नेहरू-गांधी परिवार (Nehru-Gandhi Family) के लिए दक्षिण भारत क्यों बन जाता है प्राणवायु

नेहरू-गांधी परिवार (Nehru-Gandhi Family) के लिए दक्षिण भारत क्यों बन जाता है प्राणवायु

Authored By: रमेश यादव

Published On: Wednesday, June 19, 2024

नेहरू-गांधी परिवार को उत्तर की राजनीति ने जब भी नकारा तो दक्षिण ने आगे बढ़कर अपने में समेट लिया। चाहे वह इंदिरा गांधी हों, सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी। अब पहली बार चुनाव लड़ने जा रहीं प्रियंका गांधी वाड्रा को भी दक्षिण से ही आस है।

Authored By: रमेश यादव

Updated On: Wednesday, June 26, 2024

इस लेख में:

हाईलाइट:

  • नेहरू-गांधी परिवार के लिए हमेशा प्राणवायु बनता रहा है दक्षिण।
  • इंदिरा गांधी 1978 का उपचुनाव कर्नाटक के चिकमगलूर से जीती।
  • सोनिया, राहुल के बाद प्रियंका को भी दक्षिण से आशा।
  • इस बार सोनिया, राहुल और प्रियंका तीनों संसद में आएंगे नजर।

नेहरू-गांधी परिवार और दक्षिण भारत का अटूट रिश्ता

जब भी नेहरू-गांधी परिवार पर चुनावी संकट आया दक्षिण भारत (South India) ने उनका साथ दिया। एक तरह से दक्षिण भारत देश के सबसे बड़े सियासी परिवार के लिए प्राणवायु बनता रहा है। चाहे वह उत्तर भारत में पराजय के बाद इंदिरा गांधी को संसद भेजना हो या चुनावी राजनीति में पहली बार कदम रखने वाली सोनिया गांधी को संसद की दहलीज तक पहुंचाना हो। हर बार दक्षिण भारत ने नेहरू-गांधी परिवार का दिल खोलकर स्वागत किया है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की केरल के वायनाड से दो-दो बार जीत इसी की तस्दीक है। अब प्रियंका भी दक्षिण से ही चुनावी राजनीति में कदम रखने जा रही हैं।

नेहरू-गांधी परिवार का दक्षिण से सियासी रिश्ता

अब चूंकि राहुल गांधी वायनाड से इस्तीफा दे चुके हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा वहां से चुनावी राजनीति में कदम रखने जा रही हैं। ऐसे में गांधी-नेहरू परिवार (Nehru-Gandhi Family) और दक्षिण भारत (South India) के सियासी रिश्तों पर एक दृष्टि डालनी तो बनती ही है। गांधी परिवार के इतिहास पर नजर डालें तो इंदिरा गांधी 1978 का उपचुनाव कर्नाटक के चिकमगलूर से जीतीं और फिर 1980 में तत्कालीन आंध प्रदेश के मेडक सीट से भी इंदिरा गांधी ने जीत के लिए दक्षिण का ही रुख किया था। यही नहीं, अगर यह कहा जाए कि सोनिया गांधी का पॉलिटिकल डेब्यू भी दक्षिण भारत से ही हुआ तो गलत नहीं होगा।

सोनिया को अमेठी से अधिक वेल्लारी पर भरोसा

दरअसल, 1999 में सोनिया गांधी जब पहली बार चुनावी मैदान में उतरने जा रही थीं तो उन्होंने इसके लिए अमेठी के साथ ही कर्नाटक के बेल्लारी को चुना। वे दोनों जगहों से जीत गई थीं। दोनों सीटें जीतने के बाद सोनिया ने बेल्लारी की सीट छोड़ दी थी। 2019 में जब राहुल गांधी को लगा कि अमेठी में चुनौती बड़ी है तो चुनाव के लिए राहुल ने भी वायनाड को चुना। अमेठी से राहुल हार गए वहीं वायनाड से वे जीते। 2024 में अब प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) का भी राजनीतिक डेब्यू वायनाड से हो रहा है। उनकी जीत लगभग तय मानी जा रही है।

नेहरू-गांधी परिवार के तीन सदस्य होंगे संसद में

बहरहाल, प्रियंका अगर वायनाड से जीत जाती हैं तो इस बार भाई-बहन लोकसभा में और मां सोनिया गांधी राज्यसभा यानी नेहरू-गांधी परिवार के तीन सदस्य विपक्ष की आवाज बनेंगे। सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा सदस्य हैं। सोलहवीं और सत्रहवीं लोकसभा में राहुल गांधी, सोनिया गांधी, वरुण गांधी और मेनका गांधी चार लोग एक साथ सांसद थे।

वायनाड से प्रियंका की जीत की संभावना ज्यादा

प्रियंका गांधी वाड्रा को वायनाड से चुनावी मैदान में उतारने की घोषणा का कांग्रेस (Congress) नेताओं ने जमकर स्वागत किया है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने इस पर अपनी राय रखते हुए कहा कि राहुल गांधी ने सही राजनीतिक फैसला लिया है। इस फैसले के साथ राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के जनादेश का भी सम्मान किया है। उल्लेखनीय है कि नियमों के मुताबिक चुनाव परिणाम घोषित होने के दो सप्ताह के भीतर जीती हुई दो सीटों में से एक सीट छोड़नी होती है। इसी कारण राहुल गांधी को एक सीट छोड़नी पड़ी और उन्होंने इसके लिए वायनाड को चुना। राहुल गांधी यहां से काफी मार्जिन से चुनाव जीते थे। उनकी जीत की मार्जिन को देखते हुए पूरी संभावना है कि यहां से प्रियंका गांधी संसद पहुंचने में कामयाब हो पाएंगी।

About the Author: रमेश यादव
रमेश यादव ने राष्ट्रीय और राजनीतिक समाचारों के क्षेत्र में व्यापक लेखन और विश्लेषण किया है। उनके लेख राजनीति के जटिल पहलुओं को सरलता और गहराई से समझाते हैं, जो पाठकों को वर्तमान राजनीतिक घटनाओं और नीतियों की बेहतर समझ प्रदान करते हैं। उनकी विशेषज्ञता सिर्फ सूचनाओं तक सीमित नहीं है; वे अपने अनुभव के आधार पर मार्गदर्शन और प्रासंगिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करते हैं। रमेश यादव की लेखनी तथ्यों पर आधारित और निष्पक्ष होती है, जिससे उन्होंने पत्रकारिता और विश्लेषण के क्षेत्र में अपनी एक मजबूत पहचान बनाई है।

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