राहुल-प्रियंका कराएंगे बेड़ा पार!
Authored By: विशेष संवाददाता, गलगोटियाज टाइम्स
Published On: Thursday, April 13, 2023
Updated On: Thursday, June 20, 2024
देश की सबसे पुरानी पार्टी का तमगा लेकर कांग्रेस आज संघर्ष के दौर से गुजर रही है। आईएनडीआईए महागठबंधन बनाकर पार्टी को भले ही सुर्खियां मिल रही हों लेकिन लोकसभा चुनाव में कैसे बेड़ा पार होगा यह कह पाना मुश्किल है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी का तमगा लेकर कांग्रेस आज संघर्ष के दौर से गुजर रही है। आईएनडीआईए महागठबंधन बनाकर पार्टी को भले ही सुर्खियां मिल रही हों लेकिन लोकसभा चुनाव में कैसे बेड़ा पार होगा यह कह पाना मुश्किल है। देश की आजादी के पहले के दौर से लेकर पिछले दशक तक राष्ट्रीय राजनीति में दबदबा रखने वाली पार्टी आज केवल कुछ ही राज्यों में सिमट कर रह गई है। कांग्रेस केवल तीन राज्यों-कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना में अपने दम पर सत्ता में है। कर्नाटक, केरल, बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में कांग्रेस के साथ आईएनडीआईए महागठबंधन कुछ मजबूत स्थिति में जरूर है लेकिन इतने के दम पर ही लोकसभा में जीत के बारे में सोचना एक दिवास्वप्न जैसा ही है।
लगभग पूरे उत्तर भारत और हिन्दी भाषी क्षेत्र में कांग्रेस की जमीन कमजोर हुई है तथा वह अपनी सियासी विरासत को खो रही है। कैप्टन अमरिंदर सिंह, गुलाम नबी आजाद, आरपीएन सिंह एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दर्जनों नामी-गिरामी चेहरे कांग्रेस को छोड़ चुके हैं और पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा में नेतृत्व करने योग्य प्रत्याशियों के संकट से गुजर रही है। कांग्रेस का यह बिखराव राष्ट्रीय राजनीतिक नेतृत्व को कमजोर कर रहा है। पिछले 10 वर्षों से अनेक गंभीर मुद्दों के होने के बावजूद कांग्रेस एक सक्षम विपक्ष की भूमिका को ठीक से नहीं निभा सकी है।
कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गांधी ने हालिया समय में अपनी भारत जोड़ो और न्याय यात्रा के जरिए लोगों को जोड़ने और कांग्रेस को फिर से उबारने की कोशिश जरूर की है, लेकिन विस्मय करने वाली बात यह है कि इसमें कांग्रेस के पुराने दिग्गजों ने कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभाई और आईएनडीआईए के घटक दलों ने क्षेत्रीय राजनीति में नफा-नुकसान को समझकर तटस्थता दिखाकर लोकसभा चुनाव में इसके लाभ को सीमित कर दिया है।
आईएनडीआईए के सबसे बड़े घटक दल कांग्रेस ने लगातार दो बार 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बड़ी हार का सामना किया है। इससे उसकी राजनीतिक छवि काफी धूमिल हुई है। 2024 के इस आम चुनाव में कांग्रेस और गांधी परिवार को अपने वजूद के लिए कड़ी लड़ाई का सामना करना पड़ रहा है और अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कांग्रेस महागठबंधन के घटक क्षेत्रीय दलों से अलग-अलग प्रदेशों में सीट बंटवारे को लेकर नतमस्तक नजर आ रही है। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और पंजाब एवं दिल्ली में आप पार्टी कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे हैं। चुनाव से पहले ही बिखरते महागठबंधन को देखकर 2024 का आम चुनाव एकतरफा होता ही नजर आ रहा है, जहां बिना किसी प्रतिस्पर्धा के भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की जीत का रास्ता साफ नजर आ रहा है।
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