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जब इनाम बना हथियार: भारत की सबसे बड़ी हंट स्टोरीज़
जब इनाम बना हथियार: भारत की सबसे बड़ी हंट स्टोरीज़
Authored By: Nishant Singh
Published On: Saturday, May 24, 2025
Last Updated On: Saturday, May 24, 2025
India's Most Wanted Criminals : भारत के सबसे खतरनाक मोस्ट वांटेड की कहानी किसी थ्रिलर से कम नहीं—यह उन चेहरों की दास्तां है जिन पर सरकार ने ₹1 करोड़ या उससे अधिक का इनाम रखा. बंदूक और विचारधारा की इस जंग में, कुछ मारे गए, कुछ अब भी फरार हैं. नक्सल आंदोलन की पृष्ठभूमि में इन इनामों ने एक अलग ही युद्ध छेड़ा—एक ऐसा युद्ध जो जंगलों की खामोशी में भी गूंजता है. वीरप्पन से लेकर गणपति तक, यह लेख उन्हीं चेहरों की खौफनाक कहानियाँ बयां करता है—जहां इनाम, सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि न्याय का प्रतीक बन जाता है.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Saturday, May 24, 2025
India’s Most Wanted Criminals : भारत की धरती पर कई ऐसी कहानियाँ लिखी गई हैं जो बंदूक और विचारधाराओं की जंग से जन्मी हैं. नक्सलवाद इसी संघर्ष का एक चेहरा है, जो दशकों से भारत के कुछ हिस्सों में खून, डर और चुनौती का पर्याय बना हुआ है. सरकार ने इस आंदोलन को रोकने के लिए कई प्रयास किए, जिसमें एक सबसे चर्चित रणनीति रही – इनामी घोषणा. यह लेख उन नक्सलाइट्स पर केंद्रित है, जिन पर ₹1 करोड़ या उससे अधिक का इनाम रखा गया है. इनमें कुछ अब इतिहास बन चुके हैं, तो कुछ की तलाश अभी भी जारी है.
नक्सली आंदोलन और इनामी घोषणाओं के पीछे की रणनीति
नक्सल आंदोलन की शुरुआत भले ही किसान और श्रमिकों के अधिकारों से हुई थी, लेकिन समय के साथ यह आंदोलन हिंसक रूप लेता गया. सरकार ने जब देखा कि बंदूक से विचार को दबाना मुश्किल हो रहा है, तो इनाम की घोषणा की रणनीति अपनाई गई – एक ऐसा तरीका जो पुलिस और सुरक्षा बलों को प्रेरणा देने के साथ-साथ आम जनता को भी सतर्क करता था.
तो आइए जानते हैं उन नक्सली चेहरों के बारे में, जिन पर ₹1 करोड़ या उससे अधिक का इनाम रहा:
₹1 करोड़ या उससे अधिक इनाम वाले नक्सलाइट्स का विवरण
क्रम | नाम / उपनाम | इनाम राशि (₹ करोड़) | संगठन / भूमिका | स्थिति | मुख्य गतिविधियाँ / स्थान | वर्ष / मुठभेड़ |
---|---|---|---|---|---|---|
1 | मुप्पाला लक्ष्मण राव (गणपति) | ₹3.6 | पूर्व महासचिव, CPI (माओवादी) | निष्क्रिय | आंध्र प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ | 2018 तक सक्रिय |
2 | नंबाला केशव राव (बसवराजू) | ₹1.5 | महासचिव, CPI (माओवादी) | मारा गया | नारायणपुर, दंतेवाड़ा, ओडिशा के जंगल | 21 मई 2025 |
3 | माधवी | ₹1.0 | दंडकारण्य विशेष जोनल कमेटी नेता | मारी गई | बस्तर, छत्तीसगढ़ | 2025 |
4 | प्रयाग मांझी (विवेक दा) | ₹1.0 | सेंट्रल कमेटी सदस्य, झारखंड | मारा गया | बोकारो, झुमरा, पारसनाथ पर्वत | 2025 |
5 | चालपति (जयराम रेड्डी) | ₹1.0 | केंद्रीय समिति सदस्य, CPI (माओवादी) | मारा गया | छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा | हाल ही |
6 | सुजाता | ₹1.0 | महिला कमांडर, बस्तर डिविजन | गिरफ्तार | पश्चिम बंगाल मूल, गिरफ्तार तेलंगाना में | हाल ही |
7 | मिसिर बिसरा | ₹1.0 | अलीस: भास्कर / सागर | फरार | झारखंड | सूची: 2024 |
8 | आसिम मंडल | ₹1.0 | अलीस: आकाश / तिमिर | फरार | झारखंड | सूची: 2024 |
9 | अनल दा | ₹1.0 | अलीस: तूफान / रमेश | फरार | झारखंड | सूची: 2024 |
10 | चमन | ₹1.0 | अलीस: लाम्बू / करमचंद हांसदा | फरार | झारखंड | सूची: 2024 |
मुप्पाला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति — ₹3.6 करोड़ का ऐतिहासिक इनाम
भारत के सबसे वांछित नक्सली नेताओं में शामिल गणपति, लंबे समय तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव रहा. वे 2018 तक इस संगठन के शीर्ष पर रहा और नक्सल रणनीति के मास्टरमाइंड कहा जाता था.
उस पर ₹3.6 करोड़ का इनाम घोषित किया गया था — यह अब तक का सबसे बड़ा इनाम था किसी भी नक्सली पर. हालांकि 2018 के बाद उनकी सक्रियता कम हुई और उनकी जगह नंबाला केशव राव ने ली.
नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू — ₹1.5 करोड़
2018 में जब गणपति ने माओवादी संगठन की कमान छोड़ी, तब नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू ने उसकी जगह ली. उन्हें नक्सल आंदोलन का “केंद्रीय स्तंभ” माना जाता था. 2010 के कुख्यात दंतेवाड़ा हमले समेत कई बड़े नक्सली हमलों की साजिशों के पीछे उसी का नाम सामने आया. छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के दुर्गम इलाकों में उसकी पकड़ बेहद मजबूत थी. उसके गिरफ़्तारी या मृत्यु पर सरकार ने ₹1.5 करोड़ का इनाम घोषित किया था. 21 मई 2025 को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जंगलों में सुरक्षाबलों के साथ एक भीषण मुठभेड़ में नंबाला मारा गया. इस मुठभेड़ में उसके साथ कई अन्य शीर्ष नक्सली भी ढेर किए गए. यह कार्रवाई सुरक्षा बलों की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक मानी गई, जिसने माओवादी संगठन की रीढ़ तोड़ दी. नंबाला का अंत इस बात का प्रतीक बन गया कि हिंसा के रास्ते पर चलने वालों का अंजाम तय होता है — खत्म या गिरफ्तार.
माधवी — ₹1 करोड़
माधवी दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी की नेता और सीपीआई (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी की सदस्य थी. वे संगठन में महिला नेतृत्व का प्रमुख चेहरा थी और बस्तर क्षेत्र में अनेक हमलों में सक्रिय भूमिका निभाती थी. उसके ऊपर ₹1 करोड़ का इनाम था. वे जंगल की युद्ध रणनीतियों में माहिर थी और संगठन के भीतर प्रशिक्षण और संचालन की जिम्मेदारी संभालती थी. 2025 की नारायणपुर मुठभेड़ में वे 27 अन्य नक्सलियों के साथ मारी गई. यह घटना माओवादियों के लिए एक बड़ा झटका था.
प्रयाग मांझी उर्फ विवेक दा — ₹1 करोड़
प्रयाग मांझी उर्फ विवेक दा झारखंड के बोकारो जिले के कुख्यात नक्सली था, जो 1980 के दशक से सक्रिय था. वह झारखंड-बिहार सीमा पर पारसनाथ और झुमरा जैसे इलाकों में दहशत का प्रतीक बन चुका था. उस पर 60 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज था, जिनमें पुलिस बल पर हमले, सरकारी संपत्ति को नुकसान और अपहरण जैसे संगीन आरोप शामिल थे. 2025 में सुरक्षाबलों के साथ एक मुठभेड़ में वह मारा गया. उसके मारे जाने से झारखंड में नक्सली गतिविधियों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई.
चालपति उर्फ जयराम रेड्डी — ₹1 करोड़
चालपति, जिनका असली नाम जयराम रेड्डी था, आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के निवासी था. वह सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति के सदस्य था और छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर विशेष रूप से सक्रिय था. वे नक्सली रणनीति और जंगल युद्ध कौशल के विशेषज्ञ माना जाता था. उन पर सरकार ने ₹1 करोड़ का इनाम घोषित किया था. हाल ही में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में वे मारा गया, जिससे माओवादी संगठन को रणनीतिक नुकसान पहुंचा.
सुजाता — ₹1 करोड़
सुजाता, जो पश्चिम बंगाल की निवासी है, बस्तर डिवीजन में सक्रिय महिला माओवादी कमांडर थी. वह महिला नक्सलियों को प्रशिक्षित करने और हमलों को अंजाम देने की योजनाओं में शामिल थी. कई वर्षों तक फरार रहने के बाद उन्हें तेलंगाना में गिरफ्तार किया गया. उस पर भी ₹1 करोड़ का इनाम था. सुजाता की गिरफ्तारी से यह स्पष्ट हुआ कि महिला नक्सली नेता भी माओवादी संगठनों की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
झारखंड पुलिस द्वारा जारी इनामी सूची (दिसंबर 2024)
झारखंड पुलिस ने दिसंबर 2024 में ₹1 करोड़ इनाम वाले नक्सलियों की सूची जारी की, जिनमें शामिल था:
- मिसिर बिसरा (अलीस भास्कर, सागर)
- आसिम मंडल (आकाश, तिमिर)
- अनल दा (तूफान, रमेश)
- चमन (लाम्बू, करमचंद हांसदा)
इन सभी पर नक्सली गतिविधियों में संलिप्तता और बड़े हमलों का आरोप था.
सरकार की रणनीति और परिणाम
2025 नक्सलवाद विरोधी अभियानों के लिए एक निर्णायक वर्ष रहा. तीन ऐसे शीर्ष नक्सली नेता मारे गए, जिन पर ₹1 करोड़ से अधिक का इनाम था. यह न केवल सुरक्षा बलों की ताकत और रणनीति का परिणाम है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अब नक्सल आंदोलन अपने ज़मीनी आधार को खो रहा है.
हालांकि, यह भी सच है कि छत्तीसगढ़, झारखंड और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के कुछ दुर्गम क्षेत्रों में यह विचारधारा अब भी दम तोड़ने से इनकार कर रही है. लेकिन यह तय है कि सरकार की सख्ती और नई रणनीतियों से इनकी कमर धीरे-धीरे टूट रही है.
वीरप्पन: एक कभी न भुलने वाला अध्याय
हालाँकि वीरप्पन नक्सली नहीं था, लेकिन उसके नाम का ज़िक्र ज़रूरी हो जाता है क्योंकि उस पर जो इनाम घोषित हुआ, उसने इनामी व्यवस्था की ऐतिहासिक नींव रखी. कूसे मुनीसामी वीरप्पन, दक्षिण भारत के जंगलों में दशकों तक सक्रिय रहा. चंदन और हाथी दांत की तस्करी, हत्या, और अपहरण – ये सब उसके पेशे का हिस्सा बन चुका था.
उस पर 184 हत्याओं का आरोप था, जिनमें बड़ी संख्या में पुलिस और वन विभाग के अधिकारी थे. उसे पकड़ने के लिए सरकारों ने मिलकर 100 करोड़ रुपये से ज़्यादा खर्च किए. 2004 में जब उन्हें मार गिराया गया, तब कर्नाटक सरकार ने एसटीएफ को ₹40 करोड़ का इनाम दिया – जो अपने आप में एक रिकॉर्ड था.
वीरप्पन: तस्करी और आतंक का दूसरा नाम
विवरण | जानकारी |
---|---|
पूरा नाम | कूसे मुनीसामी वीरप्पन |
जन्म-वर्ष | 1952 |
मृत्यु-वर्ष | 2004 (तमिलनाडु पुलिस के ऑपरेशन “कौवेरि” में मारा गया) |
क्षेत्रीय गतिविधियाँ | तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल की सीमाएँ |
मुख्य अपराध | चंदन और हाथी दांत की तस्करी, अपहरण, हत्या |
हत्या के आरोप | 184 (जिसमें कई पुलिस और वन अधिकारी शामिल) |
इनाम राशि | ₹40 करोड़ (कर्नाटक सरकार द्वारा STF को मुठभेड़ के बाद इनाम दिया गया) |
सरकार का कुल खर्च | ₹100 करोड़+ (वीरप्पन को पकड़ने के प्रयासों पर) |
ऑपरेशन नाम | ऑपरेशन कावेरि |
खास तथ्य | नक्सली नहीं थे, पर इनामी प्रणाली में ऐतिहासिक महत्व रखते हैं |
इनाम की भूमिका और आगे का रास्ता
इनाम की प्रणाली सिर्फ एक राशि नहीं, बल्कि एक प्रतीक है – यह दर्शाता है कि राज्य अब हिंसा और आतंक को सहन नहीं करेगा. वीरप्पन से लेकर गणपति तक, सरकार ने यह संदेश दिया है कि चाहे अपराधी कोई भी हो, कानून का हाथ बहुत लंबा होता है.
नक्सलवाद को खत्म करने की इस जंग में ₹1 करोड़ या उससे अधिक के इनाम वाले ये ‘नाराज़लाइट्स’ इतिहास में एक ऐसा अध्याय हैं, जो यह सिखाते हैं कि हिंसा का रास्ता चाहे जितना लंबा हो, अंत में वह अंधेरे में ही जाता है.