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ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल: भारत की सुरक्षा का अचूक हथियार
ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल: भारत की सुरक्षा का अचूक हथियार
Authored By: Nishant Singh
Published On: Friday, May 16, 2025
Last Updated On: Saturday, May 17, 2025
जब भारत की वैज्ञानिक प्रतिभा और रूस की तकनीकी विशेषज्ञता ने हाथ मिलाया, तब जन्म हुआ—ब्रह्मोस, वह मिसाइल जो न सिर्फ हवा को चीरती है, बल्कि दुश्मन के हौसलों को भी. ध्वनि से तीन गुना तेज़, रडार से लगभग अदृश्य और लक्ष्य पर सर्जिकल वार करने में माहिर, ब्रह्मोस आधुनिक युद्ध का शुद्ध रूप है. "फायर एंड फॉरगेट" तकनीक से लैस यह मिसाइल, एक बार दागी जाए तो फिर रुकती नहीं—सीधा अपने निशाने पर ही थमती है. हालिया ऑपरेशन सिंदूर में जब भारत ने इसका इस्तेमाल किया, तो पाकिस्तान की हवाई सुरक्षा प्रणाली घुटनों पर आ गई. अब दुनिया भर के देश इसकी क्षमताओं से चकित हैं—चाहे बात फिलीपींस की हो या वियतनाम की. ब्रह्मोस अब सिर्फ एक मिसाइल नहीं, बल्कि भारत की शक्ति और आत्मनिर्भरता की उड़ती पहचान बन चुकी है.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Saturday, May 17, 2025
BrahMos Missile: कल्पना कीजिए एक ऐसी मिसाइल की, जो पलक झपकते ही दुश्मन के दिल में उतर जाए, जिसकी आवाज हवा चीरती है और रफ्तार ऐसी कि रडार भी धोखा खा जाए. जी हां, हम बात कर रहे हैं भारत की “ब्रह्मोस मिसाइल” की, जिसने न सिर्फ भारत की सैन्य ताकत को नई ऊंचाई दी है, बल्कि अब यह विश्व भर के देशों के लिए एक आकर्षक हथियार बन चुकी है.
ब्रह्मोस मिसाइल: प्रमुख तकनीकी और रणनीतिक जानकारी
श्रेणी | विवरण |
---|---|
मिसाइल का प्रकार | सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल |
निर्माणकर्ता | भारत (DRDO) और रूस (NPOM) का संयुक्त उपक्रम |
गति (Speed) | मैक 2.8 – मैक 3 (2800–3000 किमी/घंटा) |
रेंज (Range) | 290–450 किमी (आधुनिक संस्करणों में बढ़ती क्षमता) |
वॉरहेड क्षमता | 200–300 किलोग्राम पारंपरिक विस्फोटक |
लॉन्च प्लेटफॉर्म | भूमि, समुद्र (जहाज व पनडुब्बी), और हवा (Su-30MKI जैसे फाइटर जेट्स) |
फ्लाइट एल्टीट्यूड | 10 मीटर (टर्मिनल) से 15 किमी (क्रूज़) |
रडार से बचाव | स्टील्थ तकनीक के कारण कम रडार हस्ताक्षर |
ऑपरेशन सिद्धांत | फायर एंड फॉरगेट |
कीमत (प्रति मिसाइल) | लगभग ₹34 करोड़ |
निर्यात देश | फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्राजील, सऊदी अरब, यूएई, थाईलैंड आदि |
ब्रह्मोस: नाम में ही छिपी है ताकत
जब पहली बार “ब्रह्मोस” नाम सुना गया, तो लोगों ने सोचा यह शायद भगवान ब्रह्मा से जुड़ा होगा. लेकिन असल में इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोक्सवा नदी से लिया गया है—ब्रहम + मोस = ब्रह्मोस. यह नाम भारत और रूस की सैन्य साझेदारी की एक अद्भुत मिसाल है, जो आज रणनीतिक दृष्टि से एक आदर्श मिसाइल का पर्याय बन चुकी है.
तकनीक, जो भविष्य को परिभाषित करती है
ब्रह्मोस सिर्फ एक मिसाइल नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी का वह अद्भुत संगम है, जो आने वाले युद्धों के स्वरूप को परिभाषित कर रहा है. यह दो-चरणीय सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है. पहले चरण में ठोस बूस्टर इसे हवा में बेहद तेज़ी से ले जाता है, और दूसरा चरण लिक्विड रैमजेट इंजन द्वारा इसे 3 मैक यानी ध्वनि की गति से तीन गुना रफ्तार पर ले आता है.
इसका मतलब है कि ब्रह्मोस 2800 से 3000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ती है. इस रफ्तार पर कोई भी मौजूदा सबसोनिक मिसाइल (जैसे टॉमहॉक) इसके सामने धीमी मालूम पड़ती है.
“फायर एंड फॉरगेट”: लक्ष्य न चूके, न रुके
ब्रह्मोस की एक और खासियत है इसका “फायर एंड फॉरगेट” सिद्धांत. यानी एक बार आपने इसे दाग दिया, फिर यह खुद ही अपने टारगेट तक पहुंचती है और सटीक निशाना लगाती है. इसके लिए ना आपको निर्देश देने की ज़रूरत है, ना निगरानी रखने की.
यह 200 से 300 किलोग्राम का पारंपरिक विस्फोटक ले जा सकती है. इसका क्रूज़िंग एल्टीट्यूड 15 किलोमीटर तक हो सकता है, जबकि टर्मिनल एल्टीट्यूड—यानी लक्ष्य पर वार करते समय—सिर्फ 10 मीटर होती है. यानी यह मिसाइल ज़मीन से इतनी नजदीक उड़ती है कि रडार भी पकड़ नहीं पाता.
ऑपरेशन सिंदूर: जब ब्रह्मोस ने गरज कर बताया
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने भारत को झकझोर कर रख दिया. जवाब में भारत ने 6 से 10 मई के बीच “ऑपरेशन सिंदूर” चलाया. इस अभियान के दूसरे चरण में, 10 मई को भारत ने करीब 15 ब्रह्मोस मिसाइलें पाकिस्तान के सैन्य और आतंकी ठिकानों पर दागीं. ये हमले इतने सटीक और तेज़ थे कि पाकिस्तान की हवाई रक्षा प्रणाली ठप हो गई.
डमी फाइटर जेट्स के जरिए पाकिस्तान को भ्रमित किया गया और जब वे तैयारी में जुटे, तब ब्रह्मोस ने आकाश को चीरते हुए दुश्मन के ठिकानों को तहस-नहस कर दिया. मुरीद, नूर खान, राफिकी और चुनियां जैसे अहम एयरबेस एक झटके में निशाने पर आ गए.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा—”अगर ब्रह्मोस की ताकत नहीं देखी, तो पाकिस्तान से पूछिए!”
इसलिए भारत ने एक ऐसा समाधान खोजा जो किफायती, तेज़ और प्रभावी हो – और यही समाधान है भार्गवास्त्र.
विशेषताएं जो इसे सबसे अलग बनाती हैं
- 3 गुना अधिक गति: ध्वनि की गति से तीन गुना तेज़
- 2.5 से 3 गुना अधिक रेंज: अन्य मिसाइलों की तुलना में
- 4 गुना अधिक सटीकता और सीकर रेंज
- 9 गुना अधिक गतिज ऊर्जा: यानी विनाशक ताकत
- कम रडार हस्ताक्षर: यानी रडार से बच निकलने की क्षमता
- सटीक लक्ष्य भेदन क्षमता: उन्नत गाइडेंस और सॉफ्टवेयर से लैस
एक मिसाइल, कई मंच
ब्रह्मोस की सबसे बड़ी खूबी इसकी बहु-प्लेटफ़ॉर्म लॉन्चिंग क्षमता है:
- जमीन से: मोबाइल लॉंचर के जरिए
- समुद्र से: नौसेना के युद्धपोतों से
- पनडुब्बियों से
- हवा से: सुखोई-30MKI जैसे फाइटर जेट्स से
इसलिए ब्रह्मोस दुश्मन की किसी भी दिशा से आ सकता है—जहां वो least expected हो.
ब्रह्मोस का वैश्विक प्रभाव
ब्रह्मोस अब सिर्फ भारत की ही नहीं रही. अब यह दुनिया भर के देशों की रक्षा जरूरतों का हिस्सा बनने जा रही है.
- फिलिपींस ने 3,225 करोड़ रुपये की मिसाइलें खरीदी हैं.
- वियतनाम ने चीन के बढ़ते प्रभाव के जवाब में 6,000 करोड़ रुपये का ऑर्डर दिया है.
- मलेशिया, थाईलैंड, ब्रूनेई जैसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश भी लाइन में हैं.
- ब्राज़ील, चिली, अर्जेंटीना और वेनेजुएला ने भी अपने तटीय इलाकों के लिए ब्रह्मोस में रुचि दिखाई है.
- मिडल ईस्ट और अफ्रीका के कई देश (जैसे सऊदी अरब, यूएई, दक्षिण अफ्रीका) भी इस मिसाइल को खरीदने की प्रक्रिया में हैं.
भारत की ताकत, भारत की पहचान
ब्रह्मोस सिर्फ एक हथियार नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की पहचान है. इसकी निर्माण प्रक्रिया में 50.5% हिस्सेदारी भारतीय कंपनियों की है. इसका मतलब है कि इसका निर्यात भारत के रक्षा क्षेत्र को आर्थिक रूप से भी मजबूत बना रहा है.
ब्रह्मोस—एक नाम, एक निशाना, विजय
ब्रह्मोस मिसाइल एक ऐसे युग की शुरुआत है, जहां युद्ध की परिभाषाएं बदल रही हैं. यह मिसाइल सिर्फ दुश्मन को हराने के लिए नहीं, बल्कि भारत की सैन्य, वैज्ञानिक और रणनीतिक शक्ति की पहचान बन चुकी है. ऑपरेशन सिंदूर इसका जीता-जागता उदाहरण है.
ब्रह्मोस ने साबित किया है कि जब तकनीक, संकल्प और रणनीति एक साथ चलते हैं, तो भारत न सिर्फ लड़ता है, बल्कि विजयी भी होता है.