कोविशील्ड वैक्सीन लगाने वाले भारतीयों को घबराने की जरूरत नहीं

कोविशील्ड वैक्सीन लगाने वाले भारतीयों को घबराने की जरूरत नहीं

Authored By: गुंजन शांडिल्य

Published On: Wednesday, May 1, 2024

Updated On: Wednesday, February 5, 2025

covisheld vaccine lagane wale bharatiyo ko ghabrane ki jarurat nahi
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भारत सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञों की एक कमिटी ने मई 2022 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 170 करोड़ कोविशील्ड लेने वाले लोगों में से केवल 254 लोगों ने वैक्सीन लेने के बाद तकलीफ होने की बात बताई थी। यह मात्र 0.00002 प्रतिशत है।

Authored By: गुंजन शांडिल्य

Updated On: Wednesday, February 5, 2025

कोरोना महामारी के बाद स्कूल के बच्चों से लेकर शारीरिक रूप से स्वस्थ युवाओं का अचानक हार्ट अटैक से हो रही मौत ने चिकित्सा विज्ञान को झकझोर कर रख दिया। विशेषज्ञ इसकी जांच में जुट गए। आम लोगों ने इसे कोविड-19 का दुष्प्रभाव माना। लेकिन अब कहा जा रहा है कुछ मामलों में कोरोना वैक्सीन ‘कोविशील्ड’ का यह साइड इफेक्ट हो सकता है। ऐसा कोविशील्ड बनाने वाली ब्रिटिश कंपनी एस्ट्राजेनेका ने वहां की कोर्ट में स्वीकारा है। हालांकि भारत में अभी तक इसका कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।

adar poonawalla CEO of the Serum Institute of India

आंकड़ों पर ध्यान दें तो भारत में करीब 2 अरब 21 करोड़ कोविड वैक्सीन लोगों को लगाए गए हैं। यहां करीब 93 प्रतिशत आबादी वैक्सीन के दोनों डोज ले चुके हैं। यदि भारत में कोविशील्ड की बात करें, यहां कुल 2 अरब 21 करोड़ डोज में करीब 1 अरब 70 करोड़ लोगों को कोविशील्ड की डोज लगी है। जहां तक भारत में कोविशील्ड के साइड इफेक्ट की बात हैं तो भारत सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञों की कमिटी ने मई 2022 में एक रिपोर्ट सरकार को सौंपी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 170 करोड़ कोविशील्ड लेने वाले लोगों में से केवल 254 लोगों ने वैक्सीन लेने के बाद तकलीफ होने की बात बताई या फिर कोविन एप पर दर्ज करवाई थी।

जिन लोगों ने तकलीफ की बात बताई या दर्ज करवाई उन्हें उसी दौरान चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराया गया। उन सभी की समस्याएं दूर हो गई थी। सब लोग पूर्णतः स्वस्थ हो गए थे। स्वास्थ्य तकलीफ बताने वालों की संख्या का प्रतिशत देखें तो वह न के बराबर है। यह 0.00002 प्रतिशत है। जबकि वैक्सीन लगाने से लाखों लोगों की जान बचाई जा सकी है। वहीँ भारत में कोविशील्ड के साइड इफेक्ट से अभी तक किसी की जान नहीं गई है।

एम्स नईदिल्ली में हार्ट विभाग के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर अमरिंदर सिंह मलही भी इसी ओर इशारा करते हैं। वे कहते हैं, ‘कोरोना के समय हो रहे वैक्सीनेशन को याद करें तो सभी को याद आएगा कि वैक्सीन लगने के बाद सेंटर पर सभी कुछ समय रुकने को बोला जाता था। कोई तकलीफ नहीं होने के बाद उन्हें जाने को कहा जाता था। कुछ दिनों तक फोन से वैक्सीनेटेड लोगों से पूछताछ किया जाता था। यह सब उसी प्रोटोकोल का हिस्सा था। भारत में कोविड वैक्सीनेशन प्रोग्राम बहुत ही बेहतर तरीके से चलाया गया है।’

दरअसल, कोविशील्ड वैक्सीन का ईजाद ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने मिलकर किया था। उसके बाद इसका निर्माण पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने किया था। ब्रिटेन के कोर्ट में कोविशील्ड वैक्सीनेशन के दुष्प्रभाव के मामले की सुनवाई हो रही थी। इसी सुनवाई के दौरान एस्ट्राजेनेका ने स्वीकार किया है कि रेयर मामलों में थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के साथ थ्रोम्बोसिस (टीटीएस) की समस्या हो सकती है। इससे खून का थक्का जमना, खून में प्लेटलेट्स का कम होना, पैरों में सूजन, सांस लेने में तकलीफ आदि समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन वहां भी इस तरह के बहुत कम मामले सामने आए हैं।

इस पर सीरम इंस्टीट्यूट ने भी बयान दिया है। सीरम का कहना है कि भारत में टीटीएस का एक भी मामला सामने नहीं आया है। इसलिए यहां घबराने की जरुरत नहीं है। सीरम का यह भी कहना है कि कोर्ट में ऐसे रेयर साइड इफेक्ट के मामले पहले भी आए हैं।

गुंजन शांडिल्य समसामयिक मुद्दों पर गहरी समझ और पटकथा लेखन में दक्षता के साथ 10 वर्षों से अधिक का अनुभव रखते हैं। पत्रकारिता की पारंपरिक और आधुनिक शैलियों के साथ कदम मिलाकर चलने में निपुण, गुंजन ने पाठकों और दर्शकों को जोड़ने और विषयों को सहजता से समझाने में उत्कृष्टता हासिल की है। वह समसामयिक मुद्दों पर न केवल स्पष्ट और गहराई से लिखते हैं, बल्कि पटकथा लेखन में भी उनकी दक्षता ने उन्हें एक अलग पहचान दी है। उनकी लेखनी में विषय की गंभीरता और प्रस्तुति की रोचकता का अनूठा संगम दिखाई देता है।
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