भगवान के दर्शन के बाद तीसरी सीढ़ी पर पैर नहीं रखा जाता है, जानिए जगन्नाथ मंदिर के रहस्य से जुड़ी कहानी

भगवान के दर्शन के बाद तीसरी सीढ़ी पर पैर नहीं रखा जाता है, जानिए जगन्नाथ मंदिर के रहस्य से जुड़ी कहानी

Authored By: स्मिता

Published On: Friday, June 27, 2025

Last Updated On: Friday, June 27, 2025

जगन्नाथ मंदिर में भगवान के दर्शन के बाद तीसरी सीढ़ी पर पैर न रखने की परंपरा का रहस्य और उससे जुड़ी पौराणिक कथा जानिए इस लेख में.
जगन्नाथ मंदिर में भगवान के दर्शन के बाद तीसरी सीढ़ी पर पैर न रखने की परंपरा का रहस्य और उससे जुड़ी पौराणिक कथा जानिए इस लेख में.

जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून, 2025 से शुरू हो चुकी है. ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में नौ दिनों तक चलने वाला यह उत्सव 5 जुलाई को नीलाद्रि विजय के साथ समाप्त हो जाएगा. भक्तगण जगन्नाथ मंदिर की सीढ़ी को विशिष मानते हैं. वे मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर पैर नहीं रखते हैं. जानते हैं मंदिर की सीढ़ी का यह रहस्य.

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Friday, June 27, 2025

Jagannath Temple Mystery: भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं. इस यात्रा में लाखों भक्तगण भाग लेते हैं. रथ यात्रा को कार महोत्सव भी कहा जाता है. हर साल देवताओं की गुंडिचा मंदिर तक की यात्रा होती है. रानी गुंडिचा राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी थीं. उन्होंने मूल रूप से जगन्नाथ मंदिर का निर्माण किया था. भक्तगण मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर पैर नहीं रखते हैं. जानते हैं इसके पीछे की कथा.

तीसरी सीढ़ी पर पैर रखने से नष्ट हो सकते हैं पुण्य

जगन्नाथ मंदिर की 22 सीढियां हैं. इन सीढ़ियों को बैसी पहाचा कहा जाता है. इनमें से तीसरी सीढ़ी को यम शिला कह जाता है. काला पत्थर से बनी इस सीढ़ी को मृत्यु के देवता यम से जुड़ा माना जाता है. भक्तों का मानना है कि मंदिर में प्रवेश करते समय इस पर पैर रखने से उनके पाप धुल जाते हैं, लेकिन बाहर निकलते समय इस पर पैर रखने से दर्शन से मिलने वाले पुण्य नष्ट हो सकते हैं.

यम विराजते हैं सीढ़ी पर

तीसरी सीढ़ी काला पत्थर से बनी है. इसे यम शिला कहा जाता है. मान्यता है कि मृत्यु के देवता यम इस पत्थर पर निवास करते हैं. माना जाता है कि प्रवेश करते समय यम शिला पर पैर रखने से भक्तों के पाप धुल जाते हैं. बाहर निकलते समय इस पर पैर रखने से मंदिर में प्रवेश के दौरान किए गए अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं. यह मान्यता भक्तों को अपने कार्यों और मंदिर के भीतर आध्यात्मिक यात्रा के प्रति सचेत रहने के लिए प्रोत्साहित करती है.

जगन्नाथ मंदिर में सीढ़ियों का नियम

ब्रह्मांड के स्वामी भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए सिंह द्वार से होकर बाईस सीढ़ियां (ओड़िया में बैसी पहाचा) चढ़नी पड़ती हैं. मंदिर के अंदर वाले परिसर तक पहुंचने के लिए चढ़ी जाने वाली इन बाईस सीढ़ियों के प्रतीक के लिए कई कथाएं विख्यात हैं. मंदिर में प्रवेश के लिए चार द्वार हैं: सिंह द्वार, पूर्व में (मुख्य प्रवेश द्वार) व्याघ्र द्वार, पश्चिम में हस्ति द्वार, उत्तर में हाथी द्वार और दक्षिण में अश्व द्वार.

क्या है नवकलेबरा

नवकलेबरा पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन की मूर्तियों को बदलने की एक पारंपरिक प्रक्रिया है. इस उत्सव को नवकलेबरा भी कहा जाता है. यह हर 8, 12 या 19 साल में एक बार आषाढ़ महीने में मनाया जाता है, जब अधिक मास होता है. इस दौरान पुरानी मूर्तियों को हटाकर नीम की लकड़ी से बनी नई मूर्ति स्थापित की जाती है. इसे गुप्त और पवित्र अनुष्ठान माना जाता है, जिसमें बहुत सारे धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं.

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About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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