चुनाव के नतीजों पर क्या कहा विदेशी मीडिया (Foreign Media) ने
Authored By: Sanjay Srivastava
Published On: Wednesday, June 5, 2024
Updated On: Thursday, June 27, 2024
दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया, एक्जिट पोल और उसके परिणामों पर विदेशी मीडिया की लगातार गहरी नजर रही। उन्होंने इस पर व्यापक प्रतिक्रिया दी। इंग्लैंड के डेली एक्सप्रेस (Daily Express) के सैम स्टीवेंसन लिखा कि भारतीयों में लोकतंत्र को लेकर गज़ब उत्साह है। समय आ गया है कि अब भारत विरोधी प्रलाप बंद हों। नए भारत की सकारात्मक प्रवृत्तियों पर गौर करना होगा।
अमेरिकी मीडिया (American Media) कहता है कि यहां रहने वाले भारतीय मोदी को अपना हीरो समझते हैं। वे इस बात को लेकर किंचित दुखी है कि इस बार उनकी सीटें कुछ कम आईं लेकिन उन्हें इस बात की खुशी भी है कि तीसरी बार फिर मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे। ‘वाशिंगटन पोस्ट’ (Washington Post) लिखता है, ‘चुनाव परिणाम उनके बहुत अनुकूल तो नहीं रहा फिर भी सरकार वहीं बनाएंगे।‘
‘एनबीसी’ न्यूज (NBC News)के अनुसार मोदी विदेश में संसार के सबसे लोकप्रिय नेता हैं जिनकी एप्रूवल रेटिंग बहुत ज्यादा है। वे उन प्रवासी भारतीयों के सबसे प्रिय नेता हैं जो यह मानते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था और विश्व स्तरीय विश्वास मोदी के बल पर ही है। एक बार फिर मोदी की अगुआई से अप्रवासी भारतीय खुश हैं। हालांकि वे इससे बड़ी जीत चाहते थे। एनबीसी न्यूज के अनुसार भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Indian Prime Minister Narendra Modi) का तीसरा कार्यकाल पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण और चुनौतियों भरा होगा।
लंदन के ‘टाइम्स’ को लगता है कि राजग के सहयोगी दलों को और जितना अच्छा प्रदर्शन करना चाहिए था उतना नहीं किया खुद बीजेपी का भी प्रदर्शन पहले जैसा नहीं था ऐसे में अगर उन्हें मजबूत सरकार बनानी है तो कुछ नए सहयोगियों की और देखने के साथ यह भी देखना होगा कि उनके सहयोगी उनके साथ बने रहें।
प्रसिद्ध अख़बार ‘गार्जियन’ ने मोदी के भाषण को दोहराया कि भारत को बड़े फैसलों के लिये तैयार रहना होगा, मोदी अपने निर्णयों से इतिहास लिखेंगे। ‘गार्जियन’ के अनुसार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल के लिए रास्ता बहुत आसान कर लिया था लेकिन उनकी जीत और शानदार होती अगर वे उन 70 सीटों पर जीत जाते जिन पर उनकी पार्टी के विजयी होने की बहुत संभावना थी। वह कहता है कि एक गठबंधन के तौर पर मोदी के पास दो तिहाई बहुमत है जबकि विपक्ष ने भी सामूहिकता में अच्छी ताकत दिखाई और बेहतर प्रतिरोध के लिए वे सामने होंगे। डीएमके तमिलनाडु में और तृणमूल ने पश्चिम बंगाल तथा समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में बढ़िया प्रदर्शन किया।
बीबीसी के अनुसार बीजेपी (BJP) बहुमत से चूकी पर नीतीश-नायडू के सहारे एनडीए को बहुमत हासिल है। केंद्र में सरकार गठन के लिए ज़रूरी आंकड़े की कुंजी इन्हीं के पास होने के चलते सरकार बनाने और उसे चलाने के लिए बीजेपी को सत्ता का संतुलन साधना होगा। निगाहें चंद्रबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar Chief Minister Nitish Kumar)पर रहेंगी जो समय-समय पर साझेदार और रणनीति बदलने के लिए मशहूर हैं।
‘अलज़जीरा’ ने लिखा कि मोदी जीत गये और सरकार भी बना लेंगे पर बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर अब उन्हें कुछ ठोस करना होगा। पाकिस्तानी मीडिया को चुनाव परिणामों को लेकर के कोई हैरत नहीं हुई। उन्हें उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी क्लीन स्वीप करेंगे पर वैसा नहीं हो सका। अख़बार ‘डॉन’ ने चिंता जाहिर की है कि मोदी के तीसरे कार्यकाल में भारतीय मुसलमानों में भय का माहौल बनेगा। बांग्लादेश की मीडिया इस बात के लिये चिंतित दिखी कि नई सरकार भारतीय मुसलमानों के साथ कैसा व्यवहार करती है। नेपाल की मीडिया ने इस बात पर असमंजस दिखाया कि भारत के साथ उसके सीमा विवाद और कुछ दूसरे मसलों पर दूरी बढ़ी है, क्या वह इस तीसरे कार्यकाल में कुछ सुलझेंगी या और बढ़ेंगी।
जर्मनी के ‘ड्यूश वैले’ (Deutsche Welle) ने चुनाव परिणामों के बाद इस बात पर चिंता व्यक्त की कि मोदी प्रधानमंत्री बन तो जाएंगे लेकिन खुद की पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत न होने से उनको कई महत्वपूर्ण आर्थिक मोर्चे पर फैसले लेने में कठिनाई आयेगी। भारत ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनना चाहता है। उसके इस कोशिश पर असर पड़ेगा। उसके अनुसार यूरोपीय यूनियन (European Union) के साथ व्यापार संबंधों में मोदी ने बहुत तेजी ला दी थी। उनके कार्यकाल में यह 30 फीसदी बढ़ा है। अब अगले कार्यकाल में भी ऐसी रफ्तार रहेगी, देखना होगा। उसने नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने पर रूस और यूक्रेन के युद्ध पर भी क्या प्रभाव पड़ेगा, रोशनी डाली है। ‘ड्यूश वैले’ ने उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में भाजपा को कैसे बड़ा झटका लगा और फैजाबाद की सीट राम मंदिर (Ram Mandir) और अयोध्या के होने के बावजूद वह क्यों हार गई इस पर अचरज दिखाते हुए कहा है कि उनको बहुमत मिल गया है लेकिन विपक्ष भी मजबूत हुआ है।
‘वॉल स्ट्रीट’ जर्नल को भी लगता है कि नई सरकार को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना होगा। वह चुनाव परिणामों के बाद भारतीय स्टाक मार्केट के तेजी से गिरने को लेकर चिंतित दिखा। बैंकिंग, पावर और इंडस्ट्रियल स्टॉक को पहुंचे गहरे नुकसान तथा डॉलर के मुकाबले रुपये के लुढ़कने पर चिंता व्यक्त करता है।
हालांकि ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ की राय कुछ अलग है। उसके अनुसार गठबंधन की राजनीति मजबूती के साथ वापस आई है, चाहे वह पक्ष की राजनीति हो या विपक्ष की। गठबंधन को दोनों के सम्मान और तरजीह देना ही होगा। मोदी को भी अपना गठबंधन मजबूत रखना होगा और यदि किसी भी तरह विपक्षी सरकार बनाने का प्रयास करते हैं तो उन्हें भी अपने गठबंधन की ताकत बढाने और उसे अटूट रखने में ताकत लगानी होगी। फाइनेंशियल टाइम्स ने इस बात का भी जिक्र किया है कि विजय महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस मायने में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बराबरी कर ली है कि वे तीन बार लगातार प्रधानमंत्री पद पर चुने जाएंगे।
सीबीएसई न्यूज़ एसोसिएट प्रेस के हवाले से कहता है कि भाजपा सबसे ज्यादा सीट लाने वाली पार्टी रही लेकिन निश्चित तौर पर उसे एक मजबूत विपक्ष का सामना करना पड़ेगा जिसकी उसे कतई उम्मीद नहीं थी। द इंडिपेंडेंट लिखता है कि लोकतंत्र के सबसे बड़े चुनाव में खुद भारतीय जनता पार्टी को बहुमत नहीं मिला है फिर भी पार्टी की सरकार बनेगी, मोदी ऐतिहासिक तौर पर तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे लेकिन निश्चित तौर पर उन्हें सहयोगी दलों पर आश्रित रहना पड़ेगा।
स्काई न्यूज़ का भी विचार है कि चुनाव में भाजपा बहुमत से दूर है ऐसे में प्रधानमंत्री का तीसरा कार्यकाल बहुत हद तक अपने सहयोगियों पर निर्भर रहेगा। राइटर लिखता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर से संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्र में अपनी क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ विजय प्राप्त की उनका का कीर्तिमान बनाते हुए प्रधानमंत्री बनना तय है लेकिन इस बार उनके पस पहले जैसी आज़ादी नहीं होगी।
स्काई न्यूज़ (Sky News) चर्चा करता है कि भारत जो ग्लोबल पावर बनने में चीन की बराबरी करना चाहता है और आर्थिक महाशक्ति बनना चाहता है उसके लिए अब मोदी जी जो थोड़े कमजोर हुए हैं, देखना होगा कि वे क्या कदम उठा सकते हैं। यह वेबसाइट इस बात पर भी सवाल उठाती है कि मोदी की पार्टी का प्रतिनिधित्व कश्मीर घाटी (Kashmir Valley) में क्यों नहीं है।
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