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Story of Bangladesh: एक देश, दो चेहरे, दोस्त से ‘दुश्मन’ बनने तक का सफर!
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Wednesday, December 24, 2025
Last Updated On: Wednesday, December 24, 2025
Story of Bangladesh: 1971 में भारत की मदद से जन्मा बांग्लादेश आज दिल्ली के लिए सबसे जटिल कूटनीतिक चुनौती बनता जा रहा है. सीमा विवाद, कट्टरपंथ, अल्पसंख्यकों पर हमले, चीन-पाकिस्तान की बढ़ती दखल और बदली सियासत ने भारत-बांग्लादेश रिश्तों को ऐतिहासिक संकट में डाल दिया है. आइए जानते हैं 54 साल में कैसे बदल गया भारत का सबसे भरोसेमंद पड़ोसी बांग्लादेश?
Authored By: Ranjan Gupta
Last Updated On: Wednesday, December 24, 2025
Story of Bangladesh: भारत और बांग्लादेश के रिश्ते आज इतिहास के सबसे नाज़ुक मोड़ पर खड़े दिखाई देते हैं. जिस बांग्लादेश के निर्माण में भारत ने 1971 में निर्णायक भूमिका निभाई थी, वही देश अब रणनीतिक, राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर दिल्ली के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है. कभी भरोसे, सहयोग और साझेदारी का प्रतीक रहा यह संबंध आज अविश्वास, विरोध और टकराव की आहट से गूंज रहा है. सीमा पर तनाव, अवैध घुसपैठ, कट्टरपंथी संगठनों की सक्रियता, हिंदू अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले और ढाका की बदली सियासी भाषा ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर 54 साल में ऐसा क्या बदला कि दोस्ती की जगह दुश्मनी ने ले ली. आइए जानते हैं कहानी बांग्लादेश की (History of Bangladesh)
बांग्लादेश की सड़कों पर गूंजे भारत विरोधी नारे
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब दिल्ली-ढाका का विवाद सिर्फ दो देशों तक सीमित नहीं रहा. यह मुद्दा अब पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा, बंगाल की राजनीति और इंडो-पैसिफिक रणनीति से भी जुड़ गया है. बांग्लादेश की सड़कों पर भारत विरोधी नारे सुनाई दे रहे हैं. ढाका में भारतीय हाई कमीशन के बाहर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. हालात ऐसे हैं कि भारत और बांग्लादेश के रिश्ते अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं.
54 साल बाद पहली बार दिल्ली में बांग्लादेश हाई कमीशन के बाहर भी विरोध प्रदर्शन शुरू हुए हैं. दोनों देशों में लोग एक-दूसरे के राजनयिकों को बाहर निकालने की मांग करने लगे हैं. माहौल बेहद तनावपूर्ण होता जा रहा है.
ऐसे हुआ था बांग्लादेश का जन्म
1971 में हालात बिल्कुल अलग थे. भारत के पास बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों का समर्थन करने के कई कारण थे. पूर्वी पाकिस्तान में हालात बिगड़ चुके थे. लाखों लोग जान बचाकर भारत की ओर भाग रहे थे. शरणार्थियों का दबाव लगातार बढ़ रहा था.
इसके अलावा पाकिस्तान पहले से ही भारत का दुश्मन था. बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम का समर्थन करना भारत के लिए रणनीतिक रूप से भी जरूरी था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने मुक्ति योद्धाओं का खुलकर साथ दिया. इसके बाद पाकिस्तान ने युद्ध छेड़ा, लेकिन उसे करारी हार मिली. उसी हार के साथ बांग्लादेश एक नए देश के रूप में दुनिया के नक्शे पर उभरा.
आजादी के बाद भारत के करीब आया ढाका
बांग्लादेश की आजादी के बाद शुरुआती वर्षों में ढाका और नई दिल्ली के रिश्ते मजबूत रहे. समय के साथ यह साझेदारी और गहरी होती चली गई. खासकर शेख हसीना के प्रधानमंत्रित्व काल में दोनों देशों के संबंधों ने नई ऊंचाई हासिल की. इसके पीछे भारतीय नेताओं के साथ उनके व्यक्तिगत रिश्तों को भी अहम वजह माना जाता है.
अवामी लीग की कट्टर प्रतिद्वंद्वी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी को लंबे समय तक भारत विरोधी माना जाता रहा. पार्टी की नेता खालिदा जिया का रुख भी अलग माना जाता था. हालांकि, प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी भारत यात्रा को एक सकारात्मक संकेत के तौर पर देखा गया. इससे यह संदेश गया कि ढाका-नई दिल्ली रिश्ते सरकारों से ऊपर हैं.
15 सालों में मजबूत हुई साझेदारी
पिछले करीब 15 सालों में, जब शेख हसीना सत्ता में रहीं, भारत और बांग्लादेश के बीच हर मोर्चे पर सहयोग बढ़ा. व्यापार हो या रक्षा, कनेक्टिविटी हो या जल बंटवारा—हर क्षेत्र में रिश्ते मजबूत हुए. शेख हसीना अक्सर भारत को बांग्लादेश का “सबसे करीबी दोस्त” और “भरोसेमंद साझेदार” कहती रही हैं.
भारत में निर्वासन के दौरान भी उन्होंने यही दोहराया कि भारत दशकों से बांग्लादेश का पक्का दोस्त रहा है. उनके बयान साफ इशारा करते हैं कि रिश्तों की नींव काफी गहरी है.
2019 में पहली बार दिखी नाराज़गी
साल 2019 में पहली बार बांग्लादेश की तरफ से भारत को लेकर नाराज़गी सामने आई. उस समय प्याज निर्यात पर भारत के प्रतिबंध को लेकर शेख हसीना ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में शिकायत की थी. हालांकि यह विवाद ज्यादा आगे नहीं बढ़ा, लेकिन इसे रिश्तों में आई पहली दरार माना गया.
पाकिस्तान से बढ़ता संपर्क
इसी बीच पाकिस्तान ने मौके को भांप लिया. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से संपर्क किया. हाल ही में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद पाकिस्तान ने मदद की पेशकश की. शहबाज शरीफ और बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के बीच फोन पर बातचीत हुई.
दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने से दक्षिण एशिया के लोगों की जिंदगी बेहतर हो सकती है. शहबाज शरीफ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर यूनुस को नई जिम्मेदारी के लिए बधाई दी और बाढ़ में हुई तबाही पर संवेदना जताई.
दुश्मन का दुश्मन दोस्त?
पाकिस्तान ने साफ संकेत दिए कि वह बांग्लादेश के साथ व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाना चाहता है. ऐतिहासिक और धार्मिक रिश्तों का हवाला भी दिया गया.
हकीकत यह है कि शेख हसीना के कार्यकाल में पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्ते बेहद तनावपूर्ण रहे. 1971 के युद्ध की कड़वी यादें और उससे जुड़े मामलों में दी गई सजाएं इसकी बड़ी वजह थीं. अब ढाका में आए बदलाव को पाकिस्तान एक नए अवसर के तौर पर देख रहा है.
2024 का तख्तापलट
साल 2024 में हालात तेजी से बदले. स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को दिए जा रहे आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुआ. धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया. दबाव इतना बढ़ा कि शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ा. जान के खतरे के बीच उन्हें देश छोड़ना पड़ा और भारत में शरण लेनी पड़ी.
अंतरिम सरकार का दौर
शेख हसीना के जाने के बाद मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी. कानून व्यवस्था से लेकर न्यायपालिका तक कई बड़े बदलाव किए गए. हालांकि अब तक देश में आम चुनाव नहीं हुए हैं. बांग्लादेश में चुनाव फरवरी 2026 में होने हैं.
इस बीच एक बार फिर भारत विरोधी नारे सुनाई देने लगे हैं. सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक माहौल बदला-बदला नजर आ रहा है.
भारत-बांग्लादेश में तनाव कैसे बढ़ा
अंतरिम सरकार बनने के बाद बांग्लादेश का झुकाव चीन और पाकिस्तान की ओर बढ़ा. इससे भारत की चिंताएं बढ़ गईं. खासकर पूर्वोत्तर भारत को लेकर की गई टिप्पणियों ने तनाव को और गहरा कर दिया.
मोहम्मद यूनुस के बयानों के बाद यह चर्चा तेज हो गई कि ढाका संवेदनशील चिकन नेक कॉरिडोर पर नजर रखे हुए है. यही गलियारा पूर्वोत्तर को भारत की मुख्य भूमि से जोड़ता है.
2024 में सत्ता से हटने के बाद शेख हसीना का भारत आना उनका दूसरा निर्वासन है. इससे पहले 1975 में अपने पिता शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद भी उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी थी.
भारत ने क्यों जताई आपत्ति
नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस की अंतरिम सरकार के बाद बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों की खबरें सामने आईं. भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई. लेकिन अंतरिम सरकार ने कार्रवाई करने के बजाय तीखी प्रतिक्रिया दी.
इसके बाद हालात और बिगड़ गए, जब ढाका ने बीजिंग और इस्लामाबाद के साथ नजदीकियां बढ़ाईं. यूनुस की टिप्पणियों ने चिकन नेक कॉरिडोर को लेकर भारत की सुरक्षा चिंता और बढ़ा दी.
अंतरिम सरकार के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के फैसले ने आग में घी डालने का काम किया. शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों में मृत्युदंड सुनाया गया और भारत से उनके प्रत्यर्पण की मांग की गई. भारत ने साफ संकेत दिए कि वह उन्हें सौंपने वाला नहीं है.
फिर भड़का माहौल
हाल ही में 2024 के आंदोलन के प्रमुख भारत विरोधी नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद अफवाह फैली कि हत्यारे भारत भाग गए. इसके बाद बांग्लादेश में भारत विरोधी प्रदर्शन तेज हो गए.
हादी की मौत के अगले ही दिन मयमनसिंह में हिंदू व्यक्ति दीपू चंद्र दास की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या और शव जलाने की घटना सामने आई. इस घटना के बाद भारत में भी विरोध तेज हो गया है.
रिश्ते फिर भी गहरे!
भारत में रह रहीं शेख हसीना का कहना है कि भारत और बांग्लादेश के रिश्ते किसी अस्थायी सरकार से तय नहीं होते. ये रिश्ते ऐतिहासिक और मूलभूत हैं. उनका मानना है कि मौजूदा हालात अस्थायी हैं.
हालांकि फिलहाल सच्चाई यह है कि भारत और ढाका के रिश्ते अलग-थलग पड़ते नजर आ रहे हैं. आने वाले महीनों में यह देखना अहम होगा कि यह तनाव किस दिशा में जाता है.
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