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Vijayadashmi 2025 : विजयादशमी पर लें कर्म पथ पर चलने का संकल्प
Authored By: स्मिता
Published On: Monday, September 29, 2025
Last Updated On: Monday, September 29, 2025
Vijayadashmi 2025 : पौराणिक विषयों के ज्ञाता और लेखक अमीश त्रिपाठी विजयादशमी को आम लोगों के लिए विशेष संदेश वाला त्योहार मानते हैं. इस पवित्र त्योहार पर वे लोगों से कर्म पथ पर चलने का संकल्प लेने की प्रेरणा देते हैं.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Monday, September 29, 2025
पौराणिक विषयों के ज्ञाता और लेखक अमीश त्रिपाठी (Amish Tripathi) ने बताया है कि हमारे अंदर असीम उत्साह और उमंग भरने के लिए पर्व-त्योहार मनाने की परंपरा युगों से चली आ रही है. हमारे पूर्वजों ने जो त्योहार बनाए, एक हद तक वे प्रकृति के चक्र के साथ जुड़े हुए हैं. त्योहार ऋतुओं के आगमन का संदेश देते हैं. प्रमुख ऋतुओं की तरह नवरात्र भी साल में चार बार आते हैं-शारदीय नवरात्र, चैत्र नवरात्र, आषाढ़ गुप्त नवरात्र और पौष गुप्त नवरात्र. अपनी व्यस्तताओं के चलते हम वास्तव में सिर्फ दो नवरात्र मना पाते हैं. चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र. जानते हैं विजयादशमी (Vijayadashmi 2025) के अवसर पर हमें क्या संकल्प लेना चाहिए.
प्रकृति की तरह संतुलित हो जीवन
अमीश त्रिपाठी के अनुसार, हमारे पूर्वजों का नजरिया था कि हमारा जीवन भी प्रकृति के अनुकूल चले तथा प्रकृति की तरह ही संतुलित हो. प्रकृति हो या हमारा जीवन, दोनों में असंतुलन से कठिनाइयां आती हैं. सब कुछ पा लेने की होड़ में हम तनाव भरा जीवन जीने लगते हैं. तनाव से मुक्ति तो हमें त्योहार मनाने से ही मिलती है. दरअसल, इस दौरान हम न सिर्फ वातावरण से, बल्कि समाज से भी जुड़ जाते हैं. हम साल भर तक लगातार बिना किसी से मिले-जुले अपने घरों में बंद रह जाते हैं. पड़ोसियों का नाम तक नहीं जान पाते हैं. त्योहार हमें एक-दूसरे से मिलने-जुलने का अवसर प्रदान करते हैं.
ईश्वर से जुड़ने के लिए भक्ति योग, ज्ञान योग और कर्म योग
पूजा के यज्ञ-अनुष्ठान आदि अकेले नहीं, बल्कि व्यक्तियों के समूहों द्वारा ही संपन्न किए जा सकते हैं. यही वजह है कि किसी न किसी रूप में अलग-अलग त्योहार देश भर में मनाए जाते हैं. हमारा मन चंचल होता है, जो हमेशा इधर-उधर भागता रहता है. भक्ति योग, ज्ञान योग, कर्म योग से हम न सिर्फ अपने मन पर अंकुश लगा सकते हैं, बल्कि ईश्वर से भी जुड़ सकते हैं. नियंत्रित मन सभी में ईश्वर के अंश देखता है. यह भाव बुराई का विरोध करने की शक्ति भी देता है.
दुर्गा का एक रूप सीता
सीता को भी दुर्गा का एक रूप माना जाता है. उनका मन संतुलित है. ‘सीता : मिथिला की योद्धा’ पुस्तक के अनुसार, दूसरों के सुख और अच्छाई के लिए सीता योद्धा बन जाती हैं. उन्हें अपनी मां से बहुत लगाव है. जब उनकी मां की मृत्यु हो जाती है, तो वे कर्म पथ से भी विचलित हो जाती हैं. तब उन्होंने मां की कही बातों से ही खुद को संभाला.
जीवन का सार
सीताजी की मां सुनयना कहा करती थीं कि रुकने नहीं, बल्कि अनवरत चलते रहने का नाम जिंदगी है. उतार-चढ़ाव और सुख-दुख तो जीवन के अभिन्न अंग हैं. बिना विचलित हुए कर्म पथ पर आगे बढ़ते रहना ही जीवन का सार है. हमें विजयादशमी पर अपने कर्म पथ पर लगातार चलते रहने का ही संकल्प लेना चाहिए.
नवरात्र उत्सव के समापन का प्रतीक विजयादशमी
विजयादशमी को दशहरा भी कहा जाता है. यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इसे नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र उत्सव के समापन के रूप में मनाया जाता है. यह भगवान राम की राक्षस राजा रावण पर विजय और देवी दुर्गा की राक्षस महिषासुर पर विजय का प्रतीक है. यह त्योहार रावण के पुतलों के दहन के साथ समाप्त होता है, जो बुराई के विनाश का प्रतीक है. इसे नए उद्यम शुरू करने और नई चीजें सीखने के लिए एक शुभ समय के रूप में भी देखा जाता है.
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