शिक्षक दिवस (5 सितंबर) स्पेशल : सरकारी स्कूलों के नौनिहालों के सपने पूरे करने में जुटे आइआइटी के स्टूडेंट वॉलंटियर्स, बच्चे-युवा लिख रहे सफलता की नई इबारत

शिक्षक दिवस (5 सितंबर) स्पेशल : सरकारी स्कूलों के नौनिहालों के सपने पूरे करने में जुटे आइआइटी के स्टूडेंट वॉलंटियर्स, बच्चे-युवा लिख रहे सफलता की नई इबारत

Authored By: अंशु सिंह

Published On: Tuesday, September 3, 2024

teachers' day 5 september special
teachers' day 5 september special

दिल्ली सरकार के स्कूलों के करीब 70 फीसद छात्रों ने जब इस वर्ष जेईई एडवांस की परीक्षा उत्तीर्ण की, तो हर कोई हैरान था। इनमें से एक छात्र आस्तिक नारायण ने तो जेईई मेन्स में 100 पर्सेंटाइल स्कोर भी हासिल किया। झारखंड के खूंटी जिले के कालामाटी स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय की छात्राओं ने भी जेईई की परीक्षा में कमाल कर दिखाया। कुल 23 छात्राएं जेईई मेन्स की परीक्षा में शामिल हुईं थीं, जिनमें से 22 परीक्षा में सफल रहीं। इतना ही नहीं, इनमें से 4 छात्राओं ने जेईई एडवांस भी क्वालिफाई कर दिखाया।

Authored By: अंशु सिंह

Last Updated On: Wednesday, September 4, 2024

Highlights :

  • एक अध्ययन के अनुसार, विज्ञान विषयों की ओर लड़कियों का रुझान बढ़ा है। इसमें भी सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं के परिणाम लड़कों से काफी बेहतर आ रहे हैं। बोर्ड की परीक्षाओं में वे लड़कों से अधिक सफलता हासिल कर रही हैं।
  • आइआइटी मद्रास, आइआइटी कानपुर, आइआइटी गुवाहाटी, आइआइटी धाड़वाड़ जैसे देश के प्रतिष्ठित आइआइटी संस्थान सरकारी स्कूल के बच्चों को शिक्षा देने के लिए आगे आये
  • आइआइटी मद्रास ने वर्ष 2026 तक देश के सात राज्यों के 50 हजार से अधिक सरकारी स्कूलों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत वे क्षेत्रीय भाषा में बच्चों को विज्ञान एवं गणित की शिक्षा देंगे।
  • आइआइटी कानपुर के ‘ऑनलाइन रूरल एजुकेशन इनिशिएटिव’ (ओआरईआइ) मॉडल के तहत पीएचडी के छात्र वॉलंटियर्स गांव के सरकारी स्कूलों में छात्रों को शिक्षित करते हैं।

  • वाराणसी के बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित करीब 354 जूनियर स्कूलों के बच्चों को आइआइटी के छात्र विज्ञान एवं अंग्रेजी पढ़ाते हैं.

देश भर के सभी शिक्षा बोर्डों की 10वीं एवं12वीं के परीक्षा परिणाम को लेकर सरकार की ओर से कराए गए एक अध्ययन के अनुसार, विज्ञान विषयों की ओर लड़कियों का रुझान बढ़ा है। इसमें भी सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं के परिणाम लड़कों से काफी बेहतर आ रहे हैं। बोर्ड की परीक्षाओं में वे लड़कों से अधिक सफलता हासिल कर रही हैं। छात्रों की ये उपलब्धियां दर्शाती है कि सीमित संसाधनों के बावजूद कैसे सरकारी स्कूलों के छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में न सिर्फ बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे, बल्कि नवाचार को लेकर गहरी दिलचस्पी भी ले रहे।

उचित मंच मिलने से प्रतिभा को मिला निखरने का मौका

बच्चे किसी भी वर्ग से क्यों न ताल्लुक रखते हों, हरेक के पास कुछ न कुछ हुनर होता है। काबिलियत होती है। उचित प्लेटफॉर्म एवं मार्गदर्शन मिलने से वे न सिर्फ शैक्षिक रूप से खुद को सशक्त बनाते हैं, बल्कि दूसरों के सामने एक मिसाल भी पेश करते हैं। कानपुर के हनुमान गुप्ता ने परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति होने के बावजूद शिक्षा से समझौता नहीं किया।12वीं की पढ़ाई पूरी कर, हार्डवेयर नेटवर्किंग एवं कंप्यूटर से जुड़े कोर्स किए। आज बतौर कंप्यूटर प्रोफेशनल नोएडा की एक निजी कंपनी में कार्य कर रहे हैं। हनुमान की तरह ही रितोश शुक्ला के परिवार की भी अपनी विवशता थी कि वे बच्चे को कायदे से पढ़ाने में असमर्थ थे। लेकिन रितोश ने 12वीं तक की पढ़ाई पूरी क और प्रतियोगी परीक्षा के जरिये भारतीय नौसेना में शामिल हो गए। कानपुर के ईशांत दूबे को भी पढ़ने का शौक था। एक दिन उन्हें आइआइटी कानपुर के सहयोग से चलाए जा रहे ‘शिक्षा सोपान’ संस्था के प्रतिभा पोषण स्कॉलरशिप कार्यक्रम की जानकारी मिली। उन्होंने परीक्षा दी और उसमें सफल हुए। ईशांत बताते हैं, ‘स्कॉलरशिप की मदद से मैं एक अच्छे स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी कर सका। इससे न सिर्फ पढ़ाई में सुधार आया, बल्कि विज्ञान में रुचि भी पैदा हुई। मैंने जेईई की तैयारी की और परीक्षा क्लियर किया। उसके पश्चात् चेन्नई के भारत यूनिवर्सिटी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग किया। शिक्षा सोपान ने पूरे चार साल का खर्च उठाया। आज मैं जो भी हूं, उसमें उनका सबसे बड़ा योगदान है।‘ ईशांत फिलहाल हैदराबाद में ‘एसआइएनएसएमई’ (SINSME) नाम से एक फाउंडेशन चलाते हैं, जो शिक्षा, पर्यावरण एवं पशुओं की सुरक्षा के मुद्दे पर काम करता है। इसके साथ ही अंतरिक्ष इंडिया (ANTARIKSHA INDIA) एवं वेगंस ऑफ तेलंगाना (VEGANS OF TELANGANA) नाम से कंपनी का संचालन भी कर रहे हैं। कहना गलत नहीं होगा कि इन सभी युवाओं को अगर उनके जीवन का लक्ष्य मिला और वे उसे प्राप्त कर सके, तो उसमें आइआइटी एवं शिक्षा सोपान जैसे गैर-सरकारी संगठनों की अहम भूमिका रही।

स्टेम शिक्षा को प्रोत्साहित करने में जुटे आइआइटी संस्थान

दरअसल, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में जिस प्रकार से स्टेम (stem-science, technology,engineering, maths) शिक्षा पर जोर दिया गया है, उससे सरकारी स्कूलों में भी विज्ञान के प्रति रुचि बढ़ी है। अटल टिंकरिंग लैब की स्थापना से बच्चे छोटी उम्र में नवाचार को लेकर प्रेरित हो रहे हैं। अब आइआइटी मद्रास, आइआइटी कानपुर, आइआइटी गुवाहाटी, आइआइटी धाड़वाड़ जैसे देश के प्रतिष्ठित आइआइटी संस्थान भी सरकारी स्कूल के बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन देने के लिए आगे आए हैं। स्टेम शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न आइआइटी द्वारा क्षेत्रीय भाषाओं में आउटरीच प्रोग्राम चलाने के साथ ही बच्चों को पाठ्य सामग्री पहुंचाई जा रही है। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के अलावा आइआइटी के छात्र ऑनलाइन बच्चों से रू-ब-रू हो, उन्हें रोचक तरीके से विज्ञान विषय पढ़ा रहे हैं। आइआइटी मद्रास ने वर्ष 2026 तक देश के सात राज्यों के 50 हजार से अधिक सरकारी स्कूलों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत वे क्षेत्रीय भाषा में बच्चों को विज्ञान एवं गणित की शिक्षा देंगे। साथ ही तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल के करीब 9,193 स्कूलों को मुफ्त में 3,20,702 किताबें एवं छात्रों को करियर गाइडेंस भी दी जाएगी। बच्चों के अलावा शिक्षकों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। मसलन, आइआइटी गुवाहाटी में रेजिडेंशियल टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम के जरिये असम के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को फिजिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, कोडिंग, रोबोटिक्स, एआई, बायोलॉजी, केमिस्ट्री, पेडागॉगी एवं मेंटल वेलनेस की ट्रेनिंग दी जा रही है। संस्था स्कूलों में साइंस एवं मैथ्स क्लब स्थापित करने में भी सहयोग दे रही है। आइआइटी धाड़वाड़ कन्नड़ भाषा में पाठ्य सामग्री तैयार कर रहा है, ताकि सरकारी स्कूल के बच्चे अपनी मातृभाषा में विज्ञान विषय की पढ़ाई कर सकें। शिक्षकों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं।

आइआइटी कानपुर में ओआरईआइ मॉडल का सफल प्रयोग

आइआइटी कानपुर (IIT Kanpur) ने अपने आउटरीच प्रोग्राम के तहत अलुमिनाई के सहयोग से नवंबर 2021 में ‘रोजी शिक्षा केंद्र’ (आरएसके) प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य आसपास के गांवों के युवाओं को रोजगार के काबिल बनाने के साथ ही उनके कौशल विकास पर काम करना है। इसके अलावा, ‘ऑनलाइन रूरल एजुकेशन इनिशिएटिव’ (ओआरईआइ) मॉडल के तहत पीएचडी के छात्र वॉलंटियर्स गांव के सरकारी स्कूलों में छात्रों को शिक्षित करते हैं। आरएसके की प्रोजेक्ट एक्जीक्यूटिव ऑफिसर रीता सिंह बताती हैं, ‘हमारा उद्देश्य है कि हर वर्ग के बच्चे को क्वालिटी एजुकेशन मिल सके। इसके लिए आइआइटी के स्टूडेंट वॉलंटियर्स स्मार्ट क्लासरूम (लाइव कैमरा फीड) के जरिये कक्षा 9 से 11 के स्कूली छात्रों को एनसीईआरटी के सिलेबस के अनुसार, मैथ्स एवं विज्ञान विषय पढ़ाते हैं। बच्चे उनसे ऑनलाइन सवाल पूछ सकते हैं। अगले साल तक 12वीं के स्टूडेंट्स को भी पढ़ाने की योजना है। शुरुआत में हमने बिठूर एवं लखनऊ के दो स्कूलों के साथ पार्टनरशिप की थी। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार एवं आइआइटी कानपुर के बीच हुए एमओयू के पश्चात् अब लखनऊ के 5-6, गोरखपुर, कानपुर एवं चंदौती के करीब दर्जन भर और स्कूलों में यह प्रोजेक्ट शुरू हो चुके हैं। आने वाले समय में कई और स्कूलों के जुड़ने की संभावना है।‘ फिलहाल, प्रत्येक स्कूल में रोजाना दो पीरियड्स एलॉट किए गए हैं, जिसमें आरएसके के वॉलंटियर्स हफ्ते में दो ऑनलाइन क्लास लेते हैं। आज करीब 40 पीएचडी स्टूडेंट वॉलंटियर्स, आइआइटी के कुछ स्टाफ एवं अनुभवी शिक्षक इस प्रोजेक्ट से जुड़े हुए हैं।

मूल्य आधारित शिक्षा प्रदान करने में जुटा ‘शिक्षा सोपान’

वर्ष 2001 से समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को मूल्य आधारित शिक्षा प्रदान करने में जुटे ‘शिक्षा सोपान’ संगठन के सचिव अमित वाजपेयी कहते हैं, ‘यह संगठन पूरी तरह से वॉलंटियर आधारित है। आइआइटी कानपुर के फैकल्टी, छात्रों एवं कुछ स्थानीय युवाओं ने मिलकर इसकी शुरुआत की थी। शिक्षा, संस्कार एवं स्वावलंबन हमारा मंत्र रहा है। अर्थात् हम बच्चों को ऐसी शिक्षा देते हैं, जिनसे उनके अंदर आत्मविश्वास आए और वे मानवीय मूल्यों के साथ अपना भविष्य संवार सकें। शुरुआत उन बच्चों से हुई थी, जो आइआइटी कानपुर कैंपस के सर्वेंट क्वार्टर में रहा करते थे। धीरे-धीरे प्रसिद्ध प्रोफेसर एच सी वर्मा के मार्गदर्शन में यह कारवां आगे बढ़ता गया। वर्तमान समय में संस्था द्वारा कानपुर के बारहसिरोही इलाके में दो सायंकालीन शिक्षण केंद्र, आइआइटी कैंपस में एक सोपान लाइब्रेरी, अनौपचारिक शिक्षा केंद्र एवं विज्ञान प्रयोगशालाओं का संचालन किया जा रहा है। यहां न्यूनतम बजट में वैज्ञानिक प्रयोग किए जाते हैं। कोई भी बच्चा कम से कम संसाधन में प्रयोग करना सीख सकता है। इवनिंग क्लासेज में उन्हें पेंटिंग, ड्राइंग एवं मॉडल बनाना सिखाया जाता है। नानकारी स्थित सोपान आश्रम द्वारा समय-समय पर साइंस के टूर कराए जाते हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश के कनौज, उन्नांव एवं कानपुर के अलग-अलग स्कूलों से बच्चे आकर वैज्ञानिक प्रयोग करते संस्था में नवीन शैक्षणिक विधियों, ऑडियो-विजुअल एड्स, प्रदर्शनी, प्रयोगशाला गतिविधियां एवं खेल के माध्यम से छात्रों को शिक्षित किया जाता है।’

विद्या शक्ति परियोजना के तहत आइआइटी के छात्र बच्चों को रहे पढ़ा

देश की हर प्रतिभा को पढ़ने का उचित अवसर मिले, इस उद्देश्य को लेकर वर्ष 2022 में काशी में आयोजित तमिल संगमम् के दौरान आइआइटी मद्रास के निदेशक ने विद्या शक्ति परियोजना की नींव रखी थी। इसके तहत सरकारी स्कूलों को स्मार्ट क्लासेज से जोड़ा गया। वर्तमान समय में वाराणसी के बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित करीब 354 जूनियर स्कूलों में यह प्रभावी है। यहां आइआइटी के छात्र सरकारी स्कूल के बच्चों को ऑनलाइन विज्ञान एवं अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं। इस तरह, बच्चों को विश्व के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग संस्थानों में से एक आइआइटी के छात्रों से रू-ब-रू होने का मौका मिल रहा है। वे पढ़ाई के साथ सपने गढ़ने लगे हैं। लक्ष्य बनाने लगे हैं। विद्या शक्ति परियोजना की सफलता को देखते हुए ही केंद्र सरकार इसे देश भर में प्रभावी करना चाहती है। ‘रंजीत सिंह रोजी शिक्षा केंद्र’ की प्रोजेक्ट एक्जीक्यूटिव ऑफिसर रीता सिंह का मानना है कि जिस तरह स्टूडेंट वॉलंटियर्स की मदद से आइआइटी संस्थान सरकारी स्कूलों के बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा कर रहे हैं। उनके जीवन को नई दिशा दे रहे हैं, अगर वैसे ही स्वैच्छिक प्रयास एवं पहल देश के अन्य उच्च शिक्षण संस्थान भी करना शुरू कर दें, तो शिक्षा की स्थिति कई गुणा बेहतर हो सकती है। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि बहुसंख्यक सरकारी स्कूलों की हालत एवं शिक्षकों की स्थिति क्या है? अगर प्रयोगशाला हैं, तो काबिल शिक्षक नहीं। कहीं शिक्षक हैं, तो उन पर काम का अत्यधिक दबाव है। ऐसे में सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ ही शिक्षकों को भी नई शिक्षा नीति के अंतर्गत प्रशिक्षित करना होगा। आइआइटी संस्थानों द्वारा इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। लेकिन इसमें बाकी शैक्षणिक संस्थानों, पॉलिटेक्निक, आइटीआइ एवं निजी विश्वविद्यालयों को भी आगे आना होगा।

About the Author: अंशु सिंह
अंशु सिंह पिछले बीस वर्षों से हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। उनका कार्यकाल देश के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण और अन्य राष्ट्रीय समाचार माध्यमों में प्रेरणादायक लेखन और संपादकीय योगदान के लिए उल्लेखनीय है। उन्होंने शिक्षा एवं करियर, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक मुद्दों, संस्कृति, प्रौद्योगिकी, यात्रा एवं पर्यटन, जीवनशैली और मनोरंजन जैसे विषयों पर कई प्रभावशाली लेख लिखे हैं। उनकी लेखनी में गहरी सामाजिक समझ और प्रगतिशील दृष्टिकोण की झलक मिलती है, जो पाठकों को न केवल जानकारी बल्कि प्रेरणा भी प्रदान करती है। उनके द्वारा लिखे गए सैकड़ों आलेख पाठकों के बीच गहरी छाप छोड़ चुके हैं।
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