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Delhi Pollution: दिल्ली बनी गैस चैंबर, लेकिन असली दोषी न पराली है, न गाड़ियां… जानिए कौन? हिमालय-अरावली से जानिए कनेक्शन
Authored By: Nishant Singh
Published On: Thursday, October 30, 2025
Last Updated On: Thursday, October 30, 2025
Delhi Pollution: हर साल सर्दियों की ठंडक के साथ दिल्ली-NCR की हवा में ज़हर घुल जाता है. शहर गैस चैंबर में बदल जाता है, और लोग सोचते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या सिर्फ गाड़ियां और फैक्ट्रियां ज़िम्मेदार हैं? असल वजह कहीं गहराई में छिपी है - हिमालय और अरावली की दीवारों के बीच फंसी दिल्ली की हवा, जो खुद एक कैदखाना बन जाती है. जानिए कैसे भूगोल और मौसम मिलकर दिल्ली की सांसें रोक देते हैं.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Thursday, October 30, 2025
Delhi Pollution: हर साल सर्दियों की दस्तक के साथ दिल्ली-NCR की हवा इतनी जहरीली हो जाती है कि लोग मास्क सिर्फ कोरोना से नहीं, बल्कि सांस लेने के लिए पहनने लगते हैं. आसमान धुंध से ढक जाता है, सूरज की किरणें जमीन तक पहुंचने में हिचकिचाती हैं और एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) “सीवियर” यानी ‘गंभीर’ स्तर पर पहुंच जाता है. लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसा हर साल क्यों होता है? क्या सिर्फ गाड़ियां और फैक्ट्रियां जिम्मेदार हैं? या इसके पीछे दिल्ली की भौगोलिक बनावट और मौसम की चाल का भी कोई बड़ा खेल है?
दिल्ली की भौगोलिक स्थिति: एक ‘प्राकृतिक कटोरा’ में फंसी हवा
दिल्ली-NCR की सबसे बड़ी समस्या है इसकी भौगोलिक बनावट. यह इलाका इंडो-गंगा के विशाल मैदान में बसा है कि उत्तर में ऊंचे हिमालय, दक्षिण में अरावली पर्वतमाला और बीच में यमुना नदी. ये तीनों मिलकर दिल्ली को एक ‘कटोरे’ जैसी आकृति देते हैं. जब हवा में धूल, धुआं या पराली का धुआं उड़ता है, तो वह इस कटोरे में फंसकर रह जाता है.
हिमालय प्रदूषण को उत्तर की ओर जाने नहीं देता, जबकि अरावली दक्षिण से आने वाली ताजी हवा के रास्ते में बाधा बन जाती है. यानी हवा का “सर्कुलेशन” कमजोर पड़ जाता है. इसी कारण पंजाब-हरियाणा की पराली का धुआं सीधे दिल्ली में अटक जाता है और बाहर निकलने का रास्ता नहीं पाता.
एक अध्ययन के अनुसार, दिल्ली की यह भौगोलिक स्थिति 30-50% प्रदूषण बढ़ा देती है, भले ही स्थानीय उत्सर्जन सीमित हो. यही वजह है कि दिल्ली को “प्रदूषण का कटोरा” कहा जाने लगा है.
तापमान उलटाव: जब हवा खुद ‘ढक्कन’ बन जाती है
सर्दियों में सबसे बड़ा अपराधी होता है “तापमान उलटाव” (Temperature Inversion). सामान्य स्थिति में ऊंचाई बढ़ने पर तापमान कम होता है, लेकिन ठंडी रातों में होता है उल्टा – नीचे की हवा ठंडी हो जाती है और ऊपर की हवा गर्म. यह गर्म परत ठंडी हवा के ऊपर “ढक्कन” की तरह बैठ जाती है और प्रदूषण को जमीन के पास ही कैद कर देती है.
इसे ऐसे समझिए – जैसे किसी कमरे में धुआं हो और छत बंद कर दी जाए, तो धुआं वहीं फंस जाएगा. सर्दियों में यही होता है: PM2.5 के कण 200-300 मीटर ऊंचाई तक ही सीमित रह जाते हैं. जहां WHO का सुरक्षित मानक 5 माइक्रोग्राम/घन मीटर है, वहीं दिल्ली में सर्दियों के दौरान यह 100-300 माइक्रोग्राम/घन मीटर तक पहुंच जाता है.
मौसम की चाल: ठहरी हवा और नमी की साजिश
सर्दियों में न सिर्फ तापमान गिरता है, बल्कि हवा की रफ्तार भी लगभग 1 मीटर प्रति सेकंड रह जाती है. यानी हवा न तो चलती है, न प्रदूषण को उड़ने देती है. इस स्थिति को वैज्ञानिक “एटमॉस्फेरिक स्टैग्नेशन” कहते हैं – जब हवा रुक जाती है और प्रदूषण स्थिर हो जाता है. इंडो-गंगा क्षेत्र में सालभर में करीब 100 दिन ऐसे होते हैं जब यह स्टैग्नेशन दिखाई देता है.
ऊपर से नमी और कोहरा प्रदूषण को और चिपका देते हैं. नमी 70-80% तक पहुंचने पर धूल और धुआं कोहरे के साथ मिलकर “स्मॉग” बनाता है. यही वह घातक धुंध है जो आंखों में जलन और फेफड़ों में आग लगा देती है.
2017 के “ग्रेट स्मॉग” के दौरान दिल्ली का AQI 823 तक पहुंच गया था, जो सामान्य सीमा से 14 गुना ज्यादा था.
वैज्ञानिक अध्ययनों से मिला सबूत: भूगोल और मौसम ही असली खलनायक
कई अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों ने यह साबित किया है कि दिल्ली का प्रदूषण सिर्फ गाड़ियों, फैक्ट्रियों या पराली से नहीं बढ़ता, बल्कि इसका बड़ा कारण है मौसम और भूगोल का मेल.
- रीडिंग यूनिवर्सिटी (2025) की रिपोर्ट के अनुसार, हिमालय और अरावली मिलकर प्रदूषण को “बाउल” में फंसा देते हैं, जिससे AQI सर्दियों में 400+ तक पहुंच जाता है.
- PMC स्टडी (2022) में बताया गया कि सर्दियों में हवा की गति कम होने से PM2.5 दोगुना बढ़ जाता है.
- Nature Communications (2024) का निष्कर्ष है कि ग्लोबल वार्मिंग से स्टैग्नेशन के दिन हर डिग्री तापमान बढ़ने पर एक दिन और बढ़ेंगे, यानी भविष्य में प्रदूषण के दिन और बढ़ सकते हैं.
समाधान सिर्फ नियंत्रण नहीं, समझ भी जरूरी
- दिल्ली-NCR का प्रदूषण केवल मानवीय लापरवाही का नतीजा नहीं, बल्कि प्रकृति की जटिल बनावट और मौसमी पैटर्न का असर भी है.
- हिमालय और अरावली जैसी भौगोलिक सीमाएं इसे एक “लॉक्ड एयर जोन” बना देती हैं, जहां सर्दी आते ही हवा खुद एक कैद बन जाती है.
- इसलिए केवल गाड़ियों पर रोक या पराली पर जुर्माना काफी नहीं, जरूरत है भूगोल और मौसम के इस खेल को समझकर वैज्ञानिक नीति बनाने की.
- तभी दिल्ली एक बार फिर सांस ले पाएगी- आज़ादी से, बिना मास्क के.
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