बिहार कोकिला शारदा सिन्हा: छठ पर्व के दौरान ली अंतिम सांस, अमर रहेंगे उनके गीत

बिहार कोकिला शारदा सिन्हा: छठ पर्व के दौरान ली अंतिम सांस, अमर रहेंगे उनके गीत

Authored By: अंशु सिंह (वरिष्ठ लेखिका और पत्रकार)

Published On: Wednesday, November 6, 2024

bihar nightingale sharda sinha

छठ के गीतों को अपने सुमधुर आवाज से सजाने वालीं, बिहार कोकिला शारदा सिन्हा ने 72 वर्ष की आयु में बेशक शरीर त्याग दिया है। लेकिन अपने गीतों के जरिये वे अब भी हमारे मध्य हैं। आस्था का महापर्व छठ चल रहा है और शारदा सिन्हा के गीत बिहार, झारखंड, पूर्वांचल जैसे तमाम राज्यों में गूंज रहे हैं। क्योंकि कहते हैं कि उनके बगैर छठी मईया के गीत पूरे नहीं होते। जिस प्रकार उन्होंने छठ के दौरान अपना देह त्यागा है, वैसे में बेटे अंशुमान को भी लगता है कि छठी मईया ने मां शारदा सिन्हा को अपनी गोद में ले लिया है...।

हाइलाइट्स

  • वर्ष 1991 में पद्मश्री एवं 2018 में पद्मभूषण से किया गया सम्मानित।
  • एक अक्टूबर1952 को बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में जन्म।
  • 5 नवंबर को दिल्ली के एम्स में हुआ निधन।
  • आठ भाइयों में इकलौती बहन थीं।
  • बेगूसराय के सिंहमा गांव में था ससुराल।
  • बचपन में ही हुआ लोकगीतों से प्रेम।
  • समस्तीपुर महिला कॉलेज में कुछ समय रहीं संगीत की प्रोफेसर एवं एचओडी।

पद्मश्री एवं पद्मभूषण जैसे सम्मानों से सुशोभित रहीं शारदा सिन्हा लोकगायिकी में अपना एक विशिष्ट स्थान रखती थीं। कहने के लिए उन्होंने मैथिली, भोजपुरी, मगही एवं हिन्दी में कई खूबसूरत गीतों को अपनी जादुई आवाज से संवारा-सजाया। लेकिन छठ के गीतों ने उन्हें एक अलग ही पहचान एवं प्रसिद्धि दिलायी। उन्होंने नहाय खाय से लेकर खरना एवं हर मौके के लिए गीतों को इतना कणप्रिय बनाया कि पीढ़ियों बाद भी उन्हें भुलाया नहीं जा सका है। छोटे बच्चे एवं नौजवान भी उनके गीतों को गुनगुनाने में गर्व महसूस करते हैं। शारदा सिन्हा द्वारा स्वरबद्ध किए गए छठ के अनेक गीत आज भी पर्व की रौनक बढ़ा देते हैं….। उनके करीबियों का कहना है कि उन्होंने अपने गीतों की शुरुआत भाई की शादी में गीत गाकर की थी। शादी में भाई से नेग मांगने को लेकर उन्होंने गीत गाया था- ‘चुकैओ, हे दुलरुआ भैया, तब जहिया कोहबर आपन…।‘ बाद में यह गीत घर-घर में गूंजने लगा था।

जाते-जाते स्वरबद्ध कर गईं छठ का नया गीत…

अपने जीवनकाल में छठ के छह दर्जन से अधिक गीतों को आवाज देने वालीं शारदा सिन्हा के कुछ गीत ऐसे हैं, जो बरसों से पर्व की शोभा बढ़ाते आ रहे हैं। जैसे, ‘हर केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके ऊंके, हो करेलु छठ बरतिया से झांके ऊंके, हम तोसे पूछी बरतिया ऐ बरतिया से केकरा लागी’……गीत हो या ‘हे छठी मईया, पटना के घाट पर हम हूं अरगिया देबई, हम ना जाईब दूसर घाट, देखब हे छठी मईया…’, कितनी ही पीढ़ियां इन्हें सुनते हुए बड़ी हुई हैं। हर वर्ष छठ के मौके पर वे कोई नया गीत अपने प्रशंसकों के लिए लेकर आती थीं। इस वर्ष वे एम्स में कैंसर से जंग लड़ रही थीं, तो बेटे अंशुमान ने उनके नए गीत का ऑडियो रिलीज किया। आदित्य देव द्वारा संगीतबद्ध एवं हृदय नारायण झा द्वारा रचित इस नए गीत के बोल हैं- ‘दुखवा मिटाईं छठी मैया, रउए असरा हमार….।‘ इन पंक्तियों की तरह शारदा सिन्हा को उम्मीद थी कि वे शीघ्र स्वस्थ होकर घर लौट सकेंगी। लेकिन नियति ने कुछ और लिख रखा था..।

उत्सव, अनुष्ठान एवं फिल्मों तक में गूंजी सुरीली आवाज

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वर्ष 1970 में गायिकी की शुरुआत करने वालीं शारदा सिन्हा के गीतों में बिहार से पलायन एवं महिलाओं के संघर्ष की कहानी बखूबी बयां होती थी। उनके गाए गीत जन्म के उत्सव, मृत्यु या शोक, पर्व-त्योहार एवं शादी-विवाह जैसे अवसरों पर नियम की तरह शामिल होते रहे हैं। उन्होंने ‘मैंने प्यार किया’, ‘हम आपके हैं कौन’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ आदि फिल्मों में भी गीत गाए हैं। आपको याद होगा फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ का वह बेहद भावुक कर देने वाला गीत- ‘बाबुल जो तुमने सिखाया, जो तुमसे पाया, साजन घर ले चले, साजन घर ले चले, यादों के लेकर साये चली घर पराये तुम्हारी लाडली, कैसे भूल पाऊंगी मैं बाबा, सुनी जो तुमसे कहानियां, छोड़ चली आंगन में मईया, बचपन की निशानियां…।‘ इस गीत में प्राण फूंकने वाली सुरीली आवाज थी स्वयं शारदा सिन्हा की, जो खुद भी अपने पिता से बेहद करीब थीं। एक बार किसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि कैसे पिता सुखदेव ठाकुर उन्हें अपने मन का करने की पूरी छूट देते थे। बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में अधिकारी रहे, उनके पिता हमेशा कहते थे कि जो जी में आए करो। जो पसंद है, वह करो। क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी की पसंद को भांप लिया था।

गांव में पहली बार सुना था लोकगीत, हो गया प्यार

वर्ष 1953 में बिहार के सुपौल के हुलास गांव में जन्म लेने वालीं शारदा सिन्हा के परिवार में गायकी की कोई पृष्ठभूमि नहीं थी। वे छुट्टियों में जब गांव जाती थीं, तो वहां लोक गीत सुनने का मौका मिलता था। धीरे-धीरे उसमें रुचि पैदा होने लगी। छठी कक्षा में पहुंचते-पहुंचते उन्होंने संगीत का बकायदा प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। बकौल शारदा सिन्हा, उन्होंने सबसे पहले पंडित रघु झा से संगीत सीखा, जो पंच गछिया घराने के जाने-माने संगीतकार थे। उनके दूसरे गुरु रामचंद्र झा थे, जो उसी घराने से ताल्लुक रखते थे। इस तरह, शारदा सिन्हा ने सुगम संगीत की हर विधा में गायन शुरू किया। उसमें गीत, भजन, गजल सब शामिल थे। लोकगीत गाना उन्हें थोड़ा चुनौतीपूर्ण लगता था। लेकिन फिर उसमें वे विभिन्न प्रयोग करने लगीं। गीत-संगीत की इस यात्रा में कुछ समय के लिए विराम लगा, जब उनकी शादी हुई और ससुराल में गायन को लेकर विरोध होने लगा। उन्हें स्वीकार नहीं था कि किसी संभ्रांत परिवार की महिला स्टेज पर गाना गाए। लेकिन पति एवं सास ने उनका पूरा समर्थन किया और वे ठेठ गंवई शैली के गीतों को गाने लगीं।

बिहार के लगुनियां गांव में रिकॉर्ड किए छठ के गीत

शारदा सिन्हा बेशक बिहार के सुपौल जिले में पैदा हुईं। लेकिन उनका ज्यादातर समय समस्तीपुर के लगुनियां गांव में बीता। यहीं रहकर उन्होंने संगीत का रियाज किया। यहां तक कि छठी मईया के गीतों को भी रिकॉर्ड करने का फैसला यहीं से लिया। वे प्रसिद्ध तबला वादक सरयू राय के साथ घंटों रियाज करती थीं। उन्होंने यहां महिलाओं की एक मंडली भी बनाई थी, जिनके साथ उनकी महफिल जमती थी। शारदा सिन्हा के पहले छठ गीत- उग, उग हे सुरुज देव को रिकॉर्ड करने का आइडिया भी लगुनियां गांव में रियाज के दौरान ही आया था। यह गीत वर्ष1978 में रिकॉर्ड किया गया था। यह गीत श्रद्धालुओं के दिलों में कुछ इस तरह उतरा कि चार दशक बाद भी उतना ही लोकप्रिय है। वैसे, इस पहले गीत के हिट होने के पश्चात् उन्होंने एक के बाद एक कई गाने दिए, जो सभी हिट हुए। जैसे, ‘रुनकी झुनकी बेटी मांगीला’, ‘डोमिनी बेटी सुप लेले ठार छे’, ‘अंगना में पोखरी खनाइब, छठी मईया आइथिन आज’, ‘मोरा भैया गैला मुंगेर, श्यामा खेले गैला हैली ओ भैया’, ‘हो दीनानाथ’, ‘सोना साठ कुनिया हो दीनानाथ’ जैसे गीत काफी लोकप्रिय हुए। शारदा सिन्हा ने बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि लोगों को उनकी आवाज इसलिए भाती है, क्योंकि वे जो भी गाना गाती हैं, उसमें पूरी तरह से डूब जाती हैं। इसके अलावा, शास्त्रीय संगीत सीखने से उनके गायन में एक तरह का ठहराव है, जो सबको अच्छा लगता है।

गीत-संगीत में बनाई रखी अपनी गरिमा

करीब चार दशक से शारदा सिन्हा के गाए लोकगीत पूर्वांचल, बिहार एवं पड़ोसी राज्यों में छठ पर्व की सांस्कृतिक पहचान बन चुके हैं। उनकी समकालीन कई लोकगायिका हुईं, लेकिन शारदा सिन्हा की आवाज का जादू अलग, अलौकिक था। उन्होंने सदैव अपनी गरिमा बनाए रखी। खुद को अनुशासित एवं नियंत्रित रखा। भोजपुरी गीतों में आए हल्केपन एवं फूहड़पन के बीच भी उनके गाए गीतों में जीवन मूल्यों एवं सामाजिक परंपराओं की सुगंध होती थी। वे लोकगीतों का संग्रह करने के लिए काफी मेहनत करती थीं। जहां कहीं से अच्छे गीत मिलते थे, वे उन्हें इकट्ठा करती थीं। गांवों में वर्षों से गाए जा गीतों को उन्होंने शास्त्रीय आधार दिया। उन्हें राग एवं सुर दिए, जिससे वे गीत सर्वप्रिय बन गए। बीएचयू में अध्यापक एवं लेखक रमाज्ञ शशिधर अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखते हैं, ‘खामोशी घर आंगन को सूना कर जाती है। लोक कोकिला शारदा सिन्हा का जाना हमारे घर-आंगन के लिए उदासी एवं विरह का बहुत बड़ा खालीपन छोड़ जाना है। मैथिली, भोजपुरी में राग, लय एवं शब्द को शहद की तरह घोलने वाली शारदा दीदी के गीत एवं सूर्य उपासना एक-दूसरे के पर्याय हो गए थे। आज वह चुपके से चली गईं, लेकिन विज्ञान की कोख से पैदा हुए छठ पर्व में उनका जनराग प्रकृति एवं संस्कृति के बीच फिर फैलेगा।‘

पिछले बीस वर्षों से दैनिक जागरण सहित विभिन्न राष्ट्रीय समाचार माध्यमों से नियमित और सक्रिय जुड़ाव व प्रेरक लेखन।

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