चुनावी चंदे में आई पारदर्शिता

Authored By: विशेष संवाददाता, गलगोटियाज टाइम्स

Published On: Tuesday, April 16, 2024

Categories: Business World

Updated On: Wednesday, April 24, 2024

electoral bond

इलेक्टोरल बॉन्ड से अघोषित और गुप्त चंदे पर रोक से सबसे अधिक असहज कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियां हुई हैं। इस बॉन्ड से राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले गुप्त चंदे पर रोक लगने और देश का पैसा घर में ही रहने की उम्मीद है...

इलेक्टोरल बॉन्ड का खूब हल्ला मचा गया लेकिन इसके खुलासे ने बस उन्हीं मुट्ठी भर लोगों को चौंकाया जो दलीय राजनीति के इस सत्य से परिचित नहीं थे कि सियासी चंदे का लेनदेन कोई नयी बात नहीं। यह चलन राजनीति में उतरने वाली पार्टियों के लिए शुरू से ही रहा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अगर कोई नई और उल्लेखनीय बात सामने आई है तो बस इतना ही कि राजनीतिक दलों और कापोर्रेट के जिन रिश्तों के बारे में जनता अटकलें लगाती थी, वह आंकड़ों और कागजी दस्तावेजों के रूप में सामने आ गया।

चुनावी चंदे के इस मामले में कॉरपोरेट से रिश्तों को लेकर सत्ताधारी पार्टी को कठघरे में खड़ा किया गया पर दस्तावेजों ने बताया कि भाजपा के साथ साथ कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस,डीएमके जैसे तमाम दूसरे छोटे बड़े राष्ट्रीय, क्षेत्रीय दलों के रिश्ते इन दानदाताओं से हैं। गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं कि, ह्यचंदे में बीस हजार करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड सभी सियासी दलों में बंटे और भाजपा को 6 हजार करोड़ के बांड मिले तो बाकी के 14 हजार करोड के बांड कहां गए। जाहिर है कि यह धनराशि दूसरी पार्टियों के खाते में गई। 

विपक्षी दलों का आरोप है कि चंदे का सबसे बड़ा हिस्सा भाजपा को मिला, उसने यह अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल करके वसूला। चंदे का सबसे बड़ा हिस्सा भाजपा को हासिल होने की बात स्वाभाविक ही है। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है, उसकी व्याप्ति देश के ज्यादातर राज्यों में है। केंद्र में 303 सांसदों वाली उसकी एक मजबूत और स्थिर सरकार है। उसका देश समाज के बहुविध और बहुआयामी, विस्तृत विकास के बारे में अच्छा रिकार्ड है। साथ ही वह लोकप्रिय भी है। ऐसे में उसके समर्थक ज्यादा होंगे ही और ये समर्थक दानदाता कॉरपोरेट में भी हों और वे भाजपा को दूसरों से कई गुना ज्यादा चंदा दें इसमें संदेह की गुंजाइश कहां है। इस हिसाब से देखें भाजपा को आनुपातिक तौर पर कम चंदा ही मिला है। गृहमंत्री अमित शाह के अनुसार, ‘संसद में हमारे 303 सांसद हैं और हमें 6 हजार करोड़ का चंदा मिला है। बाकी जिन दलों के 242 सांसद हैं उन्हें 14 हजार का चंदा मिला।विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकारी भयादोहन के चलते केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को अधिक चंदे का लाभ मिला। पर इस बात में सच्चाई इसलिए नजर नहीं आती क्योंकि तृणमूल कांग्रेस को 1600 करोड़, कांग्रेस को 1400 करोड़, बीआरएस को 1200 करोड़, बीजेडी के 775 करोड़ और डीएमके को 639 करोड़ के चुनावी बॉन्ड मिले।  

बेशक सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड कानून को असंवैधानिक करार दिया हो, पर इससे शायद ही किसी का इंकार होगा कि अघोषित चुनावी चंदे पर रोक के लिए यह बड़ा कदम था। चुनावी चंदे के नाम पर जिस तरह गुप्त रूप से देश के पैसे को विदेश में हस्तांतरित किया जाता रहा है, चुनावी बॉन्ड के कारण इसे देश में रखने में मदद मिलती और देश की जनता को भी इस बारे में जानने का मौका मिलता। देखा जाए तो राजनीति का पोषण ही चंदे के बल पर होता है और देश में आये दिन होने वाले विभिन्न खचीर्ले चुनावों के दौर में सियासी पार्टियां लगातार और भारी भरकम चंदे के बिना नहीं चल सकतीं। उनको सियासी चंदे का कोई और करगर तरीका तलाशना होगा। ऐसे में इलेक्टोरल बॉन्ड को रद करने के बजाय उसमें सुधार करना ज्यादा समीचीन होता। 

यह भी तय है कि पार्टियां कार्यकर्ताओं या जन समर्थकों के बेहद छोटे चंदों से अपना खर्च पूरा नहीं कर सकतीं सो कॉरपोरेट या मोटा मुनाफा कमाने वाली कंपनियां ही दलों को चंदा देंगी। ऐसे लोग या कंपनियां व्यावसायिक कारणों से अपने नाम का खुलासा नहीं करना चाहते और पार्टियां भी उनके दान के रिश्ते उजागर करना उचित नहीं समझतीं। अत: देखना यह होगा कि चुनावी चंदे का नया तरीका कितना पारदर्शी, संविधान सम्मत और समावेशी तथा सभी दलों को मान्य होगा।

फिलहाल तो यही लगता है कि विपक्षी दल इस लोकसभा चुनाव में चाहे इसे मुद्दा बनाने की कोशिश करें, पर इलेक्टोरल बॉन्ड मुद्दे का आम चुनावों पर कोई विशेष प्रभाव पड़ता नहीं दिख रहा। 

इलेक्टोरल बांड क्या है ?

  • राजनीतिक दलों को चंदा देने के इस वित्तीय तरीके ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ की घोषणा 2017 में हुई।
  • इसके लिए फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट यानी विदेशी योगदान विनियमन कानून में संशोधन किया गया जिससे भारत में सहायक कंपनियों के साथ विदेशी कंपनियां भी चंदा दे सकें।
  • कंपनी अधिनियम, 2013 में भी बदलाव कर चंदा देने वाली कंपनियों को खातों में वार्षिक लाभ और हानि तथा राजनीतिक योगदान का विवरण न देने की छूट दी गई।
  • इसे राज्यसभा से बचाने के लिए मनी बिल के बतौर पास कराया गया।
  • यह योजना 29 जनवरी, 2018 को आधिकारिक तौर पर लागू हुई। भारतीय स्टेट बैंक इस इलेक्टोरल बॉन्ड को जारी कर सकता था।
  • भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपये या इसके गुणक में किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकते थे।
  • स्टेट बैंक जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में 10 दिनों के लिए यह बॉन्ड खरीद हेतु उपलब्ध कराता था हालांकि आम चुनावों वाले वर्ष में केंद्र सरकार अधिसूचना जारी कर इसमें 30 दिनों की बढोत्तरी कर सकती थी।
  • चुनावी बॉन्ड आयकर अधिनियम, 1961 के तहत धारा 80ॠॠ और धारा 80ॠॠइ के तहत कर-मुक्त थे। जबकि पार्टियां आयकर अधिनियम की धारा 13अ के अनुसार इलेक्टोरल बॉन्ड स्वीकारती हैं।
  • देश का कोई भी नागरिक, जिसके पास केवाईसी की पूरी जानकारियों वाला बैंक खाता हो वह स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से इस इलेक्टोरल बॉन्ड या वचनपत्र को कागजी अवश्यकताओं को पूरी कर के खरीद सकता था। इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता।
  • चुनावी बॉन्ड पर एक गुप्त अल्फान्यूमेरिक पहचान होती है जिसे सिर्फ अल्ट्रावायलट प्रकाश में ही देखा जा सकता है। बैंक इसी से दानदाता का विवरण जान सकता है।
  • दानदाता इलेक्टोरल बॉन्ड को उसी पार्टी को दे सकता था जिसने लोकसभा या विधानसभा के पिछले आम चुनावों में पड़े कुल मतों का कम से कम एक प्रतिशत हासिल किया हो।
  • प्राप्त इलेक्टोरल बॉन्ड को संबंधित पार्टी द्वारा 15 दिन के भीतर भुनाना जरूरी था। हालांकि इसके अपवाद भी हैं।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड को निरस्त कर दिया कि इसे गोपनीय रखना संविधान के अनुच्छेद 19(1) और सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।
amit shah
गलगोटियाज टाइम्स एक ऐसा प्लेटफार्म है, जहां आप पढ़ सकेंगे देश दुनिया की खबरों का तटस्थ व रोचक विश्लेषण... साथ ही मिलेंगी सफलता की सच्ची और प्रेरक कहानियां व असाधारण कार्य कर रहे व्यक्तित्वों के साक्षात्कार...

यह भी पढ़ें

Email marketing icon with envelope and graph symbolizing growth

news via inbox

समाचार जगत की हर खबर, सीधे आपके इनबॉक्स में - आज ही हमारे न्यूजलेटर को सब्सक्राइब करें।

Leave A Comment