क्यों धधक रहे हैं उत्तराखंड के जंगल

क्यों धधक रहे हैं उत्तराखंड के जंगल

Authored By: गुंजन शांडिल्य

Published On: Thursday, May 9, 2024

kyo dhadhak rahe hai uttarakhand ke jangal
kyo dhadhak rahe hai uttarakhand ke jangal

उत्तराखंड के दोनों मंडलों में वनाग्नि से करोड़ों की वन संपदा जलकर खाक हो गई है। वन्य जीवों के नुकसान का तो अभी तक कोई आंकड़ा सामने आया ही नहीं है।बताया जा रहा है कि कुल 1385.848 हैक्टेयर क्षेत्र वनाग्नि से प्रभावित है।

Authored By: गुंजन शांडिल्य

Last Updated On: Saturday, July 27, 2024

देवभूमि उत्तराखंड इन दिनों धधक रहा है। दंगा या अपराध से नहीं बल्कि जंगलों की आग से। गढ़वाल मंडल का सुदूर चमोली, चकराता हो या पौड़ी, रुद्रप्रयाग जिला या फिर कुमाऊं मंडल का अल्मोड़ा, नैनीताल जिला, सभी जगह जंगलों की आग की लपटें दिख रही हैं। कहीं वन विभाग के कर्मचारी, कहीं स्थानीय लोगों तो कहीं हेलीकॉप्टर से इसे बुझाने का प्रयास हो रहा है लेकिन यह नाकाफी साबित हो रहा है। समस्या की गंभीरता को देखते हुए उच्चतम न्यायालय को भी दिशा-निर्देश देना पड़ा।

उत्तराखंड के दोनों मंडलों में वनाग्नि से करोड़ों की वन संपदा जलकर खाक हो गई है। वन्य जीवों के नुकसान का तो अभी तक कोई आंकड़ा सामने आया ही नहीं है।बताया जा रहा है कि कुल 1385.848 हैक्टेयर क्षेत्र वनाग्नि से प्रभावित है। इससे पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंच रहा है। पहाड़ों पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा लगातार बढ़ रही है। जिससे कुछ ही किलोमीटर दूर स्थित ग्लेशियर पर भी खतरा मंडरा रहा है। पर्यावरणविद् परेशान हैं।

हालांकि प्रदेश सरकार आग बुझाने के लिए सक्रिय है। पर उनकी सक्रियता भी बेअसर साबित हुई है। जंगलों की आग को बुझाने के लिए सेना कोमदद ली गई है। वायु सेना के हेलीकॉप्टर झीलों से पानी लेकर आग बुझाने के प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री पुष्‍कर सिंह धामी भी लगातार वन अधिकारियों एवं अन्य उच्चाधिकारियों के साथ बैठक कर इसकी समीक्षा कर रहे हैं। आज उच्चाधिकारियों की एक बैठक के बाद उन्‍होंने कहा, ‘फायर लाइन बनाने की कार्रवाई में वह स्वयं भी हिस्‍सा लेंगे। इसमें जनप्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाएगा। इस पर काबू पाने के लिए सभी सचिवों को अलग-अलग जिलों की जिम्मेदारी दी जा रही।’

अब तक की रिपोर्ट के मुताबिक वनाग्नि में 5 लोगों की मौत और 4 लोग झुलसकर घायल हुए हैं। दरअसल, उत्तराखंड के जंगलों में अधिकांशतः चीर के पेड़ हैं। इसकी पत्तियां (पिरूल) बहुत ही ज्वलनशील होती हैं। गर्मियों में पेड़ों से झड़कर यह पूरे जंगलों में बिखरी रही है। यहां एक छोटी सी चिंगारी आग को बेकाबू कर देती है।

कई बार सरारती तत्वों एवं वन तस्करों के द्वारा जानबूझकर जंगलों में आग लगाई जाती है। आग के कारण पेड़ सुख जाते हैं, जिसे बाद में वन तस्कर कम कीमत पर उसे खरीदता है। वरिष्ठ पत्रकार संजय स्वार बताते हैं, पिछले दिनों ही जंगलों में आग लगाते नैनीताल में दो लोगों को ग्रामीणों ने पकड़ा था। इसमें कई बार वन अधिकारी मिले होते हैं।’ वह आगे बताते हैं कि यहां हर साल जंगलों में आग की घटना होती है लेकिन कोई भी सरकार इसके रोकथाम के लिए पहले से तैयारी नहीं करती है। कई बार यहां के जंगलों की आग में भ्रष्टाचार की बू भी आती है।

एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक इस साल अभी तक आग लगाने वालों के खिलाफ 390 मामले दर्ज हुए हैं। इनमें 64 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। कर्मचारियों पर भी सरकारी डंडा चला है। वनाग्नि पर लापरवाही बरतने के लिए 10 कर्मचारियों को निलंबित और 7 को अटैचमेंट किया गया है।
गढ़वाल मंडल के मुख्य वन संरक्षक नरेश कुमार ने बताया, ‘वनाग्नि को काबू करने के प्रयास लगातार जारी हैं। ऊंची पहाड़ियों की आग को बुझाने के लिए वायु सेना के एमआई 17 हेलीकॉप्टर कीमदद ली जा रही है।’ इन सबके बाद भी जंगलों की आग शांत नहीं हुई है।

गुंजन शांडिल्य समसामयिक मुद्दों पर गहरी समझ और पटकथा लेखन में दक्षता के साथ 10 वर्षों से अधिक का अनुभव रखते हैं। पत्रकारिता की पारंपरिक और आधुनिक शैलियों के साथ कदम मिलाकर चलने में निपुण, गुंजन ने पाठकों और दर्शकों को जोड़ने और विषयों को सहजता से समझाने में उत्कृष्टता हासिल की है। वह समसामयिक मुद्दों पर न केवल स्पष्ट और गहराई से लिखते हैं, बल्कि पटकथा लेखन में भी उनकी दक्षता ने उन्हें एक अलग पहचान दी है। उनकी लेखनी में विषय की गंभीरता और प्रस्तुति की रोचकता का अनूठा संगम दिखाई देता है।
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