बहुजन राजनीति (Bahujan Politics): अब माया से आकाश तक

Authored By: विशेष संवाददाता, गलगोटियाज टाइम्स

Published On: Wednesday, June 26, 2024

Categories: Politics

Updated On: Wednesday, June 26, 2024

चुनाव में आकाश आनंद ने मंझे हुए राजनेता की तरह भाषणों का दौर शुरू किया तो बसपा की रैलियों में भीड़ उमड़ने लगी। बसपा के गैर समर्थकों में भी आकाश की चर्चा होने लगी।

मायावती ने बीते हफ्ते अपने भतीजे आकाश आनंद (Akash Anand) को एक बार फिर अपना सियासी वारिस बनाया। इससे यूपी ही नहीं, पूरे देश के राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। हो भी क्यों न। केवल डेढ़ माह पहले जिस शख्स को अपरिपक्व कहकर मायावती ने अपने उत्तराधिकारी के साथ बसपा के नेशनल कोआर्डिनेटर (National Coordinator) के पद से भी हटा दिया था, उसी भतीजे में अचानक उन्हें अपनी राजनीति का ‘आकाश’ दिखने लगा। लाख टके का सवाल है कि आखिर क्यों? महज डेढ़ माह में किसी को परिपक्वता कैसे आ सकती है, वह भी राजनीति के मैदान में। मायावती के इस हतप्रभ करने वाले फैसले के पीछे की कहानी को समझना होगा।

फायरब्रांड नेता आकाश

दिसंबर 2023, बसपा प्रमुख ने अपने छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे आकाश को अपनी राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी बना दिया। आकाश बसपा के नेशनल कोआर्डिनेटर तो चार वर्ष पहले ही बन चुके थे। अब पार्टी में उनसे ऊपर सिर्फ बुआ जी थीं। लोकसभा चुनाव में आकाश आनंद ने मंझे हुए राजनेता की तरह भाषणों का दौर शुरू किया तो बसपा की रैलियों में भीड़ उमड़ने लगी। बसपा के गैर समर्थकों में भी आकाश की चर्चा होने लगी। उनके बोलने का अंदाज और राजनीतिक विरोधियों पर तीखे आरोप। लगा कि लंबे समय बाद बसपा (BSP) को कोई फायरब्रांड नेता मिला है, लेकिन यह सिलसिला अधिक दिन चला नहीं औऱ लोकसभा चुनाव के बीच में ही मायावती ने उन्हें विरासत से बेदखल कर दिया।

किंतु-परंतु के सागर के बीच मायावती की राजनीतिक रणनीति या विवशता को लेकर कयास की बूंदें उमड़ने लगीं। लेकिन सत्य क्या है कोई नहीं जानता। लगा था कि आकाश का वनवास लंबा होगा। पर अचानक बुआ जी मेहरबान हुईं और सार्वजनिक रूप से भतीजे के सिर पर हाथ फेरकर फिर से उत्तराधिकार सौंप दिया।

आकाश के वापसी के कारण

कहानी बिल्कुल फिल्मी लगती है। पर है नहीं। राजनीति चीज ही इस प्रकार की है कि कब क्या फैसला लेना पड़े, बड़े-बड़े दिग्गज भी नहीं जानते। आकाश की वापसी के पीछे भी कई कारण गिनाए जा रहे हैं। पर इनमें सबसे अहम दो हैं। एक बसपा का इस लोकसभा चुनाव में पत्ता साफ होना। लोकसभा में बसपा के एक भी सांसद नहीं है। पिछली बार 10 थे। हारे हुए प्रत्याशियों में से अधिकांश ने बहनजी को फीडबैक दिया है कि यदि आकाश बने रहते तो बसपा की स्थिति चुनाव में बेहतर हो सकती थी।

मायावती के लिए चुनौती बना चंद्रशेखर

अब दूसरा कारण समझिए, चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज की राजनीति का नया चेहरा। करीब छह वर्ष पहले अचानक राजनीतिक क्षितिज पर चमका यह युवा चेहरा, गाहे-बेगाहे बसपा को चुनौती देता दिखता रहा। लेकिन कभी चुनौती दे नहीं सका। अब हालात दूसरे हैं। चंद्रशेखर अब सांसद हैं। वह नगीना लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बन चुके हैं।

यानि बहुजन राजनीति की बिसात पर मोहरों की चाल बदल चुकी है। मायावती ने इसे भांप लिया है। तभी आजाद के सामने आकाश को मैदान में उतार दिया है।

चंद्रशेखर बनाम आकाश (Chandrasekhar vs Akash)

गौर कीजिए, लोकसभा चुनाव में आकाश के निशाने पर चंद्रशेखर आजाद ही थे। आकाश ने नगीना लोकसभा क्षेत्र से ही अपनी चुनावी रैली का आगाज किया था। दरअसल, बहुजन राजनीति के इस मैदान में बुआ एक है और भतीजे दो। चंद्रशेखर भी बरसों पहले खुद को मायावती का भतीजा कह चुके हैं। हालांकि बसपा प्रमुख ने इससे इंकार किया था।

मायावती की परिपक्व चाल

जब 2019 में बसपा ने सपा के साथ गठबंधन में दस सीटें जीतीं तो मान लिया गया कि यूपी की बहुजन राजनीति में चंद्रशेखर का माया फैक्टर पर असर नहीं होगा। पर हालिया लोकसभा चुनाव ने स्थितियां बदल दी हैं। बदली परिस्थितियों को तेजी से भांपने वाली मायावती ने तत्काल असली भतीजे को ‘परिपक्व’ करना ही उचित समझा। क्योंकि सियासी बिसात में जो सही समय पर सही चाल चले, वही तो परिपक्व होता है।

निसंदेह आकाश एक राजनेता के तौर पर प्रभावित करते हैं। क्राउड पुलर हैं। पढ़े-लिखे हैं। माया की विरासत इस समय छिटकी-ठिठकी भले लग रही हो, लेकिन कांशीराम की सींची और मायावती की मेहनत से सजी इस समय उनके जैसे किसी समझदार और प्रभावित करने वाले युवा नेता की ही राह ताक रही है। देखना दिलचस्प होगा कि मायावती का यह फैसला कितना परिपक्व साबित होता है।

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