स्वामी विवेकानंद जयंती 2025: National Youth Day के रूप में मनाई जाती है युवाओं को प्रेरित करने वाले स्वामी जी की जयंती

स्वामी विवेकानंद जयंती 2025: National Youth Day के रूप में मनाई जाती है युवाओं को प्रेरित करने वाले स्वामी जी की जयंती

Authored By: स्मिता

Published On: Tuesday, January 7, 2025

Last Updated On: Thursday, January 9, 2025

Swami Vivekananda Jayanti: Swami Vivekananda ka ahwan, rashtrprem ko dharm se zyada mahatva dene ka.
Swami Vivekananda Jayanti: Swami Vivekananda ka ahwan, rashtrprem ko dharm se zyada mahatva dene ka.

स्वामी विवेकानंद जयंती (Swami Vivekananda Jayanti) हर वर्ष 12 जनवरी को मनाई जाती है। स्वामी जी अपने प्रवचनों के माध्यम से सबसे अधिक युवाओं को जगाने का काम करते थे। उनकी राय में देश का उज्जवल भविष्य युवाओं के हाथों में होता है। इसलिए स्वामी जी की जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) के रूप में मनाई जाती है।

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Thursday, January 9, 2025

दुनिया जिन्हें स्वामी विवेकानंद के नाम से जानती है, उनके परिवार जन उन्हें नरेंद्रनाथ, वीरेश्वर और नरेन कहा करते थे। स्वामी विवेकानंद का जन्म (Swami Vivekananda Jayanti) 12 जनवरी 1863 (बंगाली पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन) को हुआ था। स्वामी जी न सिर्फ हिंदुत्व के अध्येता, बल्कि राष्ट्र प्रेम के प्रति अलख जगाने वाले भी थे। उनका मानना था कि बिना शारीरिक मजबूती के देश सेवा करना संभव नहीं है। इसलिए अध्ययन के साथ-साथ खेल-कूद भी जरूरी है। यदि हम गौर करें, तो पाएंगे कि उनका संपूर्ण जीवन और कार्य असाधारण थे। नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद होने की संभावना उनके शुरुआती जीवन में ही दिखने लगे थे। स्वामी जी की जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) के रूप में मनाई जाती है।

राष्ट्रीय युवा दिवस का इतिहास

12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती (Swami Vivekananda Jayanti) के रूप में राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) मनाया जाता है। भारत सरकार ने 1984 में इस दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में घोषित किया और 1985 से इसे पूरे देश में मनाया जा रहा है। स्वामी विवेकानंद एक महान दार्शनिक, आध्यात्मिक गुरु और प्रेरक व्यक्तित्व थे, जिन्होंने भारतीय युवाओं को एक नई दिशा दी। उनका मानना था कि युवा देश की वास्तविक शक्ति हैं। वे कहते थे कि युवाओं में सामाजिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक क्रांति लाने की अद्भुत क्षमता है। आज भी उनके विचार और शिक्षाएं युवा पीढ़ी को प्रेरित कर रही हैं। वे हमेशा कहते थे कि शक्ति, साहस और आत्मविश्वास युवाओं की सबसे बड़ी पूंजी है।

मानवता है सच्ची ईश्वर पूजा (Importance of Humanity) 

स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के यशस्वी शिष्य थे। रामकृष्ण ने अपने शिष्यों के सामने ईश्वर की व्याख्या बहुत सरल की थी। उन्होंने स्वामी जी से कहा था, ‘मैंने ईश्वर को ऐसे साक्षात देखा है, जैसा कि तुम्हें देख रहा हूं।’ इस वाक्य का प्रभाव शिष्य विवेकानंद पर इतना पड़ा कि उन्होंने मानवता के कार्यों को ही अपनी पूजा-प्रार्थना बना लिया। उन्होंने स्वयं को राष्ट्रचेतना के प्रचारक के रूप में ढाल लिया।

शारीरिक और मानसिक बल का दृढ़ रहना जरूरी (Physical and Mental Health) 

स्वामी विवेकानंद संन्यासी के भेष में रहने के बावजूद उनका दृष्टिकोण सबसे अलग था। वे कहते थे कि हम बहुत सी बातें तोते की तरह बोलते हैं, पर कभी करते नहीं। बोलना और न करना हमारी आदत बन गई है। इसका कारण क्या है ? शारीरिक दुर्बलता, सबसे पहले हमारे युवकों को बलवान होना चाहिए। धर्म उसके बाद आएगा। इसी प्रसंग में एक बार जब एक युवक ने उनसे गीता पढाने का अनुरोध किया, तब स्वामी जी ने कहा था कि जाओ पहले छह माह रोज फुटबॉल खेलो। उन्होंने स्पष्ट किया था कि युवाओं के लिए आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक बल का दृढ़ रहना भी जरूरी है।

स्वयं को दें मजबूती (Self Strength) 

वे युवाओं में देश प्रेम जगाना चाहते थे। इसलिए वे धार्मिक विचारों के अलावा राष्ट्रहित की बातें सबसे अधिक करते थे। उन्होंने कहा था, ‘मैं युवाओं से प्रेम करता हूं। मैं जानता हूं कि जूता कहां चुभता है। मैंने थोड़ा अनुभव प्राप्त कर लिया है। अपनी मांसपेशियों और बाइसेप्स को थोड़ा मजबूत करके तुम गीता को बेहतर समझ पाओगे। अपने अंदर थोड़ा मजबूत खून होने पर तुम कृष्ण की महान प्रतिभा और महान शक्ति को बेहतर तरीके से समझ पाओगे।’

प्रकृति को जानने की खोज

प्रकृति को जानने की खोज मनुष्य में अंतर्निहित है। मानव इतिहास के आरंभ से ही मानव मन की इस आग्रहपूर्ण जिज्ञासु प्रकृति ने मानवता को इस स्थिति में पहुंचाया है जहां वह आज है। फिर भी, यह रुकती नहीं है, खोज जारी है और यह तब तक जारी रहेगी जब तक मानवता अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं जान लेती। स्वामी विवेकानंद ने कहा कि दुनिया के सभी धर्म सार्वभौमिक और अडिग आधार पर निर्मित हुए हैं, यानी प्रत्यक्ष अनुभव। सभी शिक्षकों ने ईश्वर को देखा, सभी ने अपनी आत्मा को देखा, उन्होंने अपनी अनंतता भी देखी।” अब मुख्य प्रश्न यह है कि इस प्रत्यक्ष अनुभव को कैसे प्राप्त किया जाए? क्या एक साधारण व्यक्ति के लिए इस तरह का अनुभव होना संभव है?

अनुभव के लिए प्रयोग पहली शर्त

स्वामीजी ने कहा था, ‘यदि इस दुनिया में ज्ञान की किसी विशेष शाखा में एक अनुभव हुआ है, तो यह निश्चित रूप से निष्कर्ष निकलता है कि वह अनुभव पहले भी लाखों बार संभव हो चुका है। यह अनंत काल तक दोहराया भी जाएगा। एकरूपता प्रकृति का कठोर नियम है, जो एक बार हुआ वह हमेशा हो सकता है।’ स्वामी विवेकानंद ने अपनी पुस्तक “राज योग” में उल्लेख किया है कि “राज-योग का विज्ञान मानवता के सामने इस सत्य तक पहुंचने की एक व्यावहारिक और वैज्ञानिक रूप से काम की गई विधि प्रस्तुत करने का प्रस्ताव करता है। सबसे पहले, प्रत्येक विज्ञान के पास जांच की अपनी विधि होनी चाहिए। किसी भी अनुभव के लिए प्रयोग पहली शर्त है। प्रयोग करने की आदत ही युवाओं को आगे बढ़ा सकता है।

About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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