दिल्ली विश्वविद्यालय के महर्षि कणाद भवन में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन
दिल्ली विश्वविद्यालय के महर्षि कणाद भवन में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन
Authored By: JP Yadav
Published On: Thursday, April 10, 2025
Updated On: Sunday, April 13, 2025
International Conference Biodiversity Conservation: सम्मेलन का आयोजन कालिंदी कॉलेज के भूगोल विभाग द्वारा हिमालय अध्ययन केंद्र दिल्ली विश्वविद्यालय के सहयोग से हुआ.
Authored By: JP Yadav
Updated On: Sunday, April 13, 2025
International Conference Biodiversity Conservation: विज्ञान, नीति और उद्देश्य के प्रभावशाली संगम के रूप में, दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत कलिंदी कॉलेज के भूगोल विभाग एवं सेंटर फॉर हिमालयन स्टडीज़ के संयुक्त तत्वावधान में, 8–9 अप्रैल 2025 को महार्षि कणाद भवन, विश्वविद्यालय एन्क्लेव में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन “बहु-डोमेन पारिस्थितिक तंत्रों में जैव विविधता संरक्षण, जलवायु लचीलापन एवं सतत विकास हेतु भू-स्थानिक नवाचार” का सफल आयोजन किया गया. इसमें 15 देशों और 60 से अधिक विश्वविद्यालयों-संस्थानों के विद्वानों ने भाग लिया. यह सम्मेलन डॉ. उषा कुमारी पाठक, सहायक प्राध्यापक, भूगोल विभाग, कलिंदी कॉलेज द्वारा संयोजित किया गया और प्रो. बी. डब्ल्यू. पांडेय, निदेशक, सेंटर फॉर हिमालयन स्टडीज़ के प्रेरणादायक नेतृत्व में संपन्न हुआ। इस अवसर पर पर्यावरण विज्ञान, भू-सूचना विज्ञान एवं नीति के कुछ वैश्विक अग्रणी विशेषज्ञों ने भाग लिया। इसकी सफलता में कालिन्दी कॉलेज की प्राचार्या प्रो. मीना चरान्दा की महती भूमिका रही.
15 देशों के विशेषज्ञ हुए शामिल
सम्मेलन में देश-विदेश के भूगोलवेत्ता, पर्यावरण वैज्ञानिक, शोधकर्ता और छात्र एकत्रित हुए, जिन्होंने हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकीय चुनौतियों के समाधान में भू-स्थानिक तकनीकों की भूमिका पर विचार-विमर्श किया. इस अवसर पर 15 देशों के विशेषज्ञों और 60 से अधिक विश्वविद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. सम्मेलन का आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह के संरक्षण में हुआ. इसमें प्रो. बलराम पाणि (डीन, कॉलेजेज़), प्रो. मंजू मुकुल कांबले (अध्यक्ष, कलिंदी कॉलेज गवर्निंग बॉडी), प्रो. मीना चरांदा (प्राचार्या, कलिंदी कॉलेज) और प्रो. बीडब्ल्यू पांडेय (निदेशक, हिमालय अध्ययन केंद्र) का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ.
प्रो. ब्रिज महाराज समेत कई विद्वानों ने रखे अपने विचार
सम्मेलन में प्रमुख वक्ताओं में प्रो. ब्रिज महाराज (दक्षिण अफ्रीका), प्रो. रिचर्ड जॉनसन (यूके), प्रो. वीके शर्मा (आईआईपीए), प्रो. पीके जोशी, और प्रो. कौशल शर्मा (जेएनयू) शामिल थे, जिन्होंने भू-स्थानिक विज्ञान, पारंपरिक ज्ञान और सतत विकास के बीच सामंजस्य पर अपने विचार रखे. प्रो. बीडब्ल्यू पांडेय की अग्रणी भूमिका रही. इस आयोजन के ज़रिये इन्होंने जलवायु अनुकूलन, सतत संतुलित विकास और भूस्थानिक नवाचार को नये आयाम प्रदान किए.
संवाद का प्रभावशाली मंच बना सम्मेलन
सम्मेलन की संयोजिका एवं कालिंदी कॉलेज की सहायक प्रोफेसर डॉ. उषा कुमारी पाठक ने कहा कि यह सम्मेलन अंतरविषयक संवाद का प्रभावशाली मंच बना, जिसने पृथ्वी के सतत भविष्य हेतु भू-स्थानिक बुद्धिमत्ता को केंद्र में रखते हुए शैक्षणिक सहयोग का नया मानक स्थापित किया. सम्मेलन का समापन भू-स्थानिक साक्षरता, नीति-संगत अनुसंधान, और पारिस्थितिकीय संरक्षण के प्रति संस्थागत संकल्प के साथ हुआ.
वैश्विक दृष्टिकोण, स्थानीय समझ
प्रो. रिचर्ड जॉनसन (यूके) ने हिमाचल प्रदेश और यूके जैसे आपदा संभावित क्षेत्रों में LiDAR और GIS जैसी तकनीकों के उपयोग से जुड़े वास्तविक उदाहरण साझा किए. प्रो. जॉनसन ने आपदा प्रबंधन में लाइव भू-स्थानिक निगरानी की आवश्यकता भी बताई. प्रो. बृज महाराज (साउथ अफ्रीका) ने कहा कि भारत के सतत विकास के लिए साउथ अफ्रीका के साथ मिलकर ऐसे भौगोलिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों को आयोजित करने की बहुत जरूरत है. प्रो. कौशल शर्मा (JNU) ने जैव विविधता ह्रास को बहु-विषयक दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता बताई और आगाह किया कि “पिछले 50 वर्षों में वैश्विक जैव विविधता में 69% की गिरावट आई है. उन्होंने “समावेशी विकास” की अवधारणा को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया.
दृष्टिकोण में तात्कालिकता की पुकार
सम्मेलन की शुरुआत प्रो. बलराम पानी, डीन ऑफ कॉलेजेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रेरक विचारों से हुई. उन्होंने कहा कि भू-स्थानिक तकनीकें आधुनिक भूगोल की आधारशिला हैं, जो हिमनदों के पीछे हटने और जैव विविधता के क्षरण जैसे गतिशील परिवर्तनों की सूक्ष्म समझ प्रदान करती हैं. कलिंदी कॉलेज की गवर्निंग बॉडी की अध्यक्ष प्रो. मंजु मुकुल कांबले ने ‘जलवायु चेतना के पंच स्तंभ’ प्रस्तुत किए और कहा कि पर्यावरणीय परिणाम नियति नहीं, बल्कि डिज़ाइन होते हैं.
जलवायु लचीलापन: एक विशेष विमर्श
“जलवायु लचीलापन और सतत विकास” विषय पर केंद्रित सत्र की अध्यक्षता प्रो. अनुराधा बनर्जी ने की. उन्होंने उत्तर-दक्षिण देशों के बीच अनुकूलन क्षमता के अंतर को रेखांकित किया और स्थानीय संदर्भ आधारित समाधान विकसित करने का सुझाव दिया। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की ओर से डॉ. शुभी मिश्रा ने “रेजीलिएंस ट्री” की कल्पना प्रस्तुत करते हुए शैक्षणिक संस्थानों और नीति-निर्माताओं के समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने जलवायु परिवर्तन को “पॉलीक्राइसिस” की तरह देखने की चेतावनी दी—अर्थात् एकाधिक संकटों का जटिल समुच्चय.
एक नवभौगोलिक चेतना की ओर
यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन मात्र एक अकादमिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह एक चेतना शिखर सम्मेलन था, जिसमें भूगोल की भूमिका को एक सतत, लचीले भविष्य के निर्माण में पुनः परिभाषित किया गया. छात्रों, शोधकर्ताओं, नीति-निर्माताओं और वैश्विक विशेषज्ञों की सक्रिय भागीदारी ने संवाद की ऐसी भूमि तैयार की, जहां से एक हरित, प्रबुद्ध और न्यायपूर्ण विश्व की कल्पना संभव हो सके. इस ऐतिहासिक आयोजन का संदेश स्पष्ट था—जलवायु कार्रवाई का समय अब है, और भू-स्थानिक विवेक ही हमारी दिशा और दृष्टि है.
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