भाषा की मुश्किलें हुईं आसान
Authored By: धर्मेंद्र प्रधान, मंत्री, भारत सरकार
Published On: Sunday, April 9, 2023
Updated On: Thursday, June 20, 2024
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मानते हैं कि यदि स्कूल में ही बच्चों को उनकी अपनी भाषा में समझने की सुविधा प्राप्त हो जाए, तो मूल विषयों के प्रति उनकी समझ और बढ़ेगी।
सांस्कृतिक दृष्टि से भारत प्राचीन काल से ही विविधताओं वाला देश रहा है। सदियों से यहां विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएं बोली और लिखी जाती रही हैं। एक बहु-भाषी देश होने के नाते यह भारत की सबसे बड़ी विशेषता है। आपसी संवाद के लिए हमारे पास अनेक भाषाओं और बोलियों का विपुल भंडार है। अलग-अलग क्षेत्रों में पृथक-पृथक भाषा का उपयोग होने के बावजूद यह हमें एक साथ बांधता है और एकजुट रखता है। बहुभाषी होने की यह विशेषता देश-भर में ज्ञान के प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हमारी सरकार द्वारा पिछले दिनों लागू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी इस विचार पर काफी जोर दिया गया है कि भारत की बहुभाषी प्रकृति हमारा एक बड़ा आधार है और इसका राष्ट्र के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास के लिए समुचित उपयोग किये जाने की आवश्यकता है। इस नीति में हर स्तर पर बहुभाषावाद को बढ़ावा देने की सिफारिश की गई है ताकि विद्यार्थियों को अपनी भाषा में अध्ययन करने का पर्याप्त अवसर मिल सके। सभी भारतीय भाषाओं में शिक्षण सामग्री की उपलब्धता इस बहुभाषी संस्कृति को बढ़ावा देगी और यह ‘विकसित भारत’ के निर्माण में बेहतर योगदान दे सकेगी।
शिक्षा के प्रारंभिक चरण में ही विद्यार्थियों को स्थानीय भाषाओं में शिक्षण सामग्री और उन्हें अपनी भाषा में अध्ययन करने का अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने यह प्रयास किया है। बच्चे अपनी भाषा में शुरूआती ज्ञान अर्जित करने के बाद स्कूली शिक्षा में अपने ज्ञान को उसी गति से विस्तार दे पाएं, इसके लिए भारतीय भाषाओं के 52 प्राइमर तैयार किये गये हैं। इन प्राइमरों का उद्देश्य बच्चों को न केवल पढ़ने और लिखने में भाषा की दक्षता हासिल कराना है, बल्कि प्रारंभिक चरण के शिक्षार्थियों के बीच रचनात्मक और विचारशील सोच को बढ़ावा देना भी है। शिक्षा मंत्रालय की पहल पर एनसीईआरटी ने 17 राज्यों की 52 स्थानीय भाषाओं में ये प्राइमर तैयार किये हैं। इनमें स्थानीय स्तर पर बोली जाने वाली भाषाएं तो शामिल हैं ही, इसके साथ ही आदिवासियों व जनजातियों के विकास को ध्यान में रखते हुए उनके सम्पूर्ण समाज द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं को भी शामिल किया गया है। इन सभी स्थानीय भाषाओं में पठन-पाठन से बच्चों में विषय के प्रति अभिरूचि और स्पष्टता बढ़ेगी।
ये प्राइमर उन बच्चों के लिए विशेष तौर पर लाभकारी होंगे, जिन्हें अपने ज्ञान अर्जन के क्रम में विभिन्न भाषाओं से गुजरना पड़ता है। शिक्षार्थियों के लिए ये प्राइमर किसी भाषा की वर्णमाला के अक्षरों व प्रतीकों का उच्चारण करने तथा उन्हें पहचानने और समझने की कुंजी के रूप में भी कार्य करेंगे। यह बच्चों को इन अक्षरों के एक या अधिक सेटों के संयोजन से बने वाक्यों के अर्थों से भी उनका परिचय करायेंगे। आमतौर पर, बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा की शुरूआत उनकी स्थानीय भाषा से होती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मानते हैं कि यदि स्कूल में ही बच्चों को उनकी अपनी भाषा में समझने की सुविधा प्राप्त हो जाए, तो मूल विषयों के प्रति उनकी समझ और बढ़ेगी। खासतौर पर, ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की पढ़ाई में ये प्राइमर बेहद सहायक साबित होंगे। भारतीय भाषाओं के ये 52 प्राइमर युवा शिक्षार्थियों के लिए, विशेष रूप से बचपन में उनकी पढ़ाई की तैयारी और शिक्षा के लिए परिवर्तनकारी कदम होने जा रहे हैं। ये मातृभाषा व स्थानीय भाषा में शिक्षा तक उनकी पहुंच बनायेंगे। इससे उनकी एक प्रेरणादायक यात्रा प्रारंभ होगी और उनमें गहरी समझ के साथ-साथ आजीवन सीखते रहने की क्षमता का विकास होगा। इसके साथ ही ये उन्हें स्वदेशी संस्कृति से और अधिक सहज रूप से परिचित करायेंगे।
जिन राज्यों की विभिन्न बोलियों अथवा भाषाओं को चुना गया है, उन सभी के लिए पृथक-पृथक प्राइमर विकसित किये गये हैं। ओडिशा के लिए छह भाषाएं या बोली चुनी गई हैं। इनमें गदबा, जुआंग, कुई, किसान, संताली ओडिया और सौरा शामिल हैं। इसी प्रकार असम से आठ भाषाओं में प्राइमर बनाये गये हैं, जिनमें असमी, बोडो, देओरी, दिमासा, हमार, कार्बी, मिसिंग और तिवा को स्थान मिला है। मणिपुर की छह भाषाएं अनाल, काबुई (रोंगमई), लियांगमई, मणिपुरी, माओ और तंगखुल को चुना गया है। नगालैंड की पांच भाषाओं अंगामी, एओ, खेजा, लोथा और सुमी में प्राइमर बने हैं। सिक्किम की भूटिया, लेपचा, लिंबू, नेपाली, राई, शेरपा और तमांग समेत सात भाषाओं के लिए प्राइमर बने हैं। आंध्र प्रदेश की जातपा, कोंडा और कोया, अरुणाचल प्रदेश की मिशमी, नयिशी, तांग्सा और वांचो, झारखंड की खरिया, कुरुख और मुंदरी, कर्नाटक की कोदावा और तुलू, छत्तीसगढ़ की हल्बी, हिमाचल प्रदेश की किन्नौरी, मध्य प्रदेश की कोकू, महाराष्ट्र की खानदेशी, मेघालय की गारो, मिजोरम की मिजो, त्रिपुरा की मोघ और पश्चिम बंगाल की संताली बांग्ला में ये प्राइमर बनाये गये हैं।
मैं समझता हूं कि शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने की व्यवस्था मात्र नहीं है, बल्कि चरित्र निर्माण के साथ-साथ राष्ट्र का निर्माण भी इसका उद्देश्य होना चाहिए। हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हुआ है। देश में आज भी करीब 17 करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जो सामाजिक, आर्थिक और भाषा संबंधी कई अन्य कारणों से पारंपरिक तरीके से स्कूली शिक्षा हासिल नहीं कर पा रहे हैं। बच्चों की इन्हीं परेशानियों का हल इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में खोजने का प्रयास किया गया है। प्राइमरों के माध्यम से ज्ञान की राह में भाषा संबंधी कठिनाई दूर करने के लिए शिक्षा मंत्रालय पहले भी ऐसे कई कदम उठा चुका है, जिनकी सहायता से बच्चे शिक्षा और ज्ञान, दोनों अर्जित कर सकते हैं। दृष्टि, वाक् शक्ति या सुनने की शक्ति न रखने वाले बच्चों के लिए सरकार ई-कॉमिक के रूप में एक पुस्तिका लाई है। प्रिया सुगम्यता नाम की यह पुस्तिका ऐसे बच्चों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो रही है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को स्वीकार करने के बाद उस पर शत-प्रतिशत अमल हो, यह हमारी सरकार की प्राथमिकता है। बच्चों की बुनियादी साक्षरता मजबूत हो, यही हमारा ध्येय है ताकि हम विकसित भारत के लिए एक सशक्त एवं विपुल ज्ञान से परिपूर्ण पीढ़ी तैयार कर सकें।
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