Jammu-Kashmir Assembly Election: कभी चुनाव बहिष्कार करने वाले कट्टरपंथी एवं अलगाववादी नेता में चुनावी मैदान में
Jammu-Kashmir Assembly Election: कभी चुनाव बहिष्कार करने वाले कट्टरपंथी एवं अलगाववादी नेता में चुनावी मैदान में
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Published On: Friday, August 30, 2024
Updated On: Friday, August 30, 2024
समय से चुनाव का बहिष्कार करने वाले घाटी के अलगाववादी नेता इस विचानसभा चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। कई अलगाववादी नेता तो चुनाव भी लड़ रहे हैं। इन अलगाववादी नेताओं ने चुनाव में हिस्सा लेने के लिए राजनीतिक पार्टी का गठन भी किया है।
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Updated On: Friday, August 30, 2024
लोकतंत्र को कई कमियों के बावजूद सबसे अच्छी शासन व्यवस्था माना जाता है। देर से ही सही अधिकांश लोगों का लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास भी बढ़ता है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के दौरान भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है। लंबे समय से चुनाव का बहिष्कार करने वाले घाटी के अलगाववादी नेता इस विचानसभा चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। कई अलगाववादी नेता तो चुनाव भी लड़ रहे हैं। इन अलगाववादी नेताओं ने चुनाव में हिस्सा लेने के लिए राजनीतिक पार्टी का गठन भी किया है।
केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद फिर से विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। सभी राजनीतिक दल एवं राजनेता चुनावी समर में उतर कर ताल ठोक रहे हैं। सेनापतियों ने अपनी-अपनी सेनाएं सजा लीं हैं। शह-मात का खेल शुरू हो गया है। इसमें कौन बाजी मारता है और कौन पिछड़ता है, यह 4 अक्टूबर को पता चल जाएगा। लेकिन इस चुनाव में सबसे मठवपूर्ण परिवर्तन कट्टरपंथी एवं अलगाववादी संगठनों का चुनाव लड़ना माना जा रहा है।
अलगाववादी नेता (Separatist leader) चुनावी मैदान में
घाटी के कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी सहित कई अलगाववादी नेता चुनावों का बहिष्कार करते आ रहे हैं। करीब चार दशक से ये घाटी में चुनाव का विरोध करते आ रहे हैं। लेकिन अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद घाटी में बदले माहौल में ये कट्टरपंथी एवं अलगाववादी नेताओं की सोच में बदलाव दिख रहा है। तभी तो वे चुनाव में विश्वास जताया है। कई अलगाववादी नेता चुनाव लड़ भी रहे हैं।
जमात-ए-इस्लामी 1987 से कर रहा चुनाव बहिष्कार
कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी वर्ष 1987 के बाद से घाटी में लोकतांत्रिक व्यवस्था और चुनाव आदि का बहिष्कार कर रहा है। हालांकि वर्ष 1987 के पहले यह संगठन घाटी में चुनाव भी लड़ता था और इसके कई उम्मीदवार चुनाव जीतते भी थे।
जमात घाटी में हुए लगभग हर विधानसभा चुनाव लड़ा है। यहां 1972 में हुए विधानसभा चुनाव में जमात ने 22 उम्मीदवार खड़े किए थे। उसमें से 5 चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 1977 के विधानसभा चुनाव में 19 में से केवल एक उम्मीदवार जीता।
1983 के विधानसभा में जमात के एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया। उस चुनाव में जमात ने 26 उम्मीदवार उतारे थे। 1987 का चुनाव जमात मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट बनाकर घाटी में चुनाव लड़ा। तब जमात के 4 उम्मीदवार विधायक बने थे।
निर्दलीय मैदान में अलगाववादी नेता
इस चुनाव में प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के चार पूर्व नेता ताल ठोक रहे हैं। इन्होंने बतौर निर्दलीय नामांकन दाखिल कराया है। इसमें पुलवामा विधानसभा सीट से जमात के पूर्व नेता तलत मजीद, कुलगाम विधानसभा सीट से जमात से जुड़े सयार अहमद रेशी, देवसर विधानसभा सीट से इस कट्टरपंथी संगठन के पूर्व नेता नजीर अहमद बट और शोपियां के जेनपोरा विधानसभा सीट से सरजन अहमद बागे उर्फ सरजन बरकती उर्फ आजादी चाचा ने नामांकन दाखिल किया है।
इनके अलावा आतंकी अफजल गुरु का भाई एजाज गुरु उत्तरी कश्मीर में सोपोर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने जा रहा है।
तहरीक-ए-आवाम (Tehreek-e-Awam) नाम से बनाई पार्टी
इन अलगाववादी नेताओं ने मिलकर तहरीक-ए-आवाम नाम की राजनीतिक पार्टी बनाई है। चुनाव आयोग में पार्टी के पंजीकरण के लिए विलंब से आवेदन करने के कारण अभी इनकी पार्टी का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका है। इसलिए ये नेता निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतार गया है।
तीन चरणों में चुनाव
जानकारी हो कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव तीन चरणों में है। प्रथम चरण 18 सितंबर, द्वितीय 25 सितंबर और तृतीय एवं आखिरी चरण 1 अक्टूबर को होंगे। मतगणना 4 अक्टूबर को होंगे।
नए परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में कुल 90 विधानसभा सीट है। इनमें से 74 अनारक्षित, 9 अनुसूचित जाति और 7 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। यहां मतदाताओं की कुल संख्या 87.09 लाख हैं। इनमें 44.46 लाख पुरुष और 42.62 लाख महिला मतदाता हैं। यहां युवा मतदाताओं की संख्या 20 लाख है।
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