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क्या है Session App? जिस पर आतंकियों ने की थी दिल्ली ब्लास्ट की प्लानिंग, कैसे काम करता है यह ऐप?
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Thursday, November 13, 2025
Last Updated On: Thursday, November 13, 2025
Session App: दिल्ली के लाल किले के पास हुए धमाके की जांच में बड़ा खुलासा हुआ है. जांच एजेंसियों ने पाया कि आरोपी डॉक्टर मुज़म्मिल और डॉक्टर उमर अपने विदेशी हैंडलर से बातचीत के लिए ‘Session’ नाम के ऐप का इस्तेमाल करते थे. यह ऐप अपनी अल्ट्रा-सिक्योर और अनोनिमस टेक्नोलॉजी के कारण किसी भी यूजर की पहचान या चैट ट्रेस नहीं होने देता.
Authored By: Ranjan Gupta
Last Updated On: Thursday, November 13, 2025
Session App: दिल्ली में लाल किले के पास हुए धमाके ने पूरे देश को हिला दिया था. अब इस केस की जांच कर रही एजेंसियों को तकनीकी स्तर पर एक अहम सुराग मिला है. जांच में सामने आया है कि ब्लास्ट के आरोपियों ने अपने विदेशी हैंडलरों से बातचीत करने के लिए ‘Session’ App का इस्तेमाल किया था. एक ऐसा मैसेजिंग प्लेटफॉर्म जो बिना फोन नंबर के काम करता है और चैट्स को डिक्रिप्ट करना लगभग असंभव बना देता है. रिपोर्ट के मुताबिक, अबू उकसा नाम के हैंडलर ने आरोपियों को यह ऐप इस्तेमाल करने की सलाह दी थी ताकि उनकी बातचीत किसी भी सुरक्षा एजेंसी तक न पहुंच पाए. सवाल यह है कि आखिर यह ऐप इतनी सुरक्षित कैसे है और इसका काम करने का तरीका क्या है? आइए जानते हैं.
क्या है Session App?
Session एक प्राइवेसी-केंद्रित (Privacy-focused) मैसेजिंग ऐप है, जिसे ऑस्ट्रेलिया की Loki Foundation ने विकसित किया है. इसका मुख्य उद्देश्य है- यूज़र की पहचान को पूरी तरह गोपनीय रखना और किसी भी संदेश को ट्रैक या इंटरसेप्ट न होने देना. यह ऐप एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन, डेसेंट्रलाइज्ड नेटवर्क और ऑनियन राउटिंग जैसी उन्नत तकनीकों पर आधारित है. यानी बातचीत सिर्फ दो लोगों के बीच रहती है यानी कोई कंपनी, सरकार या हैकर बीच में झांक भी नहीं सकता.
फोन नंबर की जगह Session ID
जहां WhatsApp या Telegram पर अकाउंट बनाने के लिए मोबाइल नंबर की जरूरत होती है, वहीं Session ऐप में ऐसा कोई नियम नहीं है. हर यूज़र को एक यूनिक Session ID दी जाती है जो उसकी डिजिटल पहचान होती है. इस वजह से कोई आपकी चैट को आपके असली नाम, नंबर या लोकेशन से नहीं जोड़ सकता. यह सिस्टम उन लोगों के लिए खास है जो अपनी प्राइवेसी को लेकर बेहद सतर्क हैं जैसे जर्नलिस्ट, एक्टिविस्ट, या साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट.
डिसेंट्रलाइज्ड नेटवर्क: कोई एक सर्वर नहीं
Session ऐप की सबसे बड़ी खासियत है कि यह केंद्रीकृत सर्वर (Centralized Server) पर नहीं चलता. यह कई छोटे-छोटे यूज़र-ऑपरेटेड सर्वरों के नेटवर्क पर काम करता है. मतलब, कोई एक संस्था या कंपनी सारे डेटा पर नियंत्रण नहीं रख सकती. संदेश कई “नोड्स” से होकर गुजरते हैं, जिससे डेटा लीक या चोरी की संभावना लगभग खत्म हो जाती है.
ऑनियन राउटिंग: पहचान छिपाने की कला
Session उसी तकनीक पर आधारित है जो Tor Browser में उपयोग होती है Onion Routing. इसमें संदेशों को कई लेयरों में रूट किया जाता है, जिससे भेजने वाले और पाने वाले दोनों की IP लोकेशन छिपी रहती है. अगर कोई संदेश को इंटरसेप्ट भी करे, तो भी वह न तो यूज़र तक पहुंच सकता है, न उसकी लोकेशन का पता लगा सकता है.
एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन: सुरक्षा का कवच
इस ऐप में हर संदेश, फोटो, या फाइल पूरी तरह एन्क्रिप्टेड रहती है. सिर्फ भेजने वाला और पाने वाला ही उसे डिक्रिप्ट कर सकते हैं. यहां तक कि Session खुद भी उन संदेशों को नहीं पढ़ सकता. साथ ही, इसका कोड ओपन-सोर्स (Open Source) है, यानी कोई भी साइबर एक्सपर्ट इसे ऑडिट कर सकता है और सुरक्षा की जांच कर सकता है.
मेटाडेटा नहीं रखता Session
अधिकांश ऐप्स यह ट्रैक करते हैं कि आप किससे, कब, और कितनी देर चैट कर रहे हैं इसे मेटाडेटा कहा जाता है. Session ऐप ऐसी कोई जानकारी स्टोर नहीं करता. यानी कोई यह तक नहीं जान सकता कि बातचीत हुई भी थी या नहीं. यह बात इसे “संपर्क रहित संवाद” (Contactless Communication) का प्रतीक बनाती है.
कैसे काम करता है Session ऐप
Session ऐप की प्रोसेस कुछ इस तरह होती है जब यूज़र कोई मैसेज भेजता है, तो वह संदेश पहले एन्क्रिप्ट होता है और फिर कई सर्वरों के बीच होकर रिसीवर तक पहुंचता है. इस बीच न कोई सर्वर और न ही कोई मध्यस्थ उस मैसेज को डिक्रिप्ट कर सकता है. यूज़र की IP एड्रेस को छिपाने के लिए ऐप “मल्टीपल नोड राउटिंग” का प्रयोग करता है. इस तरह, यह सुनिश्चित करता है कि चैट का स्रोत और गंतव्य दोनों ही गुप्त रहें.
Session क्यों बना विवाद का कारण
हाल ही में लाल किले के पास हुए धमाके की जांच में सामने आया कि आरोपी ने अपने हैंडलरों से बात करने के लिए Session ऐप का इस्तेमाल किया था. जांच एजेंसियों को शक है कि इस ऐप के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संवेदनशील बातचीत की जा रही थी, जिसे ट्रैक करना लगभग असंभव था. DNA टेस्ट से यह भी खुलासा हुआ कि इस ऑपरेशन में शामिल शख्स डॉ. उमर मोहम्मद था जिसकी पहचान लंबे समय तक छिपी रही. इस घटना के बाद से सुरक्षा एजेंसियां ऐसे अनट्रेसेबल ऐप्स की निगरानी पर अधिक ध्यान देने लगी हैं.
क्या वाकई सुरक्षित है Session?
टेक एक्सपर्ट्स का मानना है कि Session ऐप तकनीकी रूप से बेहद मजबूत है, लेकिन इसकी यही ताकत कई बार गलत हाथों में खतरा बन जाती है. यह ऐप उन लोगों के लिए वरदान है जो निजता (Privacy) को सर्वोच्च मानते हैं लेकिन अगर इसका दुरुपयोग हो, तो यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए सिरदर्द भी बन सकता है.
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