9 साल की उम्र में जेल, ‘धोखा’ देकर लालू यादव से खरीदा घोड़ा, पढ़िये अनंत सिंह के बाहुबली बनने की Inside Story

9 साल की उम्र में जेल, ‘धोखा’ देकर लालू यादव से खरीदा घोड़ा, पढ़िये अनंत सिंह के बाहुबली बनने की Inside Story

Authored By: JP Yadav

Published On: Friday, January 24, 2025

Updated On: Friday, January 24, 2025

anant singh ke bahubali banne ki kahani
anant singh ke bahubali banne ki kahani

बिहार के बाहुबलियों में शुमार अनंत सिंह (Anant Singh) के बारे में कहा जाता है कि कानून की किताब में जितनी भी धाराएं हैं, सब उन पर लगाई जा चुकी हैं. अजब-गजब शौक रखने वाले अनंत सिंह गाड़ियों के जमाने में हाथी और घोड़ों का शौक रखते हैं.

Authored By: JP Yadav

Updated On: Friday, January 24, 2025

Anant Singh: एक दौर था जब बिहार में बाहुबलियों का जलवा था. ये बाहुबली सत्तासीन राज्य सरकार का हिस्सा होते थे. जरूरत पड़ने पर इन्हें चुनाव लड़ाया जाता और फिर मंत्री तक बनाया जाता था. गुंडा और बदमाश होने के बावजूद इन बाहुबलियों की जनता में पकड़ अच्छी होती थी, इसलिए आसानी से विधायक या सांसद बन जाते थे. इनका रुतबा किसी राजा से कम नहीं होता था. ये अपने घर पर जनता दरबार लगाते थे और फैसला ऐसे सुनाते थे, जैसे कि ये कोई जज हों. कई बाहुबली तो जुलूस की शक्ल में घरों से निकलते थे, तो यह नजारा हफ्तों-महीनों तक चर्चा में रहता था. बिहार के अलग-अलग बाहुबलियों की कहानी दिलचस्प है. फिलहाल चर्चा में अनंत सिंह है. अनंत सिंह की बात करें तो इनकी जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आया, जब उनका इस संसार की मोहमाया से ध्यान उचटने लगा तो वैराग्य अपना लिया. यहां भी ज्यादा दिन मन नहीं लगा और वापस उसी दुनिया में आ गए. इस स्टोरी में हम बता रहे हैं बाहुबली अनंत सिंह के बारे में, जिन्हें अब भी रॉबिन हुड कहा जाता है.

जानकार के जरिये खरीदा लालू से घोड़ा

लोगों को यह जानकर हैरत होगी, लेकिन अनंत सिंह को लग्जरी गाड़ियों से अधिक शौक घोड़ों का है. उनके पास बड़ी संख्या में घोड़े हैं. वह भी अलग-अलग नस्ल के. कहा जाता है कि रास्ते में अगर कोई घोड़ा नजर आ जाए तो वह उसे मुंह मांगी कीमत पर खरीद लेते हैं. अगर कोई बेचने के लिए तैयार नहीं होता तो छीन लेते हैं. अनंत सिंह घोडे़ के शौक और इसके लिए अपनी सनक के लिए भी जाने जाते हैं. कहा जाता है कि अनंत सिंह को लालू प्रसाद का एक घोड़ा बहुत पसंद आ गया था. घोड़े पर दिल आ गया तो उसे खरीदने की तमन्ना भी पाल ली. बाहुबली को यह भी पता था कि लालू प्रसाद उन्हें तो यह घोड़ा कतई नहीं बेचेंगे. इसके बाद अनंत सिंह ने अपने करीबी से यह घोड़ा खरिदवाया और बाद में उस घोड़े पर बैठकर मेला घूमने गए. इस दौरान उनका जलवा देखने लायक था.

घर में ही हाथी-अजगर पाल रखे हैं

घोड़ों के शौकीन अनंत सिंह ने घर में ही हाथी और अजगर जैसे जानवर पाल रखे हैं. यह अलग बात है कि अजगर पालना गैरकानूनी है. कुछ साल पहले अनंत सिंह के घर से एके-47 समेत कई हथियार मिले थे. सिर्फ इस मामले को छोड़कर बाकी सभी मामलों में अनंत सिंह को जमानत मिल चुकी है. दरअसल, वर्ष 2004 में अनंत सिंह के घर पर एसटीएफ ने धावा बोला तो घंटों दोनों ओर से गोलीबारी हुई. गोली अनंत सिंह को भी लगी थी, लेकिन वह बच गए. इस एनकाउंटर में कुल 8 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद उन्होंने इस मकान में कुल 50 परिवारों को किराए पर रख लिया. जब भी पुलिस आती तो वह परिवारों को आगे कर देते.

9 साल की उम्र में गए थे जेल

1 जुलाई, 1961 को बाढ़ जिले के नदमां गांव में जन्मे अनंत सिंह के बारे में कहा जाता है कि जब वह सिर्फ 9 साल के थे तो पहली बार जेल गए थे. किस जुर्म में गए, इसके बारे में कोई पुष्ट जानकारी नहीं है. कुछ दिनों बाद छूटकर भी आ गए. अपराध की दुनिया में बाहुबली कहे जाने वाले अनंत सिंह को उनके क्षेत्र के लोग ‘रॉबिन हुड’ के नाम से भी जानते है. उन्हें लोगों के बीच जाना और अपनी वाहवाही करवाना खूब पसंद है. एक दफा पटना की सड़कों पर एक बग्घी में सवारी करते नजर आए. इस दौरान एक गाना भी बज रहा था, जिसके बोल थे ‘छोटे सरकार’. यह गाना बॉलीवुड के नामी सिंगर उदित नारायण ने गाया था. इसका वीडियो भी अनंत सिंह ने खुद बनाया था. इस वीडियो में वह बग्गी पर सवार थे और सैकड़ों-हजारों की भीड़ आसपास थी.

जुर्म की दुनिया में एंट्री फिर बन गए रॉबिन हुड

अनंत सिंह के बारे में कहा जाता है कि उन पर हत्या समेत सभी मामले दर्ज हो चुके हैं. वह जेल में भी रहकर आए हैं. दावा तो यहां तक किया जाता है कि कानून की किताब में जितने अपराधों का जिक्र है, उन सभी से जुड़ी धाराओं में उन पर मामले दर्ज हो चुके हैं. बावजूद इसके वह इलाके में रॉबिन हुड की छवि रखते हैं. भूमिहार समाज से आने वाले अनंत सिंह मोकामा विधानसभा क्षेत्र से हैं. यहां पर भूमिहारों की संख्या बहुत है. अनंत सिंह की यहां पर रॉबिन हुड वाली छवि है. कहा जाता है कि इलाके में अगर दहेज के लिए किसी लड़की की शादी नहीं हो रही है तो अनंत सिंह मदद के लिए आगे आते हैं. यह भी चर्चित है कि अगर किसी लड़की का पिता दहेज के लिए या अन्य मदद के लिए अनंत सिंह के घर आता है तो खाली हाथ नहीं लौटता. कहा तो यहां तक जाता है कि अनंत सिंह लड़के वाले को डरा-धमकाकर शादी के लिए तैयार कर देते हैं. अगर नहीं मानता है तो कुछ रुपये आदि देकर मामले को सुलझा देते हैं. इतना ही नहीं अगर लड़की के पिता ने शादी का कार्ड दिया है तो उसे उपहार में अच्छी खासी कीमत का सामान जरूर देते हैं. इन्हीं कुछ कारणों के चलते इलाके में लोग उन्हें दादा, अनंत दा या फिर छोटे सरकार कहकर बुलाते हैं. वैसे ज्यादातर लोग उन्हें छोटे सरकार ही कहकर बुलाते हैं.

राजनीति में रखा कदम तो छा गए

जुर्म और राजनीति से अनंत सिंह का खास नाता रहा है. 4 भाइयों में सबसे छोटे अनंत सिंह का जुर्म की दुनिया में नाम ही काफी है. कभी एके-47 जैसा प्रतिबंधित हथियार लहराने वाले अनंत सिंह पर कई मामले दर्ज हैं. कहा जाता है है कि अनंत सिंह ने बड़े भाई दिलीप सिंह के जरिए बिहार की राजनीति में कदम रखा. 9 साल की उम्र में जेल जाने वाले अनंत सिंह की छवि 18 साल की उम्र तक दबंग की बन गई थी. इसके बाद अनंत सिंह ने अपनी दबंगई के सहारे राजनीति में पैठ बनाई. बड़े भाई दिलीप सिंह ने 1985 में पहली बार निर्दलीय मोकामा सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार मिली. 4 साल बाद 1990 में पहली बार वो जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और मोकामा से विधायक बने. इसके बाद फिर 1995 में भी यहां से जीते. बिहार विधानसभा चुनाव 2000 में वह मोकामा से चुनाव नहीं जीत पाए. इसके बाद 2005 के विधानसभा चुनाव से अनंत सिंह राजनीति में आए. फिर अनंत सिंह मोकामा से लगातार 4 बार जीते और विधायक बने. 2005 और 2010 का चुनाव जदयू से जीते और 2015 में निर्दलीय जीते. इससे पहले 1995 में उन्होंने जनत दल के टिकट पर जीत हासिल की थी.

भाई की सरेआम की गई थी हत्या

परिवार की बात करें तो अनंत सिंह चार भाइयों में सबसे छोटे हैं. उनके दो बड़े भाइयों फाजो सिंह और बीरंची सिंह की हत्या हुई, जबकि दिलीप सिंह ने बीमारी से जान गंवाई. दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव 2005 के बाद दिसंबर 2008 में अनंत सिंह के बड़े भाई फाजो सिंह की चार लोगों ने पटना के महादेव शॉपिंग कॉम्प्लेक्स हत्या कर दी. उन्हें सरेआम गोलियों से भून दिया. इस हमले में उनके ड्राइवर अवधेश सिंह की भी मौत हो गई थी. इसके बाद अनंत सिंह हिल गए, लेकिन बिना घबराए राजनीति में सक्रिय रहे. वहीं, 2007 में एक महिला से दुष्कर्म और हत्या के मामले में अनंत सिंह का नाम आया था. इसके बाबत सवाल पूछने पर रिपोर्टर की जमकर पिटाई कर दी. यह खबर मीडिया में खूब चर्चा में रही थी.

कभी थे नीतीश और लालू के करीबी

अनंत सिंह अपनी सहूलियत के साथ नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव का साथ देते-लेते रहे. एक दौर था जब अनंत सिंह नीतीश कुमार के करीबी माने जाते थे. 2015 में जब नीतीश लालू के साथ गए, तो नीतीशी से दूरी बना और निर्दलीय चुनाव लड़ा. इससे भी पहले 2004 का लोकसभा चुनाव नीतीश कुमार बाढ़ सीट से लड़ रहे थे. इसी दौरान अचानक मोकामा से निर्दलीय विधायक सूरजभान सिंह लोक जनशक्ति पार्टी में शामिल हो गए. इस पर सूरजभान सिंह को बलिया से टिकट मिल गया. नीतीश कुमार समझ गए कि अब अनंत सिंह की मदद के बिना चुनाव में जीत असंभव है, इस पर नीतीश के करीबी ललन सिंह ने अनंत सिंह को मिलाया. दरअसल, ललन सिंह भी भूमिहार समुदाय से आते हैं. ऐसे में आसानी से ललन सिंह ने अनंत सिंह को शीशे में उतार लिया. चुनाव प्रचार के दौरान हुई रैली में अनंत सिंह ने नीतीश कुमार को चांदी के सिक्कों से तुलवा दिया था. उस समय इसका वीडियो भी सामने आया था. यह अलग बात है कि इस प्रकरण में नीतीश की बहुत फजीहत भी हुई थी. बावजूद इसके अनंत सिंह इस बार नीतीश को जिता नहीं सके. बावजूद इसके यहीं से अनंत सिंह और नीतीश के बीच गहरी दोस्ती हो गई. दोनों ने एक दूसरे का लंबे समय तक साथ दिया. आंकड़े बताते हैं कि 2005 में अनंत सिंह के पास महज 3.40 लाख रुपये की संपत्ति थी, लेकिन 10 वर्ष के बाद 2015 के चुनाव के वक्त दाखिल हलफनामे में उनकी संपत्ति 28 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गई थी. लोगों ने हैरानी जताई थी कि कोई 10 साल में इतनी अधिक संपत्ति कैसे बना सकता है.

About the Author: JP Yadav
जेपी यादव डेढ़ दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। वह प्रिंट और डिजिटल मीडिया, दोनों में समान रूप से पकड़ रखते हैं। अमर उजाला, दैनिक जागरण, दैनिक हिंदुस्तान, लाइव टाइम्स, ज़ी न्यूज और भारत 24 जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अपनी सेवाएं दी हैं। कई बाल कहानियां भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं. मनोरंजन, साहित्य और राजनीति से संबंधित मुद्दों पर कलम अधिक चलती है। टीवी और थिएटर के प्रति गहरी रुचि रखते हुए जेपी यादव ने दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक 'गागर में सागर' और 'जज्बा' में सहायक लेखक के तौर पर योगदान दिया है. इसके अलावा, उन्होंने शॉर्ट फिल्म 'चिराग' में अभिनय भी किया है।
Leave A Comment

अन्य खबरें

अन्य राज्य खबरें