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क्या होता है Air Defence System, जिसने पाकिस्तान के नापाक इरादे को किया नाकाम?
क्या होता है Air Defence System, जिसने पाकिस्तान के नापाक इरादे को किया नाकाम?
Authored By: सतीश झा
Published On: Friday, May 9, 2025
Last Updated On: Friday, May 9, 2025
भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उसकी सुरक्षा व्यवस्था अभेद्य है. हाल ही में पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमा में की गई घुसपैठ की कोशिश को भारत की Air Defence System (हवाई रक्षा प्रणाली) ने नाकाम कर दिया. यह प्रणाली दुश्मन के किसी भी हवाई हमले को समय रहते पहचानकर उसे निष्क्रिय करने में सक्षम है. आखिर क्या होती है यह Air Defence System? यह कैसे देश की सुरक्षा में निभाती है अहम भूमिका? आइए जानते हैं विस्तार से.
Authored By: सतीश झा
Last Updated On: Friday, May 9, 2025
Air Defence System: भारत जैसे विशाल देश के लिए हवाई रक्षा प्रणाली (Air Defence System) बेहद अहम है. इसके पास न केवल लंबे समुद्री और थल सीमाएं हैं, बल्कि दो परमाणु संपन्न शत्रु राष्ट्र – चीन और पाकिस्तान – भी सीमाओं पर मौजूद हैं. ऐसे में Air Defence System भारत की पहली सुरक्षा परत के रूप में काम करता है.
क्या है हवाई रक्षा प्रणाली?
हवाई रक्षा प्रणाली एक अत्याधुनिक और जटिल तकनीकी ढांचा है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य दुश्मन के लड़ाकू विमान, मानवरहित ड्रोन (UAVs) या मिसाइलों जैसे हवाई खतरों को पहचानकर उन्हें निष्क्रिय करना होता है.
कैसे काम करती है यह प्रणाली?
इस प्रणाली के तीन मुख्य हिस्से होते हैं, जो एक-दूसरे से जुड़े होते हैं:
- रडार और सेंसर सिस्टम: यह आकाश में किसी भी संदिग्ध वस्तु की गतिविधियों को पकड़ता है और उसकी जानकारी तुरंत नियंत्रण केंद्र तक पहुंचाता है.
- नियंत्रण और कमांड सेंटर: यह वह जगह होती है जहां रडार से मिली जानकारी का विश्लेषण होता है और तत्काल निर्णय लेकर जवाबी कार्रवाई की योजना बनाई जाती है.
- रक्षात्मक साधन: इसमें शामिल होते हैं – जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलें (SAM). फाइटर जेट्स, तोपखाना और एंटी-एयरक्राफ्ट गन, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम, जो दुश्मन की संचार प्रणाली को बाधित करते हैं.
यह प्रणाली कैसे काम करती है, इसके क्या-क्या हिस्से होते हैं, और भारत किन-किन तकनीकों से लैस है :
पहला चरण: खतरे का पता लगाना
हवाई रक्षा प्रणाली का सबसे पहला काम किसी संभावित खतरे की समय पर पहचान करना होता है. यह काम मुख्य रूप से रडार सिस्टम के जरिए होता है, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियो तरंगें भेजता है. ये तरंगें किसी वस्तु से टकराकर लौटती हैं, जिससे रडार यह तय करता है कि वह वस्तु कितनी दूर, कितनी तेज और किस दिशा में है. कुछ मामलों में जब खतरा अत्यधिक दूरी से आता है, जैसे अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM), तब उपग्रहों की मदद भी ली जाती है.
दूसरा चरण: नजर रखना (Tracking)
सिर्फ खतरे की पहचान काफी नहीं है, उस पर लगातार सटीक निगरानी भी जरूरी है. इसके लिए रडार के साथ-साथ इन्फ्रारेड कैमरा, लेज़र रेंजफाइंडर और अन्य सेंसर मिलकर काम करते हैं. आधुनिक हवाई रक्षा प्रणाली एक साथ कई खतरों को पहचान और ट्रैक कर सकती है — जिनमें कभी-कभी अपने ही विमान भी शामिल हो सकते हैं.
तीसरा चरण: प्रतिरोध करना (Engage/Neutralize)
जब खतरे की पहचान और ट्रैकिंग हो जाती है, तब आता है उसे निष्क्रिय करने का समय. खतरे की प्रकृति, दूरी, गति और दिशा के आधार पर यह तय किया जाता है कि किस हथियार प्रणाली का उपयोग होगा. यह पूरा ऑपरेशन एक प्रभावी कमांड, कंट्रोल और कम्युनिकेशन (C3) प्रणाली के जरिए संचालित होता है.
हवाई खतरे से निपटने के तरीके
जैसे ही खतरा सामने आता है, तेज़ गति से उड़ान भरने वाले फाइटर जेट्स उसे इंटरसेप्ट करते हैं. भारत के पास मिग-21 बाइसन, मिग-29, सुखोई Su-30MKI, तेजस और राफेल जैसे घातक विमान हैं.
सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें (SAMs)
ये हवाई रक्षा का सबसे शक्तिशाली और सामान्य तरीका हैं. भारत के पास तीन श्रेणियों की SAMs हैं. दीर्घ दूरी की प्रणाली – जैसे रूस निर्मित S-400. मध्यम दूरी की प्रणाली – जैसे ‘आकाश’ मिसाइल. छोटे रेंज की मैनपोर्टेबल प्रणाली (MANPADS) – सैनिक इसे कंधे पर रखकर चला सकते हैं.
इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम
ये दुश्मन की रडार और संचार प्रणाली को जाम या भ्रमित कर देते हैं. भारत ने अब कई उन्नत जमीन और हवा से संचालित ई-वारफेयर प्रणालियां विकसित कर ली हैं.