का भी एक किरदार है लेकिन वह बिल्कुल भी प्रभावित नहीं करतीं. अगर वह ना भी होतीं या कोई पुरुष वह किरदार करता तो अधिक अच्छा लगता. कृष राव ने परगट सिंह का छोटा सा किरदार शंकरन नायर की जिंदगी बदल देता है, जो काफी अहम है.

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किरदार का विद्रोह

फिल्म की शुरुआत में अपने मतलब के लिए सी. शंकरन नायर को अंग्रेजी सरकार प्रश्रय देती है. काउंसिल का सदस्य बनाती है. अचानक सी शंकरन नायर अंग्रेजी सरकार के खिलाफ खड़े हो जाते हैं. यह हृदय परिवर्तन प्रेमचंद की कहानियों में मिलता है. फिल्‍म की शुरुआत में कहानी की रफ्तार अधिक है. सी. शंकरन नायर (अक्षय कुमार) द्वारा क्रांतिकारी कृपाल सिंह (जयप्रीत सिंह) को दोषी ठहराने में मदद करने और जनरल रेजिनाल्ड डायर (साइमन पैस्ले डे) के खिलाफ मुकदमेबाजी के दौरान कहानी तेजी से चलकी है, लेकिन कहानी आकर्षण तब पैदा कर पाती है जब उनका सामना एंग्लो-इंडियन वकील नेविल मैककिनले (आर. माधवन) जैसे काबिल वकील से होता है.

हजम नहीं हुआ डरा सहमा डायर

जनरल डायर के रोल में साइमन पैस्ले डे ने कमाल का काम किया है. बचपन में हकलाने के लिए तंग किए जाने वाले ट्रॉमा से लेकर अपने पिता से विरासत में मिली भारतीयों के लिए घृणा- साइमन पैस्‍ले ने हर अंदाज को बड़े प्रभावी ढंग से पर्दे पर उतारा है. हैरत की बात यह है कि जनरल डायर बहुत डरा हुआ किरदार लगा है. शासन, प्रशासन और न्याय सब कुछ साथ है तो भी जनरल डायर का डर दर्शकों को भी समझ नहीें आता है. हो सकता है इसका मकसद दर्शकों की सहानुभूति बटोरना हो, लेकिन यह सही नहीं लगता है.

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न्याय प्रक्रिया में झोल

अंग्रेजी शासन के दौरान न्याय प्रक्रिया कटघरे में रही. भगत सिंह को कैसे तय समय से फांसी पर चढ़ाया गया. इसके साथ एकतरफा निर्णय सुनाया गया. यह सब इतिहास के पन्नों में दर्ज है. इस फिल्म में इसे बेहतरीन ढंग से दिखाया गया है. रिश्वत देना और जज को अपनी ओर करना. ऐसा लगता है कि जैसे यह सैकड़ों सालों से होता आया है.

About the Author: JP Yadav
जेपी यादव डेढ़ दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। वह प्रिंट और डिजिटल मीडिया, दोनों में समान रूप से पकड़ रखते हैं। अमर उजाला, दैनिक जागरण, दैनिक हिंदुस्तान, लाइव टाइम्स, ज़ी न्यूज और भारत 24 जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अपनी सेवाएं दी हैं। कई बाल कहानियां भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं. मनोरंजन, साहित्य और राजनीति से संबंधित मुद्दों पर कलम अधिक चलती है। टीवी और थिएटर के प्रति गहरी रुचि रखते हुए जेपी यादव ने दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक 'गागर में सागर' और 'जज्बा' में सहायक लेखक के तौर पर योगदान दिया है. इसके अलावा, उन्होंने शॉर्ट फिल्म 'चिराग' में अभिनय भी किया है।
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