योगी का दिखेगा करिश्मा!
Authored By: Kumar Harsh, Senior Writer and Journalist
Published On: Thursday, April 18, 2024
Updated On: Wednesday, April 24, 2024
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ यूपी में भाजपा को योगी आदित्यनाथ जैसे करिश्माई नेता की अगुआई हासिल है जिन्होंने केवल सात साल के अपने मुख्यमंत्रित्व काल में स्वयं को न केवल प्रदेश बल्कि देश के प्रथम पंक्ति के नेता के रूप में स्थापित कर लिया है...
पुरानी कहावत है कि कई बार एक ही सवाल का जवाब खोजने के लिए दस जगह भटकना पड़ता है और कभी कभी दस सवालों के जवाब एक ही जगह मिल जाते हैं। आसन्न लोकसभा चुनावों में यूपी ऐसी ही एक जगह है जहां से कई बड़े सवालों का जवाब एकमुश्त हासिल हो सकता है। पहले निगाह उन सवालों पर जिसके जवाब यूपी से ही मिलेंगे। पहला सवाल-भाजपा क्या लगातार तीसरी बात स्पष्ट बहुमत से देश की सत्ता पर पकड़ बनाये रख सकेगी? सीटों के मामले में यूपी में इकाई तक सिमटते हुए सत्ता से दूर होते गए विपक्षी दल क्या इस बार अपनी संख्या बढ़ा पाएंगे? यदि यूपी में भाजपा जीतती है तो इसका बड़ा श्रेय किसको जायेगा? इन सब सवालों के अलावा यूपी के पास लाख टके के उस सवाल का जवाब भी है कि इन चुनावों के नतीजे मोदी और योगी दोनों में से किसे ज्यादा फायदा या नुकसान पहुंचाएंगे। सवालों के ताले खोलने की ये कुंजी अकारण ही यूपी के हाथ नहीं आई है। कहा जाता है कि अगर यूपी को एक स्वतंत्र देश मान लें तो यह दुनिया का छठवां सबसे बड़ा देश होगा…
दरअसल, लोकसभा चुनाव के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश की सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य है। यहां से सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीट आती हैं। इसके बाद दूसरी सबसे ज्यादा 48 सीटें महाराष्ट्र से आती हैं यानी लगभग आधी। इसलिए अक्सर कहा भी जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से ही तय होता है यानी जिस पार्टी के पास यूपी में सबसे अधिक सीटें हों, उसका रास्ता प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए खुद बन जाता है। भारत के प्रधानमंत्रियों की सूची इसकी पुष्टि कर सकती है जहां दर्ज 14 नामों में से कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर दर्ज गुलजारी लाल नंदा का नाम हटा दें तो शेष 13 में से 8 संसद में यूपी का ही प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं।
2014 में अपनी खुद की पार्टी और देश की सियासत में निर्णायक भूमिका हासिल करने के उपक्रम में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की अपनी मजबूत और भरोसेमंद सीट की जगह जब वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया था तभी यह स्पष्ट हो गया था कि भाजपा की युद्ध योजना में यूपी की कितनी अहमियत रहने वाली है। चुनावों में भाजपा प्रचंड बहुमत से जीती थी और उसके बाद से हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में वह यूपी में लगातार मजबूत होती गई है।
पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए में बीजेपी और अपना दल (एस) एक साथ मिलकर लड़े थे और एनडीए का 51.19 प्रतिशत वोट शेयर रहा था, जिसमें बीजेपी के खाते में 49.98 प्रतिशत और अपना दल (एस) को 1.21 प्रतिशत वोट शेयर मिला था। वहीं महगठबंधन (बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल) को 39.23 प्रतिशत वोट शेयर मिला था, जिसमें बसपा को 19.43 प्रतिशत, सपा को 18.11 प्रतिशत और रालोद को 1.69 प्रतिशत वोट मिला था। इसके अलावा कांग्रेस को इस चुनाव में मात्र 6.36 वोट शेयर मिला था।
इस बार एनडीए ने राष्ट्रीय लोकदल को अपने पाले में खींच लिया है और बसपा अकेले चुनाव लड़ने जा रही है। ऐसी दशा में सत्तारूढ़ एनडीए आश्वस्ति का अनुभव कर रहा है। प्रदेश में अभी एनडीए का पलड़ा काफी भारी है, लेकिन यदि सपा और कांग्रेस ओबीसी, मुस्लिम अल्पसंख्यक के साथ-साथ अनुसूचित वर्ग से भी एक हिस्से को अपने पक्ष में लाने में सफल हो जाता है तो इंडि गठबंधन 2014 और 2019 की तुलना में कम से कम दो दर्जन सीटों पर चुनाव फंसा देने में कामयाब रह सकता है। उत्तर प्रदेश में इतना बदलाव ही 2024 की दशा-दिशा को बदलने के लिए काफी रहने वाली है, लेकिन भाजपा की चुनावी मशीनरी के रणनीतिकार आसानी से ऐसा होने देंगे।
यूपी में भाजपा के तूणीर में एक से बढ़कर एक अस्त्र हैं। अप्रूवल रेट यानी जन स्वीकार्यता के मामले में पीएम नरेन्द्र मोदी दूसरे सभी नेताओं से मीलों आगे हैं। राम मंदिर आंदोलन को चुनावी वर्ष में चरम परिणति तक पहुंचा देने के बाद पार्टी व्यापक स्तर पर एक लामबंद स्वीकार्यता हासिल करने की बात मानती है। सरकार की गरीब कल्याण योजनाओं के लाभ वितरण का मामला हो या आधारभूत ढांचे में तेजी से बदलाव करने का विषय हो, भाजपा यूपी में अग्रगामी अश्वों के रथ पर सवार है।
…और इन सबसे अलग यूपी में उसे योगी आदित्यनाथ जैसे दूसरे करिश्माई नेता की अगुआई हासिल है जिन्होंने केवल सात साल के अपने मुख्यमंत्रित्व काल में खुद को न केवल प्रदेश बल्कि देश के प्रथम पंक्ति के नेता के रूप में स्थापित कर लिया है। माफियाओं के खिलाफ बेहद आक्रामक अभियान, कानून व्यवस्था के मोर्चे पर कठोर रुख और यूपी को इन्वेस्टमेंट हब बनाने में की गई अनेक कामयाब कोशिशों ने उनकी छवि को खासी मजबूती दी है। उनके प्रभाव का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि आगामी चुनावों में उनकी पार्टी दस राज्यों में उनकी विशाल रैलियों की तारीखें तय कर चुकी है। मगर राजनीति की राहें गणित से कम और रसायनशास्त्र से ज्यादा प्रभावित होती रहती हैं। यूपी में उसके खाते में उपलब्धियों की लंबी फेहरिश्त के साथ कुछ असुविधाजनक मुद्दे भी हैं। इनमें लगातार पेपर लीक जैसे वे भावनात्मक मुद्दे भी हैं जो युवाओं को चुभते हैं। 3313 टीजीटी, 850 पीजीटी और 1017 असिस्टेंट प्रोफेसरों के पदों पर भर्ती के आवेदन 2022 में आ चुके हैं। 13 लाख से अधिक आवेदक दो साल से इंतजार कर रहे हैं। 6365 एलटी के पदों पर भर्ती के लिए 2022 में अधियाचन माध्यमिक शिक्षा निदेशालय की ओर से लोक सेवा आयोग को भेजा गया। समकक्ष अर्हता को लेकर मामला दो साल से लंबित है। 896 सहायक सांख्यिकी अधिकारी/ सहायक शोध अधिकारी (एएसओ-एआरओ) की भर्ती प्रक्रिया अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने 2019 में शुरू की और अब तक यह पूरी नहीं हो पाई। ऐसे अनेक मुद्दे इस मजबूत सरकार को असहज बनाते हैं।
राजनीतिक जंग के नजरिये से देखें तो कुछ चुनौतियां भी हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2022 में प्रदेश में लगातार दूसरी बार सरकार बनाई। इसके बावजूद पूर्वांचल में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं था। वर्ष 2022 में आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र की सभी पांच विधानसभा सीटों पर बीजेपी को हार झेलनी पड़ी। इसी तरह से लालगंज (सु.) लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों पर भी भाजपा हारी। गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों में से एक पर भी भाजपा उम्मीदवार जीत दर्ज नहीं कर सका था। घोसी लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक पर भाजपा को जीत मिली। जौनपुर लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों में भाजपा दो पर ही जीत दर्ज कर पाई।
हालांकि आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी की सभी 80 सीटों को जीतने का दावा कर रही बीजेपी ने इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके चलते प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों को 20 क्लस्टर में विभाजित किया गया है। इसमें 5 क्लस्टर हारी हुई सीटों के हैं और 15 क्लस्टर जीती हुई सीटों के बनाए गए हैं। बीजेपी ने यूपी सरकार के मंत्रियों और पार्टी के नेताओ को इन क्लस्टरों का प्रभारी भी नियुक्त किया है। खुद योगी कह रहे हैं कि 2024 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी 2019 से भी अधिक सीटें जीतकर केंद्र में सरकार बनाएगी। जहां संभावनाएं होती हैं, वहीं उम्मीद तलाश की जाती है और उत्तर प्रदेश संभावनाओं वाला प्रदेश है। परिणाम आएंगे तो हर किसी की बोली बंद हो जाएगी। उनका यह आत्मविश्वास एक तरफ पार्टी की उम्मीदों को परवान चढ़ाता है तो दूसरी तरफ उन तमाम अटकलों का बाजार भी गर्म कर देता है जिसमें चुनाव बाद उनके दिल्ली प्रस्थान जैसी चचार्एं शामिल होती हैं।
प्रेक्षकों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि ये चुनाव नरेन्द्र मोदी से ज्यादा निर्णायक योगी आदित्यनाथ के लिए हैं जो राष्ट्रीय और पार्टी राजनीति में उनका कद और असर तय करेगा… कुछ का यहां तक मानना है कि यूपी में अच्छे और बुरे दोनों प्रदर्शन की स्थिति में योगी का स्थान परिवर्तन हो सकता है। वे दिल्ली जा भी सकते हैं और बुलाये भी जा सकते हैं। हालांकि योगी इसे निरर्थक चर्चा बताते हुए कहते हैं कि उनकी किसी भी पद को लेकर कोई महत्वाकांक्षा नहीं है।
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