हूतियों के हमले से अस्थिर होती अर्थव्यवस्था

Authored By: Sanjay Srivastava

Published On: Tuesday, April 16, 2024

Categories: World News

Updated On: Wednesday, April 24, 2024

hutiyo ke hamle se asthir hoti economy

स्वेज नहर के रास्ते व्यापारिक जहाजों पर हूतियों के हमलों ने केप ऑफ गुड होप के लंबे रास्ते को अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है। इससे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है

स्वेज नहर और निचले लाल सागर में हूतियों के हमले पिछले कई महीनों से बढ़ गए हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और भारतीय नौसेना के तमाम प्रयासों के बावजूद ये हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। सवाल यह है कि क्या उन्हें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ईरान और रूस द्वारा प्रश्रय और मदद मिल रही है? भारतीय ध्वज लगे जहाज पर उनके हालिया हमले की बात झूठी निकली लेकिन पिछले हफ्ते उन्होंने दो अमेरिकी और कुछ दूसरे विदेशी जहाजों पर आक्रमण का असफल प्रयास किया जिसमें अमेरिका ने उनके कई ड्रोन मार गिराये। आर्थिक, व्यापारिक और कूटनीतिक दृष्टि से संसार के सर्वाधिक संवेदनशील इस समुद्री रास्ते स्वेज नहर से हर साल 17000 से ज्यादा व्यापारिक जहाज माल लाते ले जाते हैं। इसी रास्ते से  हम अमेरिका,अफ्रीका, यूरोप, पश्चिमी एशिया से 200 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का व्यापार करते हैं। भारत का 50 प्रतिशत निर्यात और 30 प्रतिशत आयात इसी मार्ग से होता है। हर महीने लगभग 664 अरब रुपये के यूरोप और करीब 500 अरब के मर्चेंडाइज अमेरिका को भेजते हैं, मतलब यूरोप और अमेरिका के साथ मर्चेंडाइज व्यापार का 80 प्रतिशत हिस्सा इसी मार्ग से आता जाता है। फिलहाल इसकी मात्रा आधी रह गई है। 

यूनाइटेड नेशन कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट के अनुसार हमलों के अंदेशों से स्वेज नहर का इस्तेमाल करने वाले जहाज 40 प्रतिशत घट गए और वैश्विक आपूर्ति शृंखला तहस नहस हो गई है। आयात निर्यात प्रभावित होने से राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगाई और कई देशों में ऊर्जा संकट गहराने की आशंका पैदा हो गई। दूसरे देश भी इसके दुष्प्रभावों से अछूते नहीं हैं। 

भारत के तमाम छोटे निर्यातक परेशान हैं, उन्हें अपना माल रास्ता बदल कर अफ्रीका के दक्षिणी छोर केप आॅफ गुड होप से पहुंचाना पड़ रहा है। घूम कर जाने का मतलब भारतीय जहाजों को अपने यूरोपीय ठिकानों पर पहुंचने के लिए 15 से 20 दिन और चाहिए फलत: जहाजरानी के खर्चे में कई गुना बढ़ोत्तरी। एक कंटेनर को ब्रिटेन भेजने में पहले स्वेज नहर के रास्ते 50 हजार रुपये लगते थे, लेकिन अब केप आॅफ गुड होप के रास्ते तीन लाख से ज्यादा लग रहे हैं। सात प्रतिशत तक के मामूली मुनाफे पर काम कर रहे छोटे निर्यातक इस बर्बादी के दौर में लोगों को नौकरी से निकालने को मजबूर हैं। इकोनॉमिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव की रिपोर्ट कहती है कि परिचालन लागत में बढ़ोत्तरी से कुछ वस्तुओं की किल्लत होगी तो बहुतों के दाम बढेंगे। इससे भारतीय निर्यातकों के संभावित खरीदार महंगे भारतीय माल के बजाय तुर्किये जैसे दूसरे देशों के सस्ते विकल्पों की ओर बढ़ेंगे। 

लाल सागर के रास्ते गुजरने वाले कॉमर्शियल ट्रांसपोर्ट की सुरक्षा के लिए अमेरिकी अगुवाई में बने आपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन के मुखिया के अनुसार हमले जल्दी बंद नहीं होंगे। खतरे के मद्देनजर अदन की खाड़ी में सरकार ने रडार की पहुंच से दूर मिसाइलों से लैस आईएनएस कोलकाता और कोच्चि जैसे युद्धपोत तैनात कर दिए तो आसमानी निगरानी के लिए समुद्री टोही विमान तथा ड्रोन से लैस हैं। भारतीय नौसेना ने आशंकित क्षेत्रों में अपने युद्धपोत तैनात करके अपनी सुरक्षा ही नहीं मजबूत की बल्कि कई विदेशी जलयानों, नाविकों को भी बचाया है। हूतियों की नाराजगी न बढ़े इसलिए उसने उनके खिलाफ बहुराष्ट्रीय टास्क फोर्स ऑपरेशन प्रॉस्परिटी गार्डियन से किनारा कर लिया। जग जाहिर है कि गजा में हमास, लेबनान में हिज्बुल्लाह और यमन में हूती विद्रोहियों के पीछे ईरान है। ईरान और रूस से हमारे संबंध बेहतर हैं। ऐसे में भले ही हूती विद्रोहियों ने 35 से अधिक देशों के कॉमर्शियल जहाजों पर 100 से अधिक हवाई हमले किए हों पर उम्मीद है कि वे अब वे भारतीय जहाजों पर हमले नहीं करेंगे लेकिन दूसरे देशों पर उनके हमले आशंकित हैं। 

भारत अमेरिका सहित सभी मजबूत देशों को आगे बढकर दूसरों को समय रहते सतर्क और सशक्त बनाना होगा ताकि इन गतिविधियों पर समय रहते काबू पाया जा सके। हूती हमलों से पूरी तरह निरापद हुए बिना स्थितियां सामान्य नहीं होंगी। इसके लिए हूती विद्रोहियों के पीछे की ताकतों से कूटनीतिक पैंतरों से निबटना होगा। फिलहाल सरकार ने यह विश्वास जताया है कि देश निर्यात के मामले में इस साल भी 2022-23 के 776 अरब अमेरिकी डॉलर के अपने रिकॉर्ड प्रदर्शन को हासिल करेगा। ऐसी स्थितियों में यह लक्ष्य  कठिन लगता है पर सरकार के प्रयास जिस स्तर पर जारी हैं, उम्मीद हैं कि वे रंग लायेंगे।

About the Author: Sanjay Srivastava
15 वर्षों से भी अधिक समय से प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में कार्यरत। वैश्विक मुद्दों की गहरी समझ। विविध विषयों और परिप्रेक्ष्यों पर तार्किक और संतुलित लेखन करने की क्षमता। संवेदनशील और विवादास्पद मामलों को भी निष्पक्ष रूप से रिपोर्ट करने में सक्षम।

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