पेरिस ओलंपिक 3000 मीटर स्टीपलचेज : भारत के अविनाश साबले ने फाइनल में पहुंचकर रचा इतिहास

पेरिस ओलंपिक 3000 मीटर स्टीपलचेज : भारत के अविनाश साबले ने फाइनल में पहुंचकर रचा इतिहास

Authored By: अंशु सिंह

Published On: Wednesday, August 7, 2024

Updated On: Saturday, June 7, 2025

Avinash Sable Indian track and field athlete

पेरिस ओलंपिक 2024 में एक और भारतीय एथलीट ने इतिहास रचा। पुरुष 3000 मीटर स्टीपलचेज में भारत के अविनाश साबले फाइनल में जगह बनाने में कामयाब रहे। ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय बन गए हैं। साबले ने रेस की शुरुआत काफी अच्छी की। पहले 1000 मीटर तक वह सबसे आगे रहे। हालांकि, 2000 मीटर पूरा करने के बाद वह तीसरे स्थान पर पहुंच गए। ये दूरी उन्होंने 5 मिनट और 28.7 सेकेंड में पूरी की। रेस पूरी करने तक वह पांचवें स्थान पर खिसक गए। इस तरह उन्होंने पांचवें नंबर पर रहते हुए फाइनल में जगह बनाई।

Authored By: अंशु सिंह

Updated On: Saturday, June 7, 2025

आसान नहीं रहा फाइनल तक पहुंचना

अविनाश साबले ने दूसरी हीट में 8 मिनट और 15.43 सेकेंड का टाइम लिया और खुद को नंबर 5 पर काबिज किया। यह उनका श्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं था। पिछले ही महीने हुई पेरिस डायमंड लीग में उन्होंने 8 मिनट और 09.91 सेकेंड में रेस खत्म की थी, जो उनका बेस्ट था। कह सकते हैं कि ओलंपिक के फाइनल में क्वालिफाई करने के लिए वह अपने बेस्ट स्कोर तक नहीं पहुंच सके हैं। इस हीट में मोरोक्को के मोहम्मद तिंडौफत ने 8 मिनट और 10.62 सेकेंड में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए नंबर वन की जगह हासिल की। प्रतियोगिता में कुल तीन हीट हुईं और तीनों ही हीट में टॉप-5 पर आने वाले एथलीट्स ने फाइनल के लिए क्वालिफाई किया। इस तरह तीनों हीट से कुल 15 एथलीट्स ने क्वालिफाई किया।

इवेंट से पहले छोटे भाई से की बात

कुछ भी हो। अविनाश ने इतिहास रचा है। जब उनसे पूछा गया कि कैसा लग रहा है, तो उनका जवाब था, ‘मैंने रेस से एक रात पहले अपने छोटे भाई योगेश को फोन किया था और कहा था कि इस बार मैं अपनी शर्तों पर दौड़ूंगा। मैं वे गलतियां नहीं दोहराऊंगा, जो पूर्व में मैंने की हैं।‘ दरअसल, साबले कई बार फील्ड में प्रतिद्वंद्वी द्वारा बिछाए जाने वाले ट्रैप में फंसते रहे हैं। लेकिन इस बार उन्होंने इरादा कर लिया था। उधर, पेरिस की चमक-दमक से दूर उनके गृह शहर महाराष्ट्र के बीड जिले के मांडवा गांव में परिवार ने टीवी स्क्रीन पर अविनाश को दौड़ते देखा। उनके परिजनों को खेल के बारे में कुछ भी मालूम नहीं। न ही ओलंपिक की कोई जानकारी है। वे सिर्फ उन्हें दौड़ते देखना चाहते हैं। अविनाश के माता-पिता किसान हैं। लेकिन बच्चे के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।

आर्मी ज्वाइन करने के बाद जुड़े स्पोर्ट्स से

ऐसा नहीं था कि अविनाश हमेशा से स्पोर्ट्स में आना चाहते थे। वे आर्मी में जाना था, ताकि परिवार की अच्छे से देखभाल कर सकें। पढ़ाई में दिलचस्पी थी, तो अपने घर से छह किलोमीटर दूर स्थित स्कूल रोजाना दौड़कर जाते थे। 12वीं के बाद आखिरकार उन्होंने भारतीय सेना को ज्वाइन कर लिया। वे महार रेजिमेंट का हिस्सा बने औऱ सियाचिन, राजस्थान एवं सिक्किम में ड्यूटी की। 2015 में उन्होंने आर्मी के एथलेटिक्स प्रोग्राम को ज्वाइन किया। एथलीट के तौर पर अविनाश का सफर कहीं से आसान नहीं रहा। एक समय था, जब पर्याप्त ट्रेनिंग के अभाव में एवं चोट लगने के कारण उनका वजन काफी बढ़ गया था। लोगों ने उन्हें नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था। लेकिन अविनाश ने 15 किलो वजन घटाया और फिर से दौड़ना शुरू किया।

वर्ष 2017 में एक रेस के दौरान कोच अमरीश कुमार की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने अविनाश को स्टीपलचेज की तैयारी करने की सलाह दी। अविनाश ने उनकी बात मान ली और उसी वर्ष फेडरेशन कप में वे स्टीपलचेज में पांचवां स्थान हासिल करने में सफल रहे। साबले के अनुसार, स्टीपलचेज एक टैक्टिकल रेस है। ज्यादातर लोगों ने मुझसे कहा कि भारत में इसका रिकॉर्ड तोड़ना आसान नहीं है, क्योंकि यहां ऐसा कोई नहीं है जो उस तरह का पेस सेट कर सके। इसलिए मुझे खुद ही अपने लिए पेस सेट करना था।‘ खुद को लंबे रेस के लिए तैयार करना शुरू कर दिया। कड़ी ट्रेनिंग के बाद उन्होंने खुद को लंबी रेस के खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया।

चुनौतियों के बीच कमाया स्टीपलचेज में नाम

अविनाश को आलोचनाओं के साथ-साथ दूसरी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वे चोटिल हो गए। दोबारा लौटे और वर्ष 2018 में भुवनेश्वर में ओवन नेशनल्स में 3000 मीटर स्टीपलचेज में 8 मिनट 29 सेकेंड का नया नेशनल रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 30 साल पुराने रिकॉर्ड को 0.12 सेकेंड से तोड़ा। उनसे पहले 1981 में गोपाल सैनी ने टोक्यो के एशियन चैंपियनशिप में रिकॉर्ड बनाया था। इसके बाद तो अविनाश का पीछे देखना न हुआ। वर्ष 2019 में उन्होंने दोहा के एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता। ये उनका पहला अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप था। 2020 के टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने अपने नेशनल रिकॉर्ड से बेहतर प्रदर्शन किया। लेकिन फाइनल में पहुंचने से रह गए। हालांकि, वर्ष 2023 के एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता। इस बार उन्होंने ओलंपिक के फाइनल में क्वालिफाई कर दिखाया।

About the Author: अंशु सिंह
अंशु सिंह पिछले बीस वर्षों से हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। उनका कार्यकाल देश के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण और अन्य राष्ट्रीय समाचार माध्यमों में प्रेरणादायक लेखन और संपादकीय योगदान के लिए उल्लेखनीय है। उन्होंने शिक्षा एवं करियर, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक मुद्दों, संस्कृति, प्रौद्योगिकी, यात्रा एवं पर्यटन, जीवनशैली और मनोरंजन जैसे विषयों पर कई प्रभावशाली लेख लिखे हैं। उनकी लेखनी में गहरी सामाजिक समझ और प्रगतिशील दृष्टिकोण की झलक मिलती है, जो पाठकों को न केवल जानकारी बल्कि प्रेरणा भी प्रदान करती है। उनके द्वारा लिखे गए सैकड़ों आलेख पाठकों के बीच गहरी छाप छोड़ चुके हैं।
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