आकाश आनंद को पार्टी की जिम्मेदारियों से मुक्त करने के पीछे क्या है असल कहानी
आकाश आनंद को पार्टी की जिम्मेदारियों से मुक्त करने के पीछे क्या है असल कहानी
Authored By: ओम दत्त
Published On: Thursday, May 9, 2024
Updated On: Wednesday, May 15, 2024
अहम दायित्व वापस लेने के पीछे परिपक्वता न होने के तर्क के पीछे कितना दम। आखिर ऐन लोकसभा चुनाव के बीच किस गुणा भाग के चलते मायावती ने आकाश आनंद के कतरे पर।
Authored By: ओम दत्त
Updated On: Wednesday, May 15, 2024
बहुजन समाज पार्टी (BSP) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने मंगलवार, 7 मई को देश में लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण की वोटिंग ख़त्म होने के कुछ ही घंटे बाद अचानक अपनी पार्टी के नेशनल को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद को उनके पद से हटाने के अहम फैसले की घोषणा कर दी। इस घोषणा ने पार्टी कार्यकर्ताओं, राजनीतिक दलों और विश्लेषकों को हैरत में डाल दिया।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने आखिर क्या कहा
मायावती ने ट्वीट कर बताया, “विदित है कि बीएसपी एक पार्टी के साथ ही बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान तथा सामाजिक परिवर्तन का भी मूवमेंट है जिसके लिए मान्यवर श्री कांशीराम जी व मैंने ख़ुद भी अपनी पूरी जिंदगी समर्पित की है और इसे गति देने के लिए नई पीढ़ी को भी तैयार किया जा रहा है।’’
उन्होंने आगे लिखा, “इसी क्रम में पार्टी में, अन्य लोगों को आगे बढ़ाने के साथ ही, श्री आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर व अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, किंतु पार्टी व मूवमेंट के व्यापक हित में पूर्ण परिपक्वता (maturity) आने तक अभी उन्हें इन दोनों अहम ज़िम्मेदारियों से अलग किया जा रहा है, जबकि इनके पिता श्री आनंद कुमार पार्टी व मूवमेंट में अपनी ज़िम्मेदारी पहले की तरह ही निभाते रहेंगे। बसपा नेतृत्व पार्टी व मूवमेंट के हित में बाबा साहेब आंबेडकर के कारवां को आगे बढ़ाने में हर प्रकार का त्याग व कुर्बानी देने से पीछे नहीं हटने वाला है।”
इस घोषणा से मायावती ने ‘पूर्ण परिपक्वता’ हासिल करने तक अपने भतीजे को पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया।
आकाश आनंद कौन हैं
आकाश आनंद, मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। आकाश ने लंदन से मास्टर ऑफ़ बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA) किया। पहली बार साल 2017 में सहारनपुर की रैली आकाश मायावती के साथ मंच पर दिखे थे और तभी उन्होंने राजनीति में कदम रखा। उसके बाद पिछले लगभग 7 वर्षों में पार्टी में आकाश ने काफी सक्रियता दिखाई।
यद्यपि आकाश 2019 से पार्टी के नेशनल को-ऑर्डिनेटर के तौर पर काम कर रहे थे, लेकिन मायावती ने पिछले साल 10 दिसंबर, 2023 में 28 साल के आकाश आनंद को पार्टी का नेशनल को-ऑर्डिनेटर और अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।
2024 के लोकसभा चुनाव में बहुत ही कम समय में आकाश आनंद अपने भाषणों से पार्टी में स्टार प्रचारक के रूप में बीएसपी के मतदाताओं के बीच तेजी से चर्चित होने लगे थे।
जिम्मेदारियों से मुक्त करने के पीछे क्या है असल कहानी
मायावती ने उन्हें ये ज़िम्मेदारी ऐसे समय में सौंपी थी, जब पार्टी का राजनीतिक ग्राफ़ नीचे जाता दिख रहा था। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक संतोष कुमार का कहना है कि मायावती ने उन्हें यह सोचकर ज़िम्मेदारी दी ताकि युवा आकाश, पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं और नई पीढ़ी के दलित नेतृत्व को उत्साहित कर सकेंगे। दूसरी ओर मायावती ने युवाओं खासकर दलित युवाओं में चंद्रशेखर आज़ाद के तेज़ी से बढ़ते प्रभाव और अपनी पार्टी के तेजी से नीचे गिरते राजनीतिक ग्राफ़ से चिंतित होकर आकाश आनंद को बहुत सोच समझ कर ज़िम्मेदारी दी थी जिससे कि वह पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं और नई पीढ़ी के दलित नेतृत्व में नई ऊर्जा का संचार करेंगे।
अब जबकि ये सवाल उठना लाजिमी है कि पार्टी की जिम्मेदारियों से मुक्त करने के पीछे क्या केवल आकाश आनंद का राजनीतिक तौर पर पूरी तरह परिपक्व नहीं होना ही है या कुछ और!
क्योंकि अगर वो पूर्ण परिपक्व नहीं थे तो मायावती जैसी ‘परिपक्व नेता’ ने क्यों उन्हें अपना उत्तराधिकारी और पार्टी का नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया। अगर ये ग़लती थी भी तो इसे तब क्यों सुधारा गया जब लोकसभा चुनाव के तीन चरण हो गये हैं और अब चार चरण ही बाकी रह गये थे।
दरअसल, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मायावती एक सधी हुई राजनेता हैं और वह किसी भी पार्टी को कोई ऐसा अवसर नहीं देना चाहती हैं जहां बाद में समझौते की गुंजाइश न रहे।
इस लोकसभा चुनाव में आकाश ने अपनी रैलियों की शुरुआत भी यूपी की नगीना सीट से की थी, जहां आज़ाद के ख़िलाफ बहुजन समाज पार्टी ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया है।
आकाश आनंद ने हाल के अपने कुछ इंटरव्यू में आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद पर जम कर वार किए,जो मायावती को पसंद नहीं आये।
असल बात है कि आकाश आनंद अपनी पिछली कुछ चुनावी रैलियों में बेहद तीखे और आक्रामक अंदाज़ में भाषण देने लगे थे। और इन्हीं आक्रामक भाषणों और तीखे अंदाज की वजह से उनके ख़िलाफ़ चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में केस भी दर्ज किए गए।
28 अप्रैल को उत्तर प्रदेश में सीतापुर की रैली में उन्होंने योगी आदित्यनाथ की सरकार की ‘तालिबान से तुलना’ करते हुए उसे ‘आतंकवादियों’ की सरकार कहा था।
एक रैली में आकाश ने कहा “आप जानते हैं कि मौजूदा सरकार कैसी है। ये किसी को नहीं बख्शती है। हम अपने समुदाय को रिस्क में नहीं डाल सकते हैं। अभी समय खराब है। जब समय सही होगा तब सबका जवाब दिया जाएगा।”
वरिष्ठ पत्रकार डा. उत्कर्ष सिन्हा का कहना है कि मायावती इस समय बीजेपी से अपना संबंध नहीं बिगाड़ना चाहतीं हैं और वह बीजेपी के ख़िलाफ़ आक्रामक रुख़ अपना कर किसी भी कीमत पर अपनी पार्टी को संकट में नहीं डालना चाहेंगी।
अब जिस तरह से बसपा ने अपने प्रत्याशियों के टिकट जिस तेजी से रातोंरात बदले हैं उससे विपक्षी पार्टियों ने यह आरोप भी लगाना शुरू कर दिया है कि बसपा बीजेपी की बी टीम है और उसी के कहने पर प्रत्याशी बदले जा रहे हैं जिससे विपक्ष का वोट बंट सके। हालांकि यह राजनीति है जिसमें आरोप प्रत्यारोप तो लगते ही रहते हैं।
कुल मिलाकर लगता तो यही है कि मायावती आकाश आनंद के बयानों को लेकर किसी मुश्किल में नहीं फंसना चाहती हैं। उन्हें डर सताने लगा था कि बीजेपी या चंद्रशेखर आजाद के खिलाफ आकाश आनंद की आक्रामक शैली और तीखे बयानों से चुनाव में उनकी पार्टी को फ़ायदा होने से ज़्यादा नुक़सान हो सकता है।
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