सबसे कम दिनों तक स्वतंत्र रहने वाला बलूचिस्तान में विद्रोह का क्या है इतिहास

सबसे कम दिनों तक स्वतंत्र रहने वाला बलूचिस्तान में विद्रोह का क्या है इतिहास

Authored By: गुंजन शांडिल्य

Published On: Wednesday, March 12, 2025

Updated On: Thursday, March 13, 2025

बलूचिस्तान का स्वतंत्रता संघर्ष और सबसे कम दिनों तक स्वतंत्र रहने का इतिहास
बलूचिस्तान का स्वतंत्रता संघर्ष और सबसे कम दिनों तक स्वतंत्र रहने का इतिहास

बलूचिस्तान ने पाकिस्तान से स्वतंत्रता के लिए एक नहीं विद्रोह के कई दौर देखे हैं. इतिहास में दर्ज है कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा बलूचिस्तान के एक रियासत कलात का विश्वासघात ने यहां स्वतंत्रता आंदोलन और विद्रोह को जन्म दिया है. यह विद्रोह आज पाकिस्तान में ट्रेन हाईजैक तक पहुंच गया है.

Authored By: गुंजन शांडिल्य

Updated On: Thursday, March 13, 2025

हाईलाइट

  •  बलूचिस्तान में विद्रोह का इतिहास भारत की स्वतंत्रता इतना पुराना है.
  •  मोहम्मद अली जिन्ना ने बलूचिस्तान के एक रियासत के साथ विश्वासघात किया.
  •  दो सौ से कुछ ज्यादा दिनों तक बलूचिस्तान स्वतंत्र देश के रूप में रहा है.
  •  कई चरणों में यहां विद्रोह शुरू है.

Balochistan freedom struggle: पाकिस्तान में बलूच विद्रोह का इतिहास पाकिस्तान का भारत से अलग होने (वर्ष 1947) के दिनों से है. आजादी के पहले बलूचिस्तान चार रियासतों में बंटा हुआ था. ये चार रियासत थे, ‘कलात, खारन, लास बेला और मकरान’. भारत की स्वतंत्रता के समय बलूचिस्तान के रियासतों के पास भारत में शामिल होने, पाकिस्तान में विलय करने या स्वतंत्र देश घोषित करने विकल्प था. बताया जाता है कि मोहम्मद अली जिन्ना के प्रभाव में तीन राज्य पाकिस्तान में विलय हो गए.
वहीं कलात रियासत ने स्वतंत्रता का विकल्प चुना और इसकी घोषणा की. तब कलात रियासत खान मीर अहमद यार खान के नेतृत्व में था.

खान ने जिन्ना को कानूनी सलाहकार बनाया

कलात रियासत के अहमद मीर खान ने 1946 में ब्रिटिश क्राउन के समक्ष अपने मामले को रखने के लिए जिन्ना को अपना कानूनी सलाहकार नियुक्त किया था. 4 अगस्त 1947 को दिल्ली की एक बैठक में (कलात के खान, लॉर्ड माउंटबेटन और जवाहरलाल नेहरू मौजूद थे) जिन्ना ने खान के स्वतंत्रता के फैसले का समर्थन किया. जिन्ना के आग्रह पर, खारन और लास बेला रियासत को कलात के साथ मिलाकर एक पूर्ण बलूचिस्तान बनाया जाना था.

15 अगस्त को स्वतंत्रता की घोषणा

कलात ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता की घोषणा की. एक महीने बाद 12 सितंबर को ब्रिटिश ज्ञापन में कलात को एक स्वतंत्र एवं संप्रभु राष्ट्र के रूप में जिक्र नहीं किया. उसी साल अक्टूबर की एक बैठक में जिन्ना ने खान से कलात को पाकिस्तान के साथ विलय करने के लिए दबाव बनाना शुरू किया. ‘बलूच राष्ट्रवाद’ में ताज मोहम्मद ब्रेसेग लिखते हैं, ‘खान ने कलात पर जिन्ना के दावे को खारिज कर दिया.
अगले साल 26 मार्च को पाकिस्तानी सेना बलूच तटीय क्षेत्र में पहुंच गई. खान को जिन्ना की शर्तों पर सहमत होना पड़ा. लेकिन खान के भाई प्रिंस अब्दुल करीम ने 1948 में पाकिस्तान के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह शुरू कर दिया. बेशक उस विद्रोह को कुछ ही दिनों में दबा दिया गया पर इसने बलूच राष्ट्रवाद के बीज बो दिए थे.

सिर्फ 226 दिन स्वतंत्र रहा बलूचिस्तान

बताया जाता है कि 28 मार्च 1948 को बलूचिस्तान को पाकिस्तान में मिला दिया गया. इस तरह बलूचिस्तान 15 अगस्त 1947 से 28 मार्च 1948 तक यानी 226 दिनों तक स्वतंत्र रहा. पाकिस्तान में बलूचिस्तान का विलय लोगों की इच्छा से नहीं बल्कि जिन्ना के विश्वासघात और इस्लामाबाद की सैन्य शक्ति से हुआ.
इसलिए कहा जाता है कि 226 दिन की स्वतंत्रता के बाद 75 सालों से बलूच के संसाधनों का दोहन और शोषण, वहां के लोगों के सशस्त्र विद्रोह की जड़ को सींचता जा रहा है.

चरणों में बलूच विद्रोह

1948 से शुरू हुआ, बलूच विद्रोह आज भी पाकिस्तानी के खिलाफ जारी है. बलूचिस्तान ने 1958-59, 1962-63, 1973-77 में हिंसक विद्रोह के दौर देखे हैं. वर्तमान विद्रोह 2003 से चल रहा है. इसी क्रम में 11 मार्च को बीएलए के उग्रवादियों ने क्वेटा-पेशावर (जाफर एक्सप्रेस) को हाईजैक कर सैकड़ों यात्रियों को बंधक बना लिया. हाईजैक का आज दूसरा दिन है. बलूच विद्रोहियों ने अभी भी सौ से अधिक लोगों को बंधक बना रखा है.

सीपीईसी विद्रोह का नया कारण

पिछले कुछ वर्षों बलूच लोगों के गुस्से का एक कारण ग्वादर बंदरगाह है. यह बंदरगाह चीन की सहायता से पाकिस्तान बना रहा है. ग्वादर बंदरगाह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा है. गलियारे का कार्य शुरू होने के दिनों से चीनी इंजीनियरों पर बलूच विद्रोही समूहों द्वारा हमला किया जाता रहा है.

बुगती की हत्या से और उग्र हुआ विद्रोह

पाकिस्तान में बलूच विद्रोह का नया चरण 2003 से शुरू माना जाता है. इसके तीन साल बाद 2006 में पाकिस्तानी सेना ने प्रभावशाली बलूच आदिवासी नेता अकबर खान बुगती की हत्या कर दी थी. बुगती की हत्या के बाद विद्रोह और उग्र हो गया. बुगती की हत्या का कारण बलूचिस्तान के लिए अधिक स्वायत्तता, संसाधन नियंत्रण और बलूचिस्तान के प्राकृतिक गैस राजस्व में उचित हिस्सेदारी की मांग कर रहे थे. इनकी लड़ाई अभी भी जारी है.

गुंजन शांडिल्य समसामयिक मुद्दों पर गहरी समझ और पटकथा लेखन में दक्षता के साथ 10 वर्षों से अधिक का अनुभव रखते हैं। पत्रकारिता की पारंपरिक और आधुनिक शैलियों के साथ कदम मिलाकर चलने में निपुण, गुंजन ने पाठकों और दर्शकों को जोड़ने और विषयों को सहजता से समझाने में उत्कृष्टता हासिल की है। वह समसामयिक मुद्दों पर न केवल स्पष्ट और गहराई से लिखते हैं, बल्कि पटकथा लेखन में भी उनकी दक्षता ने उन्हें एक अलग पहचान दी है। उनकी लेखनी में विषय की गंभीरता और प्रस्तुति की रोचकता का अनूठा संगम दिखाई देता है।
Leave A Comment

अन्य खबरें

अन्य खबरें