सेंगोल पर विवाद (Dispute over Sengol): विपक्ष ने इसे लोकसभा से हटाने की मांग क्यों की
Authored By: Gunjan Shandilya
Published On: Thursday, June 27, 2024
Updated On: Thursday, June 27, 2024
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया। इस बीच सेंगोल पर सियासत गरमा गई है। सपा सांसद आरके चौधरी ने स्पीकर को पत्र लिखकर लोकसभा से इसे हटाने की मांग कर दी है।
ठीक एक साल पहले 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ था। उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तमिलनाडु के अधीनम मठ से प्राप्त सेंगोल को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया। यह वही सेंगोल हैं, जो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 को अंग्रेज़ों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर स्वीकार किया था। एक साल बाद अब इस पर विवाद शुरू हो गया है। विवाद की शुरुआत समाजवादी पार्टी (SP) सांसद आरके चौधरी ने की।
आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया। इसके साथ ही 18 वीं लोकसभा के पहले सत्र का विधिवत शुरुआत हो गया। लेकिन इस बीच सेंगोल पर सियासत गर्म हो गई। सपा सांसद आरके चौधरी ने बयान दिया कि स्पीकर के आसन के पास स्थापित सेंगोल को हटाना चाहिए। उनके इस बयान के बाद विपक्ष ने भी सेंगोल हटाने की मांग शुरू कर दी।
आरके चौधरी (RK Choudhary) का स्पीकर को पत्र
समाजवादी पार्टी के मोहनलालगंज लोकसभा सीट से सांसद आरके चौधरी ने कहा कि सेंगोल राजशाही का प्रतीक है। देश में राजतंत्र को खत्म कर लोकतंत्र स्थापित हुआ है। इसलिए लोकसभा से सेंगोल को हटाकर उसके स्थान पर संविधान की प्रति रखनी चाहिए। क्योंकि लोकतंत्र डंडा से नहीं बल्कि संविधान से चलेगा। अपनी इस मांग को लेकर सासंद आरके चौधरी ने स्पीकर को पत्र भी लिखा है। उनके इस पत्र के बाद सेंगोल पर सियासत तेज हो गई है। करने की मांग की है।
विपक्ष की मांग सेंगोल हटे
सपा सांसद के इस मांग का विपक्ष के कई दलों ने समर्थन कर दिया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण कांग्रेस का समर्थन करना है। कांग्रेस की ओर से पार्टी की वरिष्ठ नेता रेणुका चौधरी (Renuka Chowdhary) ने कहा कि सपा सांसद की सेंगोल पर मांग गलत नहीं है। भाजपा इस देश को अपनी मनमर्जी से नहीं चला सकते। सेंगोल को भी नरेन्द्र मोदी मनमर्जी से लगा दिया है। उन्होंने इसके लिए किसी दल के नेताओं से बात नहीं की।
कांग्रेस (Congress) के बाद राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने भी इसका समर्थन किया है। राजद की सांसद एवं लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भर्ती ने भी लोकसभा से सेंगोल हटाने की मांग का समर्थन की। उन्होंने कहा, ‘सेंगोल को हटाना चाहिए। देश में लोकतंत्र है। सेंगोल लोकतंत्र का प्रतीक नहीं है बल्कि राजतंत्र का प्रतीक है। इसे म्यूजियम में लगाना चाहिए। वहीँ उद्धव गुट वाले शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा कि इस देश में संविधान महत्वपूर्ण है। हम इंडिया ब्लॉक में इस पर चर्चा करेंगे।
क्या कहा अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने खुलकर तो इसे हटाने को नहीं कहा लेकिन उन्होंने अपने सांसद की मांग को गलत भी नहीं माना। उन्होंने कहा कि हमारे सांसद ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जब सेंगोल को स्थापित किया गया था, तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसके सामने सिर झुकाया था। इस बार शपथ लेते वक्त वह सर झुकाना शायद भूल गए। मेरी पार्टी ने उन्हें यह याद दिलाने के लिए ऐसा कहा हो सकता है।
एनडीए (NDA) ने किया बचाव
सपा सांसद आरके चौधरी की मांग पर भाजपा और उनके गठबंधन दलों के नेताओं का भी बयान आया है। भाजपा के राज्यसभा सांसद महेश जेठमलानी ने कहा कि सेंगोल राजतंत्र का नहीं राष्ट्र का प्रतीक है। अब इसे कोई नहीं हटा सकता। वहीं केंद्रीय मंत्री एवं रालोद के मुखिया जयंत चौधरी ने कहा कि संविधान को हम सभी मानते हैं। संविधान का ठेका सिर्फ सपा ने नहीं लिया है। सस्ती सुर्खियां बटोरने के लिए ये छोटी बातें करते हैं।
विपक्ष की बंटवारे की राजनीति
आरके चौधरी के बयान पर लोजपा प्रमुख चिराग पासवान की भी प्रतिक्रिया आई है। केन्द्रीय मंत्री चिराग ने इस विवाद पर कहा कि विपक्ष के लोग सकारात्मक राजनीति कर ही नही सकते। ये लोग हमेशा विवाद और बंटवारे की बात करते हैं। इन्हें इनकी जनता ने विकास करने के लिए चुना है। इन्हें अपने क्षेत्रों में विकास कार्य करना चाहिए। सिर्फ विवाद करने से इन्हें ही नुकसान होगा।
क्या है सेंगोल (What is Sengol)
सेंगोल का संबंध चोल साम्राज्य से है। इसके सबसे ऊपरी भाग में नंदी बने हुए हैं। सेंगोल तमिल भाषा का एक शब्द है। इसका अर्थ ‘संपदा से संपन्न’ और ‘ऐतिहासिक’ होता है। इसका अर्थ नीति पालन भी होता है। कहा जाता है कि भारत की आजादी के बाद जब देश की सत्ता अंग्रेजों के हाथों से जवाहरलाल नेहरू के हाथ में आना था तब लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू से इस मौके पर भारतीय परंपरा के बारे में पूछा था। तब नेहरू ने सी राजगोपालचारी से इस बारे में चर्चा की। राजगोपालचारी ने कई ग्रंथों का अध्ययन किया। अपने अध्ययन के बाद उन्होंने सेंगोल की प्रक्रिया को चिन्हित किया। फिर 14 अगस्त 1947 को तमिल पुजारियों के हाथों नेहरू ने सेंगोल स्वीकार किया था। इतिहास में दर्ज है कि नेहरू ने सेंगोल को अंग्रेज़ों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर स्वीकार किया था।
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