हरियाणा में खट्टर के बाद कितनी टक्कर देगी भाजपा
Authored By: Political Bureau, New Delhi
Published On: Thursday, April 18, 2024
Updated On: Wednesday, April 24, 2024
पार्टी के प्रयोग को सही और सफल साबित करने की जिम्मेदारी अब नायब सिंह सैनी की है...
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की तारीफ में कसीदे पढ़ते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अभी 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि अचानक खट्टर पूर्व मुख्यमंत्री की श्रेणी में आ गए। बड़े—बड़े राजनीतिक पंडित इस घटनाक्रम से अचंभित रह गए। किसी को अंदाजा नहीं था कि लोकसभा चुनाव से ऐन पहले भाजपा अपने ही शासित राज्य के मुख्यमंत्री को कुर्सीविहीन कर देगी। इसका जवाब केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह बखूबी देते हैं, ‘नरेन्द्र मोदी का यही तो कमाल है’ यानी प्रधानमंत्री ऐसे निर्णय लेते हैं कि राजनीतिक पंडित भौंचक्के रह जाते हैं। बदले हुए घटनाक्रम में खट्टर को हटाकर भाजपा ने उनके ही करीबी और हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष बनाए और पिछड़े समाज से आने वाले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया तो सवाल लाजिमी था कि ऐसी स्थिति में क्या भाजपा हरियाणा में विपक्ष को मजबूत टक्कर देने की स्थिति में रहेगी? कुछ राजनीतिक विचारकों का मानना है कि लोकसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाना है सो राज्य में कौन मुख्यमंत्री है, इसको लेकर मतदाताओं को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हालांकि साल के अंत में राज्य विधानसभा चुनाव से भी गुजरेगा।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि प्रयोग करने के मामले में भारतीय जनता पार्टी दूसरे दलों से बहुत आगे है। पर भाजपा ने यह प्रयोग ऐसे समय किया जब आम चुनाव की घोषणा होने वाली थी। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान इसके ज्वलंत उदाहरण हैं जहां सत्ता में आने के बाद पार्टी ने शीर्ष नेताओं को नजरअंदाज कर नए चेहरों पर दांव लगाया। यही हरियाणा में भी हुआ। मुख्यमंत्री बदलने के साथ ही मंत्रिमंडल में कई चेहरे बदल दिए गए। मंत्रिमंडल में कद्दावर नेता अनिल विज को जगह नहीं मिली। विज पार्टी से नाराज हैं। उनकी नाराजगी साल 2014 से चली आ रही है जब भाजपा राज्य की सत्ता में आई थी लेकिन विज की जगह मनोहर लाल को मुख्यमंत्री बनाया गया। मनोहर लाल के पूरे कार्यकाल में विज से तनातनी की खबरें आती रहीं।
प्रदेश के एक बड़े नेता कहते हैं, विपक्षी दलों में जितना बिखराव है भाजपा में उतनी ही एकजुटता। इंडियन नेशनल लोकदल, कांग्रेस, जेजेपी और आम आदमी पार्टी अगर एकजुट हो जाए तब जाकर कहीं भाजपा को टक्कर दे पाएगी। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस आईएनडीआईए गठबंधन के तहत एकजुट होने का दम भर तो रही है लेकिन राज्य के जातिगत समीकरण को देखते हुए उन्हें बड़ी सफलता नहीं मिलने वाली। जिस तरह जाट वोटों में बिखराव दिखाई पड़ रहा उसका सीधा लाभ भाजपा को होने जा रहा है। भाजपा गैर जाट वोटों पर नजर बनाए हुए है और यादवों को साधने के लिए गुरुग्राम से सांसद और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत को मजबूत कर अहीरवाल क्षेत्र में अपनी मजबूती बनाने की कोशिश में है।
राज्य में मुख्यमंत्री हटाए जाने का प्रयोग भाजपा ने पहली बार नहीं किया है। इससे पहले वह गुजरात और उत्तराखंड में चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्रियों को हटाने का प्रयोग कर चुकी है। खट्टर को हटाने के पीछे का सटीक तर्क पार्टी के एक वरिष्ठ नेता देते हैं, राज्य में पिछले कुछ सालों में जाट आंदोलन, किसान आंदोलन, नूंह हिंसा, राम रहीम की गिरफ्तारी पर हुई हिंसा आदि कई ऐसी वजहें रहीं जिसने खट्टर की लोकप्रियता को कम किया। हालांकि मनोहर लाल अपनी छवि को लेकर हमेशा सतर्क रहे लेकिन एक कुशल प्रशासक की तरह वे बड़ा निर्णय नहीं ले पाए।
सादगी की मिसाल मनोहर लाल अपनी तीसरी पारी खेलने की तैयारी कर रहे थे लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। हालांकि मनोहर लाल बताते हैं कि वे खुद ही शीर्ष नेतृत्व को कह रहे थे कि राज्य में नए चेहरे को मौका दिया जाए। ये बातें दिल बहलाने के लिए हैं, हकीकत यही है कि मनोहर लाल को पार्टी ने हटाकर राज्य में नया प्रयोग किया है। देखना दिलचस्प होगा कि लोकसभा चुनाव में पार्टी का जो लक्ष्य है वह कितना हासिल होता है।
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