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रूस की चाल या पश्चिम की साजिश? भारत-चीन तनाव पर दिखी नई रणनीति!
रूस की चाल या पश्चिम की साजिश? भारत-चीन तनाव पर दिखी नई रणनीति!
Authored By: सतीश झा
Published On: Friday, May 16, 2025
Last Updated On: Friday, May 16, 2025
रूस ने एक बार फिर पश्चिमी देशों पर एशिया में तनाव बढ़ाने की साजिश का आरोप लगाते हुए यह स्पष्ट संकेत दिया है कि वह भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव को कम करने की दिशा में सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है. रूसी अधिकारियों का कहना है कि पश्चिमी शक्तियां एशिया में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए भारत और चीन को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रही हैं.
Authored By: सतीश झा
Last Updated On: Friday, May 16, 2025
Russia Mediation India China: एक समय पर पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य संघर्ष में खुलकर भारत का समर्थन करने वाला रूस अब भारत और चीन के बीच तनाव कम करने की दिशा में पहल करता दिखाई दे रहा है. रूस की यह रणनीति एशिया में स्थिरता बनाए रखने और पश्चिमी देशों की विभाजनकारी नीतियों को संतुलित करने के रूप में देखी जा रही है. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हाल ही में मॉस्को में आयोजित डिप्लोमैटिक क्लब की एक बैठक में कहा कि पश्चिमी देश भारत और चीन को जानबूझकर एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के हालिया घटनाक्रमों पर गौर करें, जिसे पश्चिम ने अब ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र’ कहना शुरू कर दिया है. यह चीन-विरोधी नीति का हिस्सा है और इसका उद्देश्य भारत और चीन जैसे महान मित्रों व पड़ोसी देशों के बीच टकराव पैदा करना है.
रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव (Sergey Lavrov) ने यूरेशिया महाद्वीप को लेकर एक अहम बयान दिया है, जिसमें उन्होंने इसकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत विविधता की सराहना करते हुए यह भी चिंता जताई कि इतने समृद्ध क्षेत्र के बावजूद यहां कोई महाद्वीप-व्यापी समन्वय मंच मौजूद नहीं है. लावरोव ने कहा, “यूरेशिया जैसा कोई दूसरा महाद्वीप नहीं है, जहां इतनी सारी सभ्यताएं एक साथ रहती हैं और जिन्होंने आधुनिक युग में भी अपनी पहचान एवं प्रासंगिकता बनाए रखी है. हालांकि, यूरेशिया एकमात्र ऐसा महाद्वीप भी है, जहां कोई महाद्वीप-व्यापी मंच नहीं है.”
यह टिप्पणी ‘सीमाओं के बिना संस्कृति: सांस्कृतिक कूटनीति की भूमिका और विकास’ विषय पर आयोजित एक विशेष चर्चा के दौरान दी गई, जिसकी रिपोर्ट रूसी सरकारी समाचार एजेंसी टीएएसएस ने प्रकाशित की.
रूस की दोहरी कूटनीति या संतुलन की कोशिश?
रूस, जो परंपरागत रूप से भारत का रणनीतिक साझेदार रहा है, अब चीन के साथ भी गहरे राजनीतिक और आर्थिक संबंध साझा करता है. विशेषज्ञों का मानना है कि रूस अब एशिया में खुद को एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है. जहां एक ओर वह चीन के साथ सामरिक रिश्ते निभा रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत के साथ पुराने संबंधों को भी मजबूत बनाए रखना चाहता है.
भारत-चीन तनाव के बीच रूस की भूमिका
भारत और चीन के बीच पिछले कुछ वर्षों में सीमा विवाद को लेकर गहरा तनाव बना हुआ है, खासकर गलवान घाटी की झड़प के बाद से. रूस यह मानता है कि यदि भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ता है, तो इसका सीधा फायदा पश्चिमी देशों को होगा और एशिया की स्थिरता खतरे में पड़ सकती है. रूस अब इन दोनों देशों को संवाद और कूटनीति के माध्यम से एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहा है. कुछ अघोषित प्रयासों की भी चर्चा हो रही है, जिनमें रूस की मध्यस्थता संभावित रूप से शामिल है.
रूस की रणनीति: मध्यस्थता या दबाव?
रूस इस बयान के जरिए खुद को एक संतुलित मध्यस्थ के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है, खासकर ऐसे समय में जब यूक्रेन युद्ध को लेकर वह पश्चिम से अलग-थलग पड़ा हुआ है. रूस को उम्मीद है कि भारत और चीन के बीच कूटनीतिक पुल बनाकर वह एशिया में अपनी साख मजबूत कर सकता है.
हाल ही में ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर रूस ने भारत और चीन को एक साथ लाने की कोशिशें की हैं. हालांकि, गलवान झड़प के बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों में आई दरार अब भी पूरी तरह भर नहीं पाई है.
भारत की स्थिति: सतर्क सहयोग
भारत ने रूस के बयान पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि भारत शांति और स्थिरता का पक्षधर है, लेकिन वह किसी भी तीसरे पक्ष की भूमिका को सीमित रखना चाहता है. भारत ने हमेशा द्विपक्षीय संवाद को प्राथमिकता दी है और रूस की कोशिशों को “सकारात्मक संकेत” के तौर पर देखा जा सकता है, बशर्ते कि इसमें निष्पक्षता बनी रहे.
चीन की प्रतिक्रिया: अपने हितों पर केंद्रित
चीन ने भी रूस की इस कोशिश को समर्थन तो दिया है, लेकिन उसके इरादों पर पूरी तरह से विश्वास करना भारत के लिए आसान नहीं है. चीन अक्सर रूस के साथ सामरिक गठजोड़ में नजर आता है, जो भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है.
क्या होगी नई शुरुआत?
रूस की यह कोशिश यदि ईमानदार और संतुलित रही, तो यह भारत-चीन संबंधों को सामान्य करने की दिशा में एक कूटनीतिक पहल साबित हो सकती है. हालांकि, इसमें सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि दोनों देश अपने-अपने हितों को संतुलित करें और किसी तीसरे पक्ष के प्रभाव में आए बिना आपसी संवाद को आगे बढ़ाएं. क्या रूस की इस चाहत से भारत-चीन तनाव वाकई कम होगा? रूस की इस पहल को भारत किस दृष्टि से देखता है, यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा. भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के लिए जाना जाता है और वह किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को सीमित रखना पसंद करता है. लेकिन यदि यह प्रयास निष्पक्ष और संतुलित होते हैं, तो यह एशिया में स्थायी शांति की दिशा में एक सकारात्मक कदम साबित हो सकते हैं.