राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में मोदी-ट्रंप दोस्ती की होगी अग्निपरीक्षा

Authored By: Gunjan Shandilya

Published On: Saturday, November 9, 2024

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डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंध अच्छे रहे हैं। उसी को देखते हुए अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि उनके अगले कार्यकाल में भी संबंध ठीक ठाक रहने वाले हैं। लेकिन कई ऐसे मुद्दे भी हैं, जो भारत के हित को नुकसान पहुंचाएगा। इन मुद्दों पर मोदी-ट्रंप की दोस्ती की अग्निपरीक्षा होगी।

वर्ष 2021 में हार के बाद पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप फिर से वापसी करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने जा रहे हैं। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण एवं एक्जिट पोल में डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर बताई गई थी लेकिन चुनावी नतीजा लगभग एकतरफा रहा। अब जब ट्रंप चुनाव जीत गए हैं या कहें अमेरिका में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है तो दुनिया के देशों पर इसका क्या असर पड़ेगा, इसे समझना जरूरी है।

लेकिन यहां बात सिर्फ भारत और अमेरिका संबंधों की। पिछले कुछ वर्षों से भारत-अमेरिका संबंध स्थिरता आई है। लेकिन अमेरिका की सत्ताधारी पार्टी की विचारधारा का कहीं न कहीं अनुकूल और प्रतिकूल दोनों तरह के प्रभाव पड़ते रहे हैं। मसलन, वर्तमान सत्ताधारी डेमोक्रेट (जो बाइडन) की नीति जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत के अनुकूल नहीं रही है। उनके उपराष्ट्रपति एवं डेमोक्रेटिक पार्टी की राष्ट्रपति उम्मीदवार कमला हैरिस का जम्मू-कश्मीर पर दिया बयान काभी भारत हित में नहीं रहा है। वहीं ट्रंप ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने पर भी कभी भारत के प्रतिकूल बयान नहीं दिया है।

अमेरिका फर्स्ट से भारत को नुकसान

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव में ‘मैक अमेरिका ग्रेट अगैन’ (एमएजीए) का नारा दिया था। इसमें अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत करने से लेकर विश्व में ‘अमेरिका फर्स्ट’ को फिर से स्थापित करना है। ऐसी स्थिति में भारत की अर्थव्यवस्था को कुछ नुकसान पहुंच सकता है। इसके तहत ट्रंप अमेरिकी उद्योगों को संरक्षण देने की नीति अपनाएगी। इसके लिए अमेरिका कंपनी को बाजार की जरूरत होगी और भारत अभी दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है।

ऐसे में नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत से अमेरिकी समान पर इम्पोर्ट ड्यूटी घटाने का दबाव बनाएंगे। जबकि अभी भारत खुद अपनी अर्थव्यवस्था को तीसरे पायदान पर पहुंचाने में जुटी है। ऐसे में देखना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्रंप के इस दबाव को कैसे अपनी कूटनीति से भोथरा करते हैं।

ट्रंप की आर्थिक नीति और भारत

वर्तमान समय में भारत और अमेरिका के बीच 200 अरब डॉलर का व्यापार होता है। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान टैरिफ नीति को भी मुद्दा बनाया था। अभी दुनिया के जिन देशों में अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ 20 प्रतिशत से ज्यादा है, ट्रंप उसे घटाने का दबाव डालेंगे। वहीं विदेशी वस्तुओं पर अमेरिका में ज्यादा टैक्स लगाया जा सकता है। ऐसे में भारत को भी नुकसान पहुंचेगा। उदाहरण के तौर पर भारत से अमेरिकी हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिलों पर टैरिफ हटाने या घटाने को कहा था। हालांकि तब प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका के दबाव में नहीं आए थे।
अंतर्राष्ट्रीय जानकार मानते हैं कि ट्रंप की आर्थिक नीतियों से भारत का आयात महंगा हो सकता है। इससे भारत में महंगाई दर बढ़ सकता है। पहले से यहां चुनावों में महंगाई मुद्दा बनता रहा है, ऐसे में यह और नुकसानदायक होगा।

सख्त अवैध प्रवासी नीति

इस बार के अमेरिकी चुनाव में गैरकानूनी प्रवासी बड़ा मुद्दा था। डोनाल्ड ट्रंप ने इसे मुद्दा बनाया था। उन्होंने चुनाव में अमेरिकी लोगों से वादा किया है कि वे सत्ता में आते हैं तो गरकानूनी रूप से अमेरिका में रह रहे प्रवासियों को उनके देश भेज जाएगा। ऐसे प्रवासियों में भारतीयों की अच्छी-खासी संख्या है। यदि ट्रंप अपने वादे को पूरा करते हैं तो गैरकानूनी तरीके से रह रहे भारतीय को अपना देश लौटना पड़ेगा। वहां बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रहा है और ट्रंप का मानना है कि अवैध प्रवासी अमेरिका के लोगों के रोज़गार छिन रहे हैं।

ट्रंप की ‘एच-1 बी’ वीजा नीति

अमेरिका में बहुत बड़ी संख्या में भारतीय नौकरी करते हैं। इसके लिए अमेरिकी या भारतीय कंपनी ‘एच-1 बी’ वीजा पर भारत से प्रोफेशनल्स को ले जाते हैं। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी इस वीजा को संख्या को घटा दिया था। इसका नुकसान भारत के प्रोफेशनल्स पर पड़ा था। ट्रंप का स्पष्ट मानना है कि जब बाहर से नौकरी के लिए नहीं आएंगे तो अमेरिकी प्रोफेशनल्स को ज्यादा नौकरी मिलेगा। यह ट्रंप का बेरोजगारी दर कम करने का तरीका है। लेकिन अंततः इसका नुकसान भारतीय को ही होगा।

मोदी-ट्रंप दोस्ती का लाभ

मोदी और ट्रंप की दोस्ती उनके पहले कार्यकाल से ही है। डोनाल्ड ट्रंप कई बार इसे सार्वजनिक भी कर चुके हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके अच्छे दोस्त हैं। इस चुनाव में भी उन्होंने कई बार इसका जिक्र किया था। यही नहीं चुनाव जीतने के बाद ट्रंप जब पहली जनसभा को संबोधित कर रहे थे तो उसमें भी उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का जिक्र करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी को पूरी दुनिया पसंद करता है। ऐसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास ट्रंप से कई मोर्चों पर डील करने का अनुभव है।

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ट्रंप का चीन दुश्मन नंबर वन

डोनाल्ड ट्रंप चीन को शुरू से पसंद नहीं करते हैं। वह नहीं चाहते है कि चीन अमेरिका से आगे निकले। ऐसे स्थिति में भी अमेरिका-चीन संबंध खराब होने का लाभ भारत को होगा। अमेरिका चाहेगा कि भारतीय महाद्वीप पर भारत मजबूत हो। इसका असर भारत पर पादन स्वाभाविक है।

रक्षा संबंध होने मजबूत

चीन का स्वाभाविक विरोधी होने के कारण भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंधों को और मजबूती मिलेगा। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने पर भारत के साथ हथियारों के निर्यात, संयुक्त सैन्य अभ्यास और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर आदि मामले में दोनों देशों के बीच संबंध और अधिक मजबूत होंगे।

पाकिस्तान-बांग्लादेश से चुनौती होगी कम

अमेरिका जो बाइडन सरकार ने बांग्लादेश में तख्तापलट करवाया था, इसे पूरी दुनिया जान गई। इससे भारत-बांग्लादेश सीमा पर सुरक्षा बालों को कई का चुनौतियों सामना करना पड़ रहा है। दूसरा, बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार बढ़ा है। ट्रंप ने इन सबका खुलकर विरोध किया था। उन्होंने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर बढ़ते अत्याचार के विरोध में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट भी लिखा था। बांग्लादेश में शांति स्थापित होने पर इसका असर भारत पर भी पड़ेगा, जो अच्छा ही होगा।

जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर भी ट्रंप भारत के साथ है। हालांकि उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में इसको लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने की बात कही थी, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। लेकिन ट्रंप जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर हमेशा प्रधानमंत्री मोदी के साथ खड़ा दिखें हैं। चाहे वहां आतंकवाद का मुद्दा हो या फिर बालाकोट एयरस्ट्राइक हो या फिर सर्जिकल स्ट्राइक, इन सभी मुद्दों पर ट्रंप ने भारत का साथ दिया है। इन सबके बावजूद देखना होगा कि जब अगले साल 20 जनवरी को ट्रंप राष्ट्रपति का शपथ लेते हैं, उसके बाद भारत को लेकर उनकी नीति क्या होती है।

About the Author: Gunjan Shandilya
समसामयिक मुद्दों पर गहरी समझ और पटकथा लेखन में दक्षता के साथ 10 वर्षों से अधिक का अनुभव। विभिन्न मंचों पर विषयों को रोचक और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की क्षमता। नई पत्रकारिता शैलियों और प्रौद्योगिकियों के साथ कदम से कदम मिलाने में निपुण।

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