Operation Sindoor 2025: कैसे अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों का बड़ा सफाया हो रहा है?

Operation Sindoor 2025: कैसे अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों का बड़ा सफाया हो रहा है?

Authored By: सतीश झा

Published On: Monday, June 2, 2025

Last Updated On: Monday, June 2, 2025

भारतीय ध्वज की पृष्ठभूमि में “Operation Sindoor” टेक्स्ट और खून के धब्बे के साथ एक ज़ोरदार ग्राफिक, जिसमें नीचे लिखा है: “कैसे अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों का बड़ा सफाया हो रहा है.
भारतीय ध्वज की पृष्ठभूमि में “Operation Sindoor” टेक्स्ट और खून के धब्बे के साथ एक ज़ोरदार ग्राफिक, जिसमें नीचे लिखा है: “कैसे अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों का बड़ा सफाया हो रहा है.

भारत में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों के खिलाफ केंद्र सरकार के निर्देश पर चलाए जा रहे 'ऑपरेशन सिंदूर' (Operation Sindoor) के बाद देशभर में एक विशेष अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान के तहत अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान कर उन्हें उनके देश वापस भेजा जा रहा है. इस मुहिम में गुजरात सबसे आगे है, जहां बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ा गया और वापस भेजने की प्रक्रिया तेज़ की गई है.

Authored By: सतीश झा

Last Updated On: Monday, June 2, 2025

Operation Sindoor 2025: यह कार्रवाई 7 मई की सुबह शुरू हुई थी और इसके बाद देशभर में दस्तावेजों की सघन जांच का अभियान चलाया गया, जिसके नतीजे अब सामने आने लगे हैं. सूत्रों के अनुसार, लगभग इतनी ही संख्या में अवैध प्रवासी खुद डर के कारण भारत-बांग्लादेश सीमा पर लौटकर स्वेच्छा से पार जाने के लिए पहुंच गए हैं. अधिकारियों का मानना है कि इस सख्त अभियान ने देशभर में अवैध प्रवासियों के बीच भय का माहौल पैदा कर दिया है, जिससे वे स्वेच्छा से देश छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं.

जानकारी के अनुसार, गुजरात इस ऑपरेशन को शुरू करने वाला पहला राज्य था. अब तक वापस भेजे गए कुल बांग्लादेशियों में से लगभग आधे गुजरात से पकड़े गए हैं. इसके अलावा दिल्ली और हरियाणा में भी बड़ी संख्या में ऐसे अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा गया है. अन्य प्रवासी असम, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों से पकड़े गए हैं. यह सरकारी अभियान खासकर त्रिपुरा, मेघालय और असम की सीमाओं पर सक्रिय रूप से चल रहा है, जहां से घुसपैठ के अधिक मामले सामने आते हैं. गुजरात पुलिस और विदेशी नागरिक शाखा की टीमों ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद तेजी से कार्रवाई करते हुए कई फर्जी दस्तावेजों के जरिए रह रहे लोगों को पकड़ा. इन लोगों के पास आधार कार्ड, पैन कार्ड और राशन कार्ड जैसे पहचान पत्र भी पाए गए, जिनकी जांच के बाद उन्हें फर्जी घोषित किया गया.

गृह मंत्रालय के निर्देश पर राष्ट्रीय और राज्य स्तर की एजेंसियां मिलकर इस अभियान को अंजाम दे रही हैं. रिपोर्ट्स के अनुसार, न सिर्फ गुजरात, बल्कि महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी इस अभियान के तहत सैकड़ों अवैध घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें डिटेंशन सेंटर में रखा गया है और फिर उन्हें उनके देश भेजा जा रहा है.

सूत्रों के मुताबिक, कई घुसपैठिए मजदूरी, घरेलू काम और छोटे-मोटे व्यवसाय के बहाने भारत में रह रहे थे. कुछ मामलों में तो ये लोग स्थानीय निवासियों के साथ मिलकर नकली दस्तावेज बनवाने में शामिल पाए गए हैं. केंद्र सरकार का मानना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा, जनसांख्यिकीय असंतुलन और आर्थिक बोझ जैसे मुद्दों को देखते हुए इस तरह की कार्रवाई आवश्यक है. इस अभियान को आने वाले दिनों में और तेज़ किए जाने की योजना है ताकि भारत में रह रहे सभी अवैध नागरिकों की पहचान कर उन्हें निष्कासित किया जा सके.

गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “देश की सुरक्षा और जनहित सर्वोपरि है. किसी भी अवैध नागरिक को भारत में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती. राज्यों से कहा गया है कि वे अपने स्तर पर ऐसे लोगों की पहचान करें और उन्हें देश से बाहर भेजने की प्रक्रिया को प्राथमिकता दें.”

ऑपरेशन सिंदूर” के तहत अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की वापसी का अभियान अब बेहद सुनियोजित और तेज़ी से चल रहा है. बताया जा रहा है कि इन प्रवासियों को वायुसेना के विमानों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों से भारत-बांग्लादेश सीमा के पास लाया जा रहा है, जहां उन्हें सीमा सुरक्षा बल (BSF) के सुपुर्द कर दिया जाता है.

अस्थायी शिविरों में इन प्रवासियों को भोजन, प्राथमिक चिकित्सा और जरूरत पड़ने पर कुछ बांग्लादेशी मुद्रा भी दी जाती है, ताकि वे अपने देश लौटते समय आवश्यक चीजें खरीद सकें. कुछ घंटों के भीतर ही इन्हें “वापस धकेल” दिया जाता है.

क्यों चुने गए त्रिपुरा, मेघालय और असम?

त्रिपुरा, मेघालय और असम में चल रही इस कार्रवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए एक सुरक्षा अधिकारी ने कहा, “यह धारणा गलत है कि इन राज्यों को भाजपा शासित होने के कारण चुना गया है. मेघालय में तो भाजपा सत्ता में ही नहीं है.” उन्होंने स्पष्ट किया कि इन राज्यों को इसलिए प्राथमिकता दी गई क्योंकि यहां से सीमा पार करवाना अपेक्षाकृत आसान है और कानून-व्यवस्था बनाए रखना भी सरल है.

इसके विपरीत, पश्चिम बंगाल में कई स्थानों पर सीमा घरों और गांवों के बीच से गुजरती है, जिससे दोनों तरफ पारिवारिक संबंधों के चलते तनाव उत्पन्न हो सकता है. कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की आशंका रहती है.

डर के चलते खुद ही लौट रहे प्रवासी

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, करीब 2,000 बांग्लादेशी अवैध प्रवासी खुद ही भारत-बांग्लादेश सीमा पर पहुंच चुके हैं, ताकि गिरफ्तारी से पहले देश छोड़ सकें. अधिकारियों का कहना है कि मीडिया में खबरें पढ़कर और कार्रवाई की गंभीरता देखकर कई लोग स्वेच्छा से भारत छोड़ रहे हैं.

निर्वासन का विरोध नहीं कर रहे प्रवासी

एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि अधिकांश पकड़े गए प्रवासी निर्वासन का विरोध नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “जो लोग कई दशक पहले भारत आए थे, वे ही थोड़ी जद्दोजहद करते हैं. बाकी प्रवासी बिना किसी झिझक के लौटने को तैयार हो जाते हैं.” अधिकारी ने यह भी बताया कि सीमा पर पहुंचते ही वे बांग्लादेश में अपने परिजनों को फोन करते हैं, जो उन्हें लेने आ जाते हैं. अधिकांश अवैध प्रवासी गरीब मजदूर वर्ग से हैं, जिनके पास कानूनी लड़ाई लड़ने के संसाधन नहीं होते, इसलिए वे डिटेंशन सेंटर या जेल की बजाय अपने परिवारों के पास लौटना ही बेहतर समझते हैं.

BGB का भी मिल रहा सहयोग

सरकारी सूत्रों के अनुसार, इस अभियान में बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड (BGB) भी भारतीय अधिकारियों के साथ सहयोग कर रहा है, जिससे अब तक अभियान बिना किसी बाधा के शांतिपूर्वक चल रहा है. “ऑपरेशन सिंदूर” (Operation Sindoor) अब केवल एक सरकारी कार्रवाई नहीं, बल्कि अवैध प्रवास के खिलाफ एक सशक्त और सुनियोजित नीति बनकर सामने आ रहा है, जो आने वाले समय में देश के आंतरिक सुरक्षा ढांचे को और सशक्त बना सकता है.

About the Author: सतीश झा
सतीश झा की लेखनी में समाज की जमीनी सच्चाई और प्रगतिशील दृष्टिकोण का मेल दिखाई देता है। बीते 20 वर्षों में राजनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचारों के साथ-साथ राज्यों की खबरों पर व्यापक और गहन लेखन किया है। उनकी विशेषता समसामयिक विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत करना और पाठकों तक सटीक जानकारी पहुंचाना है। राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों तक, उनकी गहन पकड़ और निष्पक्षता ने उन्हें पत्रकारिता जगत में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है
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