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Israel Public Protests: इजरायल में सुलगा बड़ा विरोध, अनिवार्य सैन्य भर्ती के खिलाफ भड़की जनता
Authored By: Nishant Singh
Published On: Saturday, November 1, 2025
Last Updated On: Saturday, November 1, 2025
Israel Public Protests: इजरायल इन दिनों उबाल पर है. येरुशलम की सड़कों पर हजारों लोग काले कपड़ों में उतर आए हैं, आगजनी कर रहे हैं और सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं. वजह है- अनिवार्य सैन्य भर्ती कानून. धार्मिक समुदाय इसे अपनी आज़ादी पर हमला बता रहा है, जबकि नेतन्याहू सरकार दबाव में है. इस आर्टिकल में जानिए इजरायल में बढ़ते विरोध की असली वजह, धार्मिक समुदाय की मांगें, और कैसे यह आंदोलन नेतन्याहू सरकार की नींव हिला सकता है.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Saturday, November 1, 2025
Israel Public Protests: इजरायल की सड़कों पर इन दिनों माहौल गर्म है. हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए हैं, काले कपड़ों में, हाथों में तख्तियां और आंखों में गुस्सा लेकर. कारण- देश में लागू अनिवार्य सैन्य भर्ती कानून. लोग अब इस कानून के खिलाफ खुलकर आवाज उठा रहे हैं. येरुशलम की गलियों से लेकर तेल अवीव तक, हर तरफ “आज़ादी दो” और “भर्ती बंद करो” के नारे गूंज रहे हैं.
धार्मिक समुदाय की नाराज़गी – “हम नहीं लड़ेंगे युद्ध”
इन प्रदर्शनों की अगुवाई कट्टर धार्मिक यहूदी समुदाय कर रहा है. उनका कहना है कि वे अपना जीवन पवित्र यहूदी ग्रंथों के अध्ययन में लगाना चाहते हैं, न कि युद्धभूमि में हथियार उठाने में. गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025 को हजारों प्रदर्शनकारियों ने काले कपड़े पहनकर येरुशलम में विशाल रैली निकाली. उनका एक ही संदेश था-“हमें अनिवार्य सैन्य भर्ती से छूट चाहिए.”
सड़कों पर आग, पुलिस की नाकाबंदी
एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों ने कई जगहों पर तिरपाल के टुकड़ों में आग लगा दी. काली टोपी पहने युवाओं की भीड़ ने येरुशलम की मुख्य सड़कों को जाम कर दिया. पुलिस ने हालात पर काबू पाने के लिए सैकड़ों जवानों को तैनात किया और कई इलाकों में घेराबंदी की. कई जगह प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प की खबरें भी आईं.
आखिर विरोध किस बात का है?
दरअसल, 1948 में जब इजरायल का गठन हुआ था, तब अति-रूढ़िवादी यहूदी समुदाय की संख्या बहुत कम थी. इसलिए जो पुरुष धार्मिक शिक्षा में अपना पूरा जीवन लगाते थे, उन्हें अनिवार्य सैन्य सेवा से छूट दी गई थी. लेकिन अक्टूबर 2023 में गाजा युद्ध के बाद हालात बदल गए. सेना को नए जवानों की सख्त जरूरत महसूस हुई, और सरकार ने अब उन लोगों को भी भर्ती के लिए बुलावा भेजना शुरू कर दिया जो पहले छूट पाते थे. इससे धार्मिक समुदाय भड़क उठा.
सरकार की कार्रवाई और बढ़ता तनाव
इजरायली सरकार ने हाल के महीनों में कट्टर धार्मिक युवाओं पर सख्ती दिखाई है. हजारों लोगों को बुलावा नोटिस भेजा गया और कई भगोड़ों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया. सरकार का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबका योगदान जरूरी है, लेकिन प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि उन्हें धार्मिक जीवन और सेना सेवा में से एक चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.
नेतन्याहू के वादे और राजनीतिक संकट
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पहले ही यह वादा किया था कि उनकी सरकार छूट देने वाला कानून लेकर आएगी ताकि धार्मिक समुदाय को कानूनी सुरक्षा मिल सके. लेकिन अब तक यह कानून पास नहीं हो पाया. जुलाई 2024 में नेतन्याहू की सहयोगी शास पार्टी के मंत्रियों ने इसी मुद्दे पर कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था, हालांकि उन्होंने गठबंधन नहीं तोड़ा.
गठबंधन पर संकट के बादल
नेतन्याहू की सरकार को समर्थन देने वाली सेफर्डिक शास पार्टी के पास 11 सांसद हैं. इस पार्टी ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने जल्द ही सैन्य सेवा से छूट को कानूनी दर्जा नहीं दिया, तो वह गठबंधन से समर्थन वापस ले सकती है. इसका मतलब है कि नेतन्याहू की सत्ता पर भी संकट के बादल मंडरा सकते हैं.
अंतरराष्ट्रीय नजरें भी टिकीं
इजरायल में इस बढ़ते विरोध पर दुनिया की नजर है. अमेरिका और यूरोपीय देश इस पूरे घटनाक्रम को ध्यान से देख रहे हैं क्योंकि यह विरोध सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल नहीं, बल्कि देश की सैन्य क्षमता और राजनीतिक स्थिरता से भी जुड़ा हुआ है.
निष्कर्ष: क्या सुलझेगा यह विवाद?
इजरायल आज एक चौराहे पर खड़ा है, एक तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा की जरूरतें हैं, तो दूसरी तरफ धार्मिक स्वतंत्रता की मांगें. हजारों प्रदर्शनकारी यह संदेश दे रहे हैं कि अब वे चुप नहीं रहेंगे. सवाल अब यह है कि क्या नेतन्याहू सरकार इस आग को शांत कर पाएगी, या यह आंदोलन आने वाले दिनों में और बड़ा रूप लेगा?
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