डी गुकेश प्यादे से राजा बनने की स्वप्निल यात्रा
Authored By: Senior Sport Reporter, Galgotias Times
Published On: Saturday, April 27, 2024
Updated On: Saturday, April 27, 2024
डी गुकेश। महज एक पखवाड़े पहले इस नाम से शतरंज जगत के कुछ लोग ही परिचित हुआ करते थे। आज पूरा देश इस 17 वर्षीय बालक को सलाम कर रहा है, प्रेरणास्रोत बता रहा है, उनकी बुद्धि, प्रतिभा और साहसिक खेल का कायल हो चुका है।
क्रिकेट के दीवाने देश में शतरंज जैसे काले-सफेद मोहरों के खेल के किसी खिलाड़ी के भी जीवन में महज एक टूर्नामेंट के बाद आने वाला इस प्रकार का बड़ा बदलाव किसी स्वप्न के साकार होने सरीखा है। गुकेश के लिए भी इस जीत का कुछ यही भाव है। वह आज स्टारडम के नए आकाश पर हैं किंतु माना जा रहा है कि अभी उन्हें सफलता और शोहरत के नए आयाम गढ़ने है।
टोरंटो में इसी सप्ताह कैंडीडेट्स शतरंज टूर्नामेंट संपन्न हुआ। वहां गुकेश नाम का यह किशोर भी पहुंचा था। गुकेश के बारे में जानने से पहले आइए कैंडीडेट्स शतरंज टूर्नामेंट के बारे में जान-समझ लिया जाए। शतरंज के खेल में इस अतिकठिन टूर्नामेंट को बहुत प्रतिष्ठित प्रतियोगिता के तौर पर लिया जाता है। गैरी कास्परोव ने इसके पहले कैंडीडेट्स शतरंज टूर्नामेंट में इतिहास रचा था जब उन्होंने 1985 में अनातोली कारपोव को पराजित किया था। वैसे इसका इतिहास बहुत पुराना है। 1886 में वेल्हम स्टेनिज ने पहली बार इस क्लासिकल शतरंज का खिताब हासिल किया था।
अब बात गुकेश की। टूर्नामेंट में जाने से पहले ही विश्व शतरंज के दो सबसे बड़े नामों, विश्वनाथन आनंद और मैग्नस कार्लसन ने गुकेश की जीत की संभावनाओं को खारिज कर दिया था। विश्व चैंपियन रहे आनंद और शतरंज के धुरंधर कालर्सन ने इसके पीछे उनके कम अनुभवी होने को प्रमुख कारण बताया था क्योंकि कैंडीडेट्स शतरंज टूर्नामेंट में विश्व के आठ खिलाड़ी भाग लेते हैं जो दक्षता के अलग ही स्तर पर होते हैं। गुकेश के लिए दो महान खिलाड़ियों का यह आकलन बेहद दबाव वाला रहा होगा, विशेषकर तब जबकि आनंद उनके गुरु रहे हैं। वेस्टिज आनंद शतरंज एकेडमी में गुकेश ने उनसे इस खेल की बारीकियां सीखी-समझी हैं। जब वहीं से उनकी प्रतिभा पर शुबहा किया गया तो इस किशोर के लिए खुद पर विश्वास रख पाना कठिन हो गया होगा, लेकिन साहब, गुकेश तो किसी और मिट्टी के ही बने हैं। वह मिट्टी जिसने उन्हें 12 वर्ष की छोटी सी आयु में ग्रैंडमास्टर बनाया, एक बार फिर परीक्षा के लिए तैयार थी। संकल्प की इस मिट्टी ने गुकेश को कुछ यूं गढ़ा कि वह सबसे कम उम्र के कैंडीडेट्स शतरंज बनकर पूरे विश्व में छा गए। अखबारों की सुर्खियां बनें, टीवी चैनलों की हेडलाइन और शतरंज के दिग्गजों के बीच चर्चा का विषय।
रोचक यह कि गुकेश का परिचय केवल इतना ही नहीं है। उनका अटल आत्मविश्वास और जूझने की क्षमता काबिले तारीफ है और अनुकरणीय भी, विशेषकर आजकल के उन युवाओं के लिए जो शार्टकट सफलता में यकीन करने लगे हैं। टोरंटो में जब प्रतियोगिता आरंभ हुई तो आनंद और कार्लसन द्वारा खारिज किए जाने का बोझ तो गुकेश पर था ही, पहले ही मैच में अलीराजा फिरोजा के हाथों नाटकीय हार ने तो मानों उम्मीदों पर बिजली ही गिरा दी। इस मैच में गुकेश बेहतर पोजीशन में थे, लेकिन अचानक आखिरी कुछ सेकंड का एक एडवेंचर उन पर भारी पड़ा और शिकस्त मिली। उनकी उम्र का कोई और खिलाड़ी होता तो शायद टूट चुका होता, लेकिन ये बंदा तो बिंदास है। डटा रहा और अगले ही मैच में जो वापसी की, उसे बाद में अलीराजा को हराकर कायम भी रखा और दुनिया को बताया भी कि आई हैव एराइव्ड। अब तक लोगों को उनमें आशा की किरण दिखने लगी थी। बाकी कहानी तो हम सब जानते ही हैं।
सफल व्यक्ति के पीछे कुछ चेहरे होते हैं। गुकेश की सफलता में भी कुछ नाम हैं। दक्षिण के अभिनेता रजनीकांत का नाम लेते ही सुपरमैन सी छवि सामने आती है। कुछ भी कर सकने में सक्षम व्यक्ति, शिवाजी द बास, रोबोट के वशीकरण या फिर चश्मे को कई बार घुमाकर पहनने वाला नायक। रजनीकांत से गुकेश की सफलता का भी करीबी नाता है। उनके पिता का नाम भी रजनीकांत है जो पेशे से डाक्टर हैं और सिल्वर स्क्रीन पर चमत्कार करने वाले अभिनेता रजनीकांत की तरह चमत्कारी भी। गुकेश की मां पद्मकुमारी के साथ मिलकर उन्होंने शतरंज की कठिन राहों को अपने बेटे के लिए सुगम बनाने के लिए खुद पथरीली राहों को पार किया है। इस चिकित्सक दंपत्ति के लिए गुकेश के शतरंज खेलने के सपने को पूरा करना आसान नहीं था क्योंकि विश्व स्तरीय शतरंज के लिए कोचिंग, टूर और प्रतियोगिताओं में भाग लेने पर खासा खर्च होता है। इस हालात में डा. रजनीकांत और डा. पद्मकुमारी के मित्र आगे आए, वाट्सएप पर क्राउंडफंडिंग की गई और जब गुकेश ने कैंडीडेट्स शतरंज टूर्नामेंट जीता तो वह केवल मान-सम्मान से भरी गौरवगाथा ही नहीं थी, माता-पिता और शुभचिंतकों के प्रति व्यक्त किया गया आभार भी था। चेन्नई के गुकेश के नाम इतिहास का तीसरा सबसे कम उम्र का ग्रैंडमास्टर बनने का रिकार्ड होने के साथ 2,700 की चेस रेटिंग हासिल करने में तीसरे सबसे युवा खिलाड़ी होने की उपलब्धि भी है। कुल मिलाकर गुकेश केवल एक खिलाड़ी नहीं हैं, वह, उनका परिवार और पारिवारिक मित्र प्रेरणास्रोत हैं, भारत के हजारों-हजार युवाओं, अभिभावकों और नागरिकों के लिए जो खेल में आगे बढ़ना चाहते हैं, बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहते हैं। खेलते रहिए, बढ़ते रहिए, इतिहास रचते रहिए…
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