नहीं रहे झारखंड के पूर्व CM शिबू सोरेन, 81 की उम्र में ली अंतिम सांस, जानिए कैसा रहा उनका राजनीतिक सफर
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Monday, August 4, 2025
Last Updated On: Monday, August 4, 2025
झारखंड की राजनीति में आदिवासी चेतना की सबसे प्रखर आवाज रहे ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन का निधन एक युग के अंत जैसा है. आज़ादी के बाद जिन चंद नेताओं ने ज़मीन से उठकर सत्ता की ऊंचाइयों तक संघर्ष से रास्ता बनाया, शिबू सोरेन उनमें अग्रणी थे. आइए जानते हैं उनका राजनीतिक सफर.
Authored By: Ranjan Gupta
Last Updated On: Monday, August 4, 2025
38 वर्षों तक झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई करने वाले शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया (Shibu Soren Death News). वे पिछले कई दिनों से दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे. उनकी तबीयत लंबे समय से खराब चल रही थी और उन्हें किडनी से जुड़ी गंभीर समस्याओं के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था. सोमवार सुबह शिबू सोरेन के बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पिता के निधन की जानकारी सोशल मीडिया एक्स हैंडल पर दी.
झारखंड के मुख्यमंत्री और शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर अपने भावुक संदेश में लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं. आज मैं शून्य हो गया हूं..”
शिबू सोरेन, जिन्हें ‘दिशोम गुरु’ के नाम से भी जाना जाता था, झारखंड की राजनीति के एक मजबूत स्तंभ रहे हैं. उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के बैनर तले आदिवासियों के हक और अधिकार के लिए कड़ा संघर्ष किया. उनके निधन की खबर मिलते ही राज्यभर में शोक की लहर दौड़ गई.
शिबू सोरेन के निधन पर श्रद्धांजलि
- राष्ट्रपति मुर्मु ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक भावुक पोस्ट में लिखा, “शिबू सोरेन का निधन सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक बड़ी क्षति है. उन्होंने आदिवासी अस्मिता और झारखंड राज्य के निर्माण के लिए संघर्ष किया. जमीनी स्तर पर काम करने के अलावा, उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और सांसद के रूप में भी योगदान दिया.”
- उन्होंने आगे लिखा, “जनता, विशेषकर आदिवासी समुदायों के कल्याण पर उनके ज़ोर को सदैव याद रखा जाएगा. मैं उनके पुत्र और झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन जी, परिवार के अन्य सदस्यों और प्रशंसकों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं.”
- पीएम मोदी ने श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, “श्री शिबू सोरेन जी ज़मीन से जुड़े नेता थे, जिन्होंने जनता के प्रति अटूट समर्पण के साथ सार्वजनिक जीवन में ऊंचाइयों को छुआ. वे आदिवासी समुदायों, गरीबों और वंचितों के सशक्तिकरण के लिए विशेष रूप से समर्पित थे. उनके निधन से दुःख हुआ. मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और चाहने वालों के साथ हैं. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से बात की और संवेदना व्यक्त की, ॐ शांति.”
- राहुल गांधी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और JMM के वरिष्ठ नेता शिबू सोरेन जी के निधन का समाचार सुनकर गहरा दुख हुआ. आदिवासी समाज की मज़बूत आवाज़, सोरेन जी ने उनके हक़ और अधिकारों के लिए आजीवन संघर्ष किया. झारखंड के निर्माण में उनकी भूमिका को हमेशा याद रखा जाएगा. हेमंत सोरेन जी और पूरे सोरेन परिवार के साथ-साथ गुरुजी के सभी समर्थकों को गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं.
शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा
- एक नजर शिबू सोरेन की अब तक की राजनीतिक यात्रा पर डालते हैं. शिबू सोरेन की राजनीति का सफर संघर्षों और आंदोलनों से होकर गुजरा है. उन्हें आमतौर पर ‘दिशोम गुरु’ के नाम से जाना जाता है. उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को वर्तमान झारखंड राज्य के रामगढ़ (तत्कालीन हजारीबाग) ज़िले के नेमरा गांव में हुआ था. वर्ष 1957 में उनके पिता सोबरन मांझी की हत्या ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी. इसके बाद उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठानी शुरू की.
- साल 1970 के दशक में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की, जिसका मकसद था आदिवासी समाज के हक़ की लड़ाई, सूदखोरों के खिलाफ संघर्ष और शराबबंदी की मांग को लेकर आंदोलन. शिबू सोरेन वर्ष 1971 में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बने और अपने आंदोलन को संगठित रूप देने लगे.
- 1977 में उन्होंने पहली बार दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन सफलता नहीं मिली. 1980 में पहली बार संसद पहुंचे और उसके बाद 1989, 1991, 1996 और 2002 में भी लोकसभा सदस्य के रूप में चुने गए. इसके अतिरिक्त, वे राज्यसभा में भी झारखंड का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
- उन्होंने झारखंड को एक अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए ऐतिहासिक आंदोलन का नेतृत्व किया, जो आखिरकार वर्ष 2000 में सफल रहा और झारखंड भारत का 28वां राज्य बना.
- शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे 2005, 2008-09 और 2009-10 के बीच. हालांकि, दुर्भाग्यवश वे कभी भी पूर्ण कार्यकाल नहीं निभा सके. वर्ष 2004 में वे केंद्र सरकार में कोयला मंत्री बनाए गए थे, लेकिन चिरूडीह कांड और शशि नाथ झा हत्या मामले में नाम आने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. बाद में अदालत ने उन्हें इन मामलों में दोषमुक्त कर दिया.
- 1993 के चर्चित सांसद घूसकांड में भी उनका नाम सामने आया, लेकिन वहां भी कोर्ट ने उन्हें राहत दी. उनके राजनीतिक जीवन में ‘लक्ष्मीनिया जीप आंदोलन’ को एक प्रतीक के रूप में याद किया जाता है, जिसने जनता के बीच उनकी लोकप्रियता को मज़बूत किया.
- आज उनके बेटे हेमंत सोरेन और परिवार के अन्य सदस्य झारखंड मुक्ति मोर्चा के ज़रिए उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. शिबू सोरेन की कहानी सिर्फ एक नेता की नहीं, बल्कि एक ऐसे जननायक की है, जिसने मिट्टी से उठकर इतिहास गढ़ दिया.
शिबू सोरेन का पारिवारिक जीवन
शिबू सोरेन का पारिवारिक जीवन भी राजनीति से गहराई से जुड़ा रहा है. उनकी पत्नी रूपी सोरेन के साथ उनके चार बच्चे हुए जिनमें तीन बेटे: दुर्गा सोरेन, हेमंत सोरेन, और बसंत सोरेन. एक बेटी अंजलि सोरेन भी हैं जो सामाजिक कार्यों से जुड़ी हैं. बड़े बेटे दुर्गा सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक थे लेकिन 2009 में असामयिक मृत्यु हो गई.
दुर्गा की पत्नी सीता सोरेन ने राजनीतिक जिम्मेदारी संभाली और वे दुमका से विधायक बनीं. दूसरे बेटे हेमंत सोरेन अभी झारखंड के सीएम हैं और सबसे छोटे बेटे बसंत सोरेन JMM के युवा विंग के प्रमुख हैं.
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