emergency 1975 bharat ka ek kala adhayay

भारत का काला अध्याय

इस आपातकाल को ‘भारत का काला अध्याय’ कहा जाता है. यह एक ऐसा समय था जब सत्ता का केंद्रीकरण अपनी चरम सीमा पर था और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गला घोंट दिया गया था. न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठे, और संविधान में ऐसे बदलाव किए गए जिन्होंने सरकार की शक्ति को और बढ़ा दिया. इस अवधि में जबरन नसबंदी जैसे विवादास्पद कार्यक्रम भी चलाए गए, जिसने जनता के बीच गहरा भय पैदा किया.

आपातकाल की घोषणा के पीछे कई कारण बताए जाते हैं – आंतरिक अशांति, आर्थिक संकट, और इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय का प्रतिकूल फैसला जिसने रायबरेली से उनके चुनाव को अमान्य कर दिया था. लेकिन इन सब के मूल में सत्ता को बनाए रखने की अभूतपूर्व इच्छाशक्ति थी. यह एक ऐसा समय था जब भय का माहौल था, जहां लोग अपनी बात कहने से डरते थे, जहां पुलिस और प्रशासन की शक्ति असीमित हो गई थी. Read more

इमरजेंसी लगाने के पीछे क्या था कारण

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इमरजेंसी की पृष्ठभूमि

इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत साल 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान के बीच जंग से होती है. इस युद्ध में 93000 पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सेना के आगे सरेंडर कर देते हैं. पाकिस्तान यह जंग हार जाता है और पूर्वी पाकिस्तान एक नया देश बांग्लादेश बन जाता है. तब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं जिन्होंने जंग का बड़ा फैसला लिया था. उनके इस फैसले की चर्चा वाशिंगटन की सड़कों तक थी. भारत में जनता उन्हें किसी महान नायिका के रूप में देखने लगी थी. नतीजतन युद्ध के बाद इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी को इसका बड़ा फायदा मिला.

युद्ध के बाद देश में आम चुनाव हुए. जनता ने इंदिरा गांधी पर खूब प्यार बरसाया. उन्हें और उनकी पार्टी को 352 सीटें मिलीं. इंदिरा गांधी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया. इंदिरा गांधी ने यूपी के रायबरेली से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. उन्होंने समाजवादी पार्टी के राजनारायण को मात दी थी.

inflation main reason of emergency

महंगाई – आपातकाल की पृष्ठभूमि

कहा जाता है कि आप भले ही दुनिया में हजारों युद्ध जीत लें, लेकिन अगर देश के अंदर जनता ही संतुष्ट न हो तो सबकुछ व्यर्थ माना जाएगा. ठीक ऐसा ही कुछ भारत के नागरिकों के साथ था. 1971 के जंग के बाद कई चीजें देशहित में नहीं गईं. भारत की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही थी. हजारों – लाखों शरणार्थी और युद्ध के बाद बढ़ती महंगाई देश के विकास को रोक रही थी. देश में कई क्षेत्रों में जनता मूलभूत सुविधाओं के लिए मोहताज थी. वे सत्ता में बदलाव देखना चाहते थे.

धीरे-धीरे यह जन आक्रोश आंदोलन का रूप लेने लगा. जगह जगह सरकार के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे. इसमें छात्रों ने भी बढ़ चढ़कर भाग लिया. गुजरात में इसका रिएक्शन तीव्र देखा गया. गुजरात के मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे. तभी 1973 में मोरबी इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने भोजन बिल में वृद्धि को लेकर प्रदर्शन उग्र कर दिया. इसका नाम नवनिर्माण आंदोलन रखा गया. इस आंदोलन की लहर पूरे भारत में आग की तरह फैली. परिणामस्वरूप मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा. इंदिरा गांधी को मजबूरन राज्य की कांग्रेस सरकार को हटाकर वहां राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा.

bihar and jayaprakash narayan total revolution

बिहार और जयप्रकाश नारायण की ‘संपूर्ण क्रांति’

‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ के नारे के साथ जेपी ने भरी हुंकार…’

इस आंदोलन को जेपी यानी जयप्रकाश नारायण का भी साथ मिला. गुजरात से शुरू हुआ ये आंदोलन अब बिहार की राजधानी पटना तक पहुंच गया. बिहार में छात्र नेता मार्च में होने वाले विधानसभा सत्र में राज्यपाल को रोकने की तैयारी कर चुके थे. जयप्रकाश ने पहले इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया और बाद में इसका नेतृत्व किया. इस दौरान भी पुलिस ने बल प्रयोग किया. धीरे-धीरे जयप्रकाश बाबू छात्रों एवं विपक्षी नेताओं को एक साथ लाने में सफल रहे.

15 जून, 1975 को पटना में आयोजित ऐतिहासिक रैली में जयप्रकाश नारायण ने ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया. ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’- रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की इन पंक्तियों को जेपी ने अपने आंदोलन के नारों में शामिल कर लिया था. जेपी के जज्बे ने देश की राजनीति की हवा का रुख ही पलट दिया था. उसी दशक में ‘इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया’ भी कहा जाता था.

allahabad high court verdicts on emergency

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले से इंदिरा गांधी को लगा झटका

इस सब के बीच राजनारायण इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंच गए. उन्होंने यह आरोप लगाया कि आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने चुनावी फायदे के लिए गलत तरीके से सरकारी मशीनरी का उपयोग किया. यह पहली बार था जब किसी प्रधानमंत्री को कोर्ट जाना पड़ा. 12 जून, 1975 को जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इस पर फैसला सुनाया. रोचक बात यह है कि उसी दिन जस्टिस सिन्हा का जन्मदिन था. उसी दिन उन्होंने एक तरह से सर पर कफन बांधकर एक प्रधानमंत्री के खिलाफ फैसला सुनाया. उन्होंने इंदिरा गांधी के चुनाव को शून्य घोषित कर दिया. इसके साथ ही 6 साल के लिए इंदिरा गांधी को किसी भी संवैधानिक पद के लिए अयोग्य ठहरा दिया.

petition in supreme court agianst emergency

सुप्रीम कोर्ट में याचिका

फैसले से असंतुष्ट इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. 24 जून, 1975 को जस्टिस वी. आर. कृष्णा अय्यर ने फैसला सुनाया जिसमें कहा गया कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के पद पर तो रह सकती हैं लेकिन संसद में वोट नहीं दे सकतीं तथा सांसद के रूप में मिलने वाले वेतन और भत्ते की भी हकदार नहीं होंगी. इससे इंदिरा गांधी को बड़ा झटका लगा. इसने उन्हें काफी सोच विचार करने के लिए मजबूर कर दिया. बस इसके बाद इंदिरा गांधी ने बड़ा निर्णय ले लिया. यह निर्णय था देश को अब वह आपातकाल लगाकर चलाएंगी.

crowd of people aganist emergency in ramlila maidan

दिल्ली का रामलीला मैदान, जेपी और लाखों की भीड़

कोर्ट के फैसले के बाद, ‘लोकनायक’ जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा से गद्दी छोड़ने को कहा. 25 जून, 1975 की शाम को नई दिल्‍ली के रामलीला मैदान का नजारा देखने लायक था. उस जगह एक साथ इतने लोग कभी नहीं जुटे थे. यही वो जगह थी जब जेपी ने बुलंद आवाज में राष्‍ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की इस मशहूर पंक्ति को उद्धृत किया, ‘सिंहासन खाली करो क‍ि जनता आती है…’ उस रैली को मोरारजी देसाई, अटल बिहार वाजपेयी, युवा तुर्क चंद्रशेखर जैसे बड़े नेताओं ने भी संबाधित किया. जेपी ने यहीं से इंदिरा से कुर्सी छोड़ने को कहा. जेपी ने सेना और पुलिस से असंवैधानिक और अनैतिक आदेश मानने से इनकार करने का आह्वान किया.

वो रैली इतनी विशाल थी कि उसकी गूंज प्रधानमंत्री आवास तक पहुंच रही थी. रैली रात 9 बजे खत्‍म हुई, तबतक इंदिरा समझ चुकी थीं कि माहौल उनके खिलाफ हो चुका है. कोई और रास्‍ता न देख मजबूरी में उन्‍होंने आपातकाल लगाने का फैसला किया.

Indira gandhi declared of emergency in 1975

आपातकाल की घोषणा : अखबारों के पन्ने रह गए कोरे

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर आपातकाल की घोषणा कर दी. इस खबर को सुनने वाले उतने ही बेखबर थे, जितना कि गांधी के कैबिनेट मंत्री. आपातकाल की घोषणा पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने 25 – 26 जून की दरमियानी रात ही हस्ताक्षर कर दिए थे. इसके तुरंत बाद, दिल्ली सहित देशभर के अखबारों के प्रेस अंधेरे में डूब गए, क्योंकि बिजली कटने के कारण अगले दो दिनों तक कुछ भी नहीं छप सका. दूसरी ओर, 26 जून की सुबह-सुबह कांग्रेस पार्टी का विरोध करने वाले सैकड़ों राजनेताओं, कार्यकर्ताओं और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया. देश भर की जेल राजनीतिक बंदियों से भर दी गई.

पीएम पर था ‘किचेन कैबिनेट’ का प्रभाव

इमरजेंसी लगाने के पीछे पीएम इंदिरा गांधी की किचेन कैबिनेट का बड़ा हाथ था. देखा जाए तो इंदिरा गांधी की किचेन कैबिनेट के जो सदस्य थे, उनमें से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जो लोकतांत्रिक मर्यादाओं में कोई निष्ठा रखता हो. आप जरूर जानना चाहेंगे कि आखिर उनकी किचेन कैबिनेट में ऐसे कौन लोग शामिल थे, जो इंदिरा पर गहरा प्रभाव रखते थे… तो आप जान लें कि उस समय इसमें इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी उस छोटे समूह के सरदार थे. इसमें दूसरे थे हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल जो प्रधानमंत्री निवास के राजनीतिक दरबारी थे.

प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ में वर्षों तक काम कर चुके वरिष्ठ नौकरशाह बिशन टंडन ने तब अपनी डायरी में लिखा था, ‘यदि मैं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को समझ सका हूं तो वे और चाहे कुछ करें, कुर्सी कभी नहीं छोड़ेंगी. अपने को सत्ता में रखने के लिए वे गलत से गलत काम करने में भी नहीं हिचकिचाएंगी.’

top leaders in jail during emergnecy

इन बड़े नेताओं को जाना पड़ा जेल

इमरजेंसी लगते ही देश के तमाम बड़े राजनेताओं की धर पकड़ शुरू हो गई. जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव,रामविलास पासवान, राजनारायण, जॉर्ज फर्नांडिस समेत ज्यादातर बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया.

arrest of atal-advani during emergnecy

ऐसे हुई अटल-आडवाणी की गिरफ्तारी

25 जून, 1975 को जब देश में आपातकाल लागू हुआ तब उस समय विपक्ष के नेता लाल कृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी बेंगलुरु में थे. वह कांग्रेस व अन्य पार्टियों के नेताओं के साथ सदन की संयुक्त सदन की चयन समिति में भाग लेने के पहुंचे थे. फोन पर आडवाणी को बताया गया कि पीएम इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया है. जेपी समेत तमाम बड़े नेताओं की गिरफ्तारी हो चुकी है. इसके बाद आडवाणी, अटल बिहारी के पास पहुंचे. उन्होंने सारा मामला बताया. दोनों ने तय किया कि वह गिरफ्तारी देंगे. फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

sterilization of many of people in emergency

83 लाख लोगों की नसबंदी

जनसंख्या काबू करने की दलीलों के चलते 1975-76 के दौरान जहां 27 लाख से ज़्यादा लोगों की नसबंदी करवाई गई, वहीं, आलोचनाओं के जवाब में इस कार्यक्रम को और आक्रामक बनाकर 1976-77 के दौरान ये आंकड़ा 83 लाख लोगों तक पहुंच गया. इनमें से ज़्यादातर मामलों में लोगों की मर्ज़ी के खिलाफ नसबंदी कराने के आरोप लगे.

benefits of emergency

कुछ फायदा भी मिला इमरजेंसी का

एक ओर अगर इमरजेंसी में नसबंदी के मामलों में ज्यादती की खबरें सामने आईं तो दूसरी ओर देश में तमाम आफिस एकदम समय से खुलने लगे. काम में अनुशासन और उत्पादकता बढ़ गई तो बस से लेकर ट्रेनें एकदम सही समय से चलने लगीं. कालाबाजारियों पर भी रोक लगी.

1975 की इमरजेंसी की विस्तृत टाइमलाइन

Ranjan Gupta
Ranjan GuptaJournalist
रंजन कुमार गुप्ता डिजिटल कंटेंट राइटर हैं, जिन्हें डिजिटल न्यूज चैनल में तीन वर्ष से अधिक का अनुभव प्राप्त है. वे कंटेंट राइटिंग, गहन रिसर्च और SEO ऑप्टिमाइजेशन में माहिर हैं. शब्दों से असर डालना उनकी कला है और कंटेंट को गूगल पर रैंक कराना उनका जुनून! वो न केवल पाठकों के लिए उपयोगी और रोचक लेख तैयार करते हैं, बल्कि गूगल के एल्गोरिदम को भी ध्यान में रखते हुए SEO-बेस्ड कंटेंट तैयार करते हैं. रंजन का मानना है कि “हर जानकारी अगर सही रूप में दी जाए, तो वह लोगों की जिंदगी को प्रभावित कर सकती है.” यही सोच उन्हें हर लेख में निखरने का अवसर देती है.