भारत-ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट सीरीज घर में हारे…क्या परदेस में भी बनेंगे ‘बेचारे’

भारत-ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट सीरीज घर में हारे…क्या परदेस में भी बनेंगे ‘बेचारे’

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Published On: Tuesday, November 12, 2024

Last Updated On: Thursday, May 1, 2025

india australia test series
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भारतीय क्रिकेट टीम ने हाल के वर्षों में अपने प्रदर्शन से दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। आईसीसी रैंकिंग में वह सबसे ऊपर भी रही है। आईपीएल ने उसे कई उम्दा खिलाड़ी दिए हैं। लेकिन पिछले दिनों न्यूजीलैंड द्वारा देश में ही खेली गई तीन टेस्ट मैचों की सीरीज में 3-0 से भारत के क्लीन स्वीप को कोई भी क्रिकेट प्रशंसक पचा नहीं पा रहा है। कुछ ही दिनों में ऑस्ट्रेलिया में पांच टेस्ट मैचों की सीरीज शुरू होने जा रही है। इसमें रोहित शर्मा की कप्तानी के साथ कोच गौतम गंभीर की साख भी दांव पर लगी है। क्या इस सीरीज में अपने प्रदर्शन से भारत वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में अपनी जगह पक्की कर सकेगा या फिर फैंस को निराशा ही हाथ लगेगी...

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Last Updated On: Thursday, May 1, 2025

हाइलाइट्स

  • न्यूजीलैंड से अपने घरेलू मैदानों पर टीम इंडिया का टेस्ट सीरीज में 3-0 से क्लीन स्वीप हुआ, यानी एक भी जीत नहीं मिली। न्यूजीलैंड ने अप्रत्याशित रूप से भारत को उसके ही मैदानों, उसकी ही बनाई स्पिन पिचों पर हरा दिया है।
  • नौ दशक से अधिक लंबा समय बीत गया, लेकिन इस तरह की करारी हार हमें घर में कभी नहीं मिली। वर्ष 2000 में साउथ अफ्रीका ने जरूर एक बार भारत को दो टेस्ट मैचों की सीरीज में 2-0 से हराया था।
  • आगामी आस्ट्रेलिया दौरे की खास बात यह है कि 26 साल बाद दोनों टीमें पांच टेस्ट मैचों की सीरीज में आमने सामने होंगी। भारत के लिए तो न्यूजीलैंड से मिली हार के बाद यह सीरीज करो या मरो की स्थिति में पहुंच गई है।

जहां क्रिकेट धर्म कहा जाता हो और सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) इसके ‘देवता’, वहां करारी हार पर दुखी होना लाजिमी ही है। मोटिवेशनल दुनिया में कहा जाता है कि हार-जीत नहीं, खेलना अहम है, लेकिन हकीकत की दुनिया में कोई हारना नहीं चाहता है। फिर आपको दीवानों की तरह चाहने वाले फैंस के सामने घर में ही हारना ही न पड़े बल्कि एक मेहमान टीम से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी तो दुख भी होता है, गुस्सा भी और चिंता भी। बात हो रही है हाल ही में न्यूजीलैंड से अपने घरेलू मैदानों पर टीम इंडिया की टेस्ट सीरीज में 3-0 से क्लीन स्वीप। क्लीन स्वीप यानी जीत मिली ही नहीं। भारत में खेले गए टेस्ट मैचों में पहली बार यह हुआ है कि तीन मैचों की सीरीज में भारत एक भी मुकाबला जीत नहीं सका। नौ दशक से अधिक लंबा समय बीत गया, लेकिन इस तरह की करारी हार हमें घर में कभी नहीं मिली।

सन् 2000 में साउथ अफ्रीका ने जरूर एक बार भारत को दो टेस्ट मैचों की सीरीज में 2-0 से हराया था। अब न्यूजीलैंड ने अप्रत्याशित रूप से भारत को उसके ही मैदानों, उसकी ही बनाई स्पिन पिचों पर हरा दिया है। टीम का मनोबल भी रसातल में होगा और फैंस की निराशा भी। अब बारी परदेस की है, वह भी आस्ट्रेलिया दौरे जैसी अग्निपरीक्षा की। जहां वाका की फास्ट पिच हो या गाबा की उछाल भरी स्ट्रिप, भारतीय ही नहीं किसी भी क्रिकेट टीम के लिए कड़ी परीक्षा की तरह होती है। अब टीम इंडिया को वहां खेलना है।

आस्ट्रेलिया दौरे की खास बात यह है कि 26 साल बाद दोनों टीमें पांच टेस्ट मैचों की सीरीज में आमने सामने होंगी। भारत के लिए तो न्यूजीलैंड से मिली हार के बाद यह सीरीज करो या मरो की स्थिति में पहुंच गई है। जीतकर घर में मिली करारी हार को महज एक सीरीज की हार करार देने की चुनौती तो है ही, 4-0 की जीत के साथ विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में खेलने का लक्ष्य भी पाना है। और दोनों ही बातें असंभव न सही, बेहद मुश्किल जरूर हैं। क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है। यह हम सब हमेशा से जानते हैं। एक बार फिर यही सामने है। कोलकाता नाइटराइडर्स की आईपीएल जीत के बाद हीरो बनकर सामने आए टीम इंडिया के नए कोच गौतम गंभीर न्यूजीलैंड के खिलाफ बेहद खराब परिणाम के बाद सवालों के घेरे में हैं। वह पहले भी कई बार विवादों में रहे हैं, लेकिन इस बार विवाद नहीं है, बतौर कोच काबिलियत सवालों के घेरे में है। दक्षिण भारत के किसी टीवी शो में बहस के दौरान एक अतिथि ने तो यहां तक कहा कि कोलकाता नाइटाराइडर्स की जीत में टीम के कोच की अहम भूमिका थी, लेकिन सारा क्रेडिट मेंटर गंभीर को मिल गया। खैर, यह किसी की निजी राय हो सकती है।

गंभीर एक बेहतरीन और अच्छे बल्लेबाज रहे हैं। आक्रामक स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। एक सीरीज की हार से किसी की कोच के तौर पर काबिलियत न तो तय की जा सकती है और न ही तय की जानी चाहिए, लेकिन जैसा कि इस लेख की शुरुआत में कहा गया है कि भारत में क्रिकेट को धर्म की तरह माना जाता है सो यहां हार-जीत का भी उतना ही महत्व है, वजन है। जीते तो पब्लिक सिर से उठा लेगी, हारे तो जमीन पर पटक देगी। आपको जीत के लिए ही खेलना है और हर टीम खेलती भी इसीलिए है। टूर्नामेंटों में फेयरप्ले अवार्ड भी होते हैं, मिलते हैं, लेकिन फिर भी वहां कमजोर से कमजोर टीम जीतने के लिए ही खेलती है। गंभीर के लिए जीत की यह अपेक्षा ही फिलहाल भारी है और आस्ट्रेलिया का दौरा उनकी कोचिंग के लिए भी लिटमस टेस्ट की तरह होगा। यदि वहां टीम इंडिया ने टर्नएराउंड किया, वाका और गाबा पर भी आस्ट्रेलिया को पटक दिया तो यही गंभीर सबसे बड़े हीरो होंगे…और यदि टीम वहां भी हारी तो सबसे बड़े खलनायक।

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भारत में क्रिकेट नेक्स्ट लेवल पर है। हम इतने संसाधन और प्रतिभा संपन्न देश हैं कि एक साथ तीन विश्वस्तरीय टीमों को मैदान में उतार सकते हैं। रिजर्व बेंच खूब मजबूत है। जब इतना सब है तो आस्ट्रेलिया में जीत की उम्मीद भी खूब रहेगी। विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (World Test Championship) को लेकर भी फैंस की उम्मीदें जवां होंगी। रोहित शर्मा (Rohit Sharma) के लिए भी यह बड़ी परीक्षा की तरह होगा। वह पहले टेस्ट से पहले ही टीम के साथ आस्ट्रेलिया जा सकते हैं। उनका वहां रहना बहुत जरूरी है। उनकी कप्तानी स्टाइल की प्रशंसा भी होती है और आलोचना भी लेकिन वह एक प्रभावी और प्रेरक लीडर हैं, इसमें शक कम ही है।

विराट कोहली (Virat Kohli) भी आस्ट्रेलिया दौरे पर फैंस की उम्मीदों के दायरे में होंगे। लंबा समय हो गया है कि इस खिलाड़ी को अपनी महानता के साथ मैदान में न्याय किए हुए। आस्ट्रेलिया सही मंच हो सकता है। वह वहां पहले भी अपने क्रिकेटिंग स्किल्स का खूबसूरती से प्रदर्शन कर चुके हैं। आस्ट्रेलिया में दौरे की शुरुआत पर्थ से होगी…सबसे तेज पिच वाले पर्थ से। जाहिर है कि स्पिन खेलने के माहिर और विदेशी कंडीशन में तेज पिचों पर उतने सहज नहीं माने जाने वाले भारतीय बल्लेबाजों पर यह एक तरह का मनोवैज्ञानिक दबाव होगा और पूरी टीम इंडिया पर भी। पर्थ हारे तो बाकी के टेस्ट मैचों में टीम अतिरिक्त दबाव के साथ ही उतरेगी। हां, एक पहलू यह भी है कि अगर पर्थ जीत लिया तो बाकी की राह काफी आसान हो जाएगी क्योंकि आत्मविश्वास हासिल हो चुका होगा। सही टीम कांबिनेशन, मनोबल और जूझने की क्षमता ही बताएगी कि न्यूजीलैंड से हार की कीमत भारत अब आस्ट्रेलिया से वसूलेगा या फिर वही ढाक के तीन पात…

अरुण श्रीवास्तव पिछले करीब 34 वर्ष से हिंदी पत्रकारिता की मुख्य धारा में सक्रिय हैं। लगभग 20 वर्ष तक देश के नंबर वन हिंदी समाचार पत्र दैनिक जागरण में फीचर संपादक के पद पर कार्य करने का अनुभव। इस दौरान जागरण के फीचर को जीवंत (Live) बनाने में प्रमुख योगदान दिया। दैनिक जागरण में करीब 15 वर्ष तक अनवरत करियर काउंसलर का कॉलम प्रकाशित। इसके तहत 30,000 से अधिक युवाओं को मार्गदर्शन। दैनिक जागरण से पहले सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल (हिंदी), चाणक्य सिविल सर्विसेज टुडे और कॉम्पिटिशन सक्सेस रिव्यू के संपादक रहे। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, करियर, मोटिवेशनल विषयों पर लेखन में रुचि। 1000 से अधिक आलेख प्रकाशित।
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