वनस्पति वंडरलैंड में बदलने वाली फूलों की घाटी

Authored By: Gunjan Shandilya

Published On: Saturday, June 1, 2024

Categories: Culture

Updated On: Thursday, June 27, 2024

phoolo ki ghati

विश्व धरोहर फूलों की घाटी अपने फूलों के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यहां की रोचक बात यह है कि ये घाटी हर 15 दिन में अपना रंग बदल लेती है। 500 से अधिक फूलों की प्रजातियों में से कुछ प्रजाति सिर्फ यही देखने को मिलती है।

उत्तराखंड में चल रहे चारधाम यात्रा के बीच चमोली जिले में स्थित फूलों की घाटी भी आज पर्यटकों के लिए खुल गई है। हालांकि चारधाम यात्रा में जिस तरह की भीड़ पहुंच रही है, उस तादाद में यहां पर्यटकों को नहीं भेजा जा सकता है। क्योंकि वानस्पतिक एवं पारिस्थितिक रूप से से यह क्षेत्र बेहद संवेदनशील घाटी है। फिर भी यहां सैकड़ों प्रकार के फूलों और वनस्पति को निहारने हजारों की संख्या में वनस्पति प्रेमी हर साल यहां आते हैं। फूलों की घाटी को यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में रखा है। यह घाटी खूबसूरत उच्च हिमालई भ्यूंडार घाटी में स्थित है।

दरअसल, अपनी दुर्लभ पुष्पों की प्रजातियों के लिए दुनिया भर में मशहूर विश्व धरोहर फूलों की घाटी को आज सुबह नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क के प्रभागीय वनाधिकारी बीबी मार्तोलिया ने लोकपाल घाटी के जन प्रतिनिधियों, प्रकृति प्रेमियों और पर्यटकों की उपस्थिति में पहले वैली के मुख्य प्रवेश द्वार का पूजन किया। पूजन के बाद 48 पर्यटकों वाले पहले दल को हरी झण्डी दिखाकर फूलों की घाटी की यात्रा का शुभारंभ किया।

बता दें, ‘फूलों की घाटी नंदादेवी बायोस्फेयर रिजर्व का एक हिस्सा है। यह नेशनल पार्क समुद्र तल से 12,995 फीट की ऊंचाई पर स्थित और 87.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। वर्ष 1932 में अपने कामेट पर्वत आरोहण के दौरान बिटिश पर्वतारोही और वनस्पति विज्ञानी फ्रैंक स्मिथ ने अल्पाइन पुष्पों की इस दुर्लभ घाटी की खोज की थी। वर्ष 1982 में इसे राष्ट्रीय पार्क का दर्जा मिला था। वहीं वर्ष 2005 में इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया था।

उत्तराखंड के सीमांत चमोली जिला में मौजूद इस नन्दन कानन फूलों की घाटी पहुंचने के लिए बेस कैंप घांघरिया से करीब 4 किमी पैदल चलना पड़ता है। बेस कैंप घांघरिया तक पहुंचने के लिए गोविन्द घाट से करीब 10 किलोमीटर पैदल चढ़ाई चढ़नी होती है। नन्दा देवी राष्ट्रीय पार्क के डीएफओ बीबी मर्तोलिया ने यहां आने वाले सभी पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों से अपील की है कि वैली के प्राकृतिक सुन्दरता का लुत्फ उठाएं साथ ही इस विश्व धरोहर की स्वच्छता के प्रति भी सचेत रहे। घाटी के दुर्लभ जैव विविधता और पुष्पों को बिना नुकसान पहुंचाये यहां के फ्लोरा और फ्यूना को एक्सप्लोर करें। पहले दिन करीब 48 पर्यटकों ने वैली के लिये पंजीकरण कराया। पिछले वर्ष करीब 13 हजार 761 देशी विदेशी पर्यटक घाटी का दीदार करने पहुंचे थे। वर्ष 2022 में 20,000 से अधिक देशी और विदेशी पर्यटक घाटी घुमने आए थे। वहीं 2019 में 17,424 पर्यटक आए थे।

फूलों की घाटी अपने फूलों के लिए दुनिया भर में मशहूर है। इस घाटी के रोचक बात ये है कि ये घाटी हर 15 दिन में अपना रंग बदल लेती है। फूलों की कुछ प्रजाति ऐसी है, जो आपको सिर्फ यही देखने को मिलती है। फूलों की घाटी दुर्लभ हिमालयी वनस्पतियों से समृद्ध है और जैव विविधता का अनुपम खजाना है। यहां 500 से अधिक प्रजाति के रंग बिरंगी फूल खिलते है। हर साल बड़ी संख्या में देश-विदेश से पर्यटक फूलों की घाटी का दीदार करने आते है। प्रकृति प्रेमियों के लिए फूलों की घाटी से टिपरा ग्लेशियर, रताबन चोटी, गौरी और नीलगिरी पर्वत के बिहंगम नजारे भी देखने को मिलते है।

इस दुर्लभ पुष्पों की घाटी में अलग-अलग मौसम में पांच सौ से अधिक अल्पाइन प्रजाति के रंग-विरंगे पुष्प खिलते हैं। घाटी में सबसे अधिक पुष्प मध्य जुलाई से अगस्त माह में खिलते हैं। यह वह समय होता है, जब यह क्षेत्र एक वनस्पति वंडरलैंड में बदल जाता है। फूलों की घाटी का दीदार करने के लिए भारतीय पर्यटकों से 200 रुपये और विदेशी पर्यटकों से 800 रुपये का प्रवेश शुल्क लिया जाता है।

About the Author: Gunjan Shandilya
समसामयिक मुद्दों पर गहरी समझ और पटकथा लेखन में दक्षता के साथ 10 वर्षों से अधिक का अनुभव। विभिन्न मंचों पर विषयों को रोचक और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की क्षमता। नई पत्रकारिता शैलियों और प्रौद्योगिकियों के साथ कदम से कदम मिलाने में निपुण।

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