अरुणाचल और सिक्किम में विपक्ष का क्यों हुआ सूपड़ा साफ
अरुणाचल और सिक्किम में विपक्ष का क्यों हुआ सूपड़ा साफ
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Published On: Monday, June 3, 2024
Updated On: Thursday, June 27, 2024
अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में विपक्ष बामुश्किल अपनी उपस्थिति दर्ज करा सका है। अरुणाचल में विपक्ष मात्र नौ और सिक्किम में केवल एक सीट जीत सकी है।
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Updated On: Thursday, June 27, 2024
आम चुनावों के साथ चार राज्यों के विधानसभा का भी चुनाव हुआ था। इसमें पूर्वोत्तर के दो राज्य अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम है। बेशक ये दोनों राज्य छोटे और पूर्वोत्तर के हैं। लेकिन भर की एकता, अखंडता के साथ-साथ सामरिक दृष्टि से ये दोनों राज्य बेहद महत्वपूर्ण हैं। आम चुनावों का नतीजा 4 जून को आएगा। पर अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम विधानसभा चुनावों का नतीजा 2 जून को आ गया है। अरुणाचल में भगवा फिर से लहराया। यहां भाजपा ने 60 सीटों में से 46 सीटें जीतीं। अब लगातार तीसरी बार सरकार बनाएगी।
सिक्किम में भी सत्ताधारी पार्टी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) की वापसी हुई है। इस प्रदेश की जनता ने विपक्ष को लगभग पूरी तरह खत्म कर दिया है। इस पर अब नया बहस जरुर शुरू होने वाला है कि क्या यह लोकतंत्र के लिए सही है? दरअसल, सिक्किम विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी एसकेएम ने 32 सीटों वाली विधानसभा में 31 सीटों पर जीत दर्ज की है। विपक्षी दल को केवल एक सीट पर जीत मिली है। यहां भाजपा का खाता नहीं खुल पाया है। इन दोनों पूर्वोत्तर राज्यों में 19 अप्रैल को वोट डाले गए थे।
अरुणाचल प्रदेश में भाजपा को 46 सीटों पर मिली जीत में से पार्टी ने चुनाव से पहले ही 10 सीटों पर निर्विरोध जीत दर्ज कर ली थी। इसलिए 19 अप्रैल को 50 सीटों पर ही वोटिंग हुई थी। यहां भाजपा और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) का गठबंधन है। एनपीपी ने 5 सीटें जीतीं। इस तरह अरुणाचल में एनडीए ने 51 सीटों पर जीत दर्ज की है। एनसीपी को 3, पीपीए को 2, कांग्रेस को यहां एक सीट पर जीत मिली है। वहीँ 3 सीटों पर अन्य उम्मीदवार जीते हैं।
गोवाहटी के वरिष्ठ पत्रकार अरविंद राय बताते हैं कि पूर्वोत्तर में अधिकांशतः देखा गया है कि यहां ज्यादातर केंद्र की सत्ता में शामिल दलों को ही जीत मिलती रही है। अरुणाचल में भी यही होता है। यहां कोई विपक्ष में नहीं रहना चाहता। इसलिए मतदाता भी विपक्षी उम्मीदवारों को वोट देकर अपना कोई लाभ नहीं देखते। भाजपा की जीत का सबसे बड़ा कारण यह भी है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 9 मार्च को ईटानगर में एक रोड शो किया था। उसका भी संदेश पूरे प्रदेश में अच्छा गया था। वहीं राहुल गांधी या प्रियंका वाड्रा ने वहां की सभा नहीं की।
सिक्किम में भी सत्ताधारी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) ने प्रदेश से पूरे विपक्ष का एक तरह से सफाया कर दिया है। मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने एक तरह से पूरे विपक्ष की छुट्टी कर दी। यहां मुख्य विपक्ष दल सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) है। इसे केवल एक सीट ही मिल पाई। पूर्व मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग दो-दो सीटों से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें दोनों सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा। 25 साल (1994-2019) सत्ता में रहे एसडीएफ को मात्र एक सीट से ही संतोष करना पड़ा। यहां कांग्रेस-भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली।
सिक्किम में एसकेएम और एसडीएफ ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ा। वहीं भाजपा ने 31 उम्मीदवार उतारे थे। कांग्रेस ने 12 सीटों पर चुनाव लड़ा था। सिटिजन एक्शन पार्टी-सिक्किम ने 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। एसकेएम चुनाव से पहले एनडीए का हिस्सा होता था। दोनों का गठबंधन 2019 के आम चुनावों के बाद हुआ था। लेकिन इस चुनावों से पहले भाजपा ने सिक्किम में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर गठबंधन तोड़ दिया था।
चुनाव विश्लेषक सिक्किम में एसकेएम की ऐतिहासिक जीत के कारणों को गिनाते हुए कहते हैं, राज्य स्तर पर चुनावों से कुछ महीने पहले युवाओं को सरकारी नौकरी मिली। इसका पूरे प्रदेश में सरकार के प्रति सकारात्मक असर पड़ा। राज्य सरकार की आवास योजना बेहद काफी चर्चा में रहा। तमांग सरकार ने सैकड़ों गरीबों को इस योजना के तहत आवास बांटें। इसका भी असर रहा।
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