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Chaudhary Brahm Prakash: कौन है दिल्ली का पहला CM ? मॉडल और मिस इंडिया से क्या है कनेक्शन ? जानने के लिए पढ़ें यह रोचक स्टोरी
Chaudhary Brahm Prakash: कौन है दिल्ली का पहला CM ? मॉडल और मिस इंडिया से क्या है कनेक्शन ? जानने के लिए पढ़ें यह रोचक स्टोरी
Authored By: JP Yadav
Published On: Friday, January 10, 2025
Updated On: Friday, January 10, 2025
Chaudhary Brahm Prakash Yadav: अगर देश की राजधानी के लोगों से पूछा जाए कि दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री का नाम क्या है? तो अधिकतर लोग इसके जवाब में मदनलाल खुराना का नाम लेंगे. हो सकता है कुछ लोग शीला दीक्षित का भी नाम लें, क्योंकि ज्यादातर लोग तो दिल्ली के पहले सीएम के नाम से ही अनजान हैं.
Authored By: JP Yadav
Updated On: Friday, January 10, 2025
Introduction
Chaudhary Brahm Prakash Yadav: अगर देश की राजधानी के लोगों से पूछा जाए कि दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री का नाम क्या है ? तो अधिकतर लोग इसके जवाब में मदनलाल खुराना का नाम लेंगे. हो सकता है कुछ लोग शीला दीक्षित का भी नाम लें, क्योंकि ज्यादातर लोग तो दिल्ली के पहले सीएम के नाम से ही अनजान हैं. अधिकतर लोग तो यही जानते हैं कि दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव 1993 में हुआ है, लेकिन ऐसा नहीं है. देश की आजादी के बाद दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव 1952 में हुए थे. दरअसल, दिल्ली भारतीय संघ का पार्ट-सी स्टेट बना तो कांग्रेस ने जीत हासिल की. इसके बाद चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने दिल्ली के पहले मुख्ममंत्री के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाई थी. आजादी के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले और फिर जेल तक जाने वाले चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव ने अपना कार्यकाल तो पूरा नहीं किया, लेकिन इस दौरान उन्होंने कई ऐसे काम किए, जिसकी वजह से आज भी उनका नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है. वर्ष 2001 में उनकी याद में भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया था. इसके अलावा, उनके नाम पर दिल्ली में कई संस्थान हैं. उनके पोती का नाम एकता चौधरी है, जिन्होंने 2029 में आयोजित मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया था.
इस लेख में:
- इत्तेफाक से दिल्ली के पहले सीएम बने थे चौधरी ब्रह्म प्रकाश
- सिर्फ 34 साल में बने दिल्ली के सीएम
- सीएम बनाने में पंडित नेहरू का था रोल
- अपना घर तक नहीं बना पाए दिल्ली में
- शेर-ए-दिल्ली के नाम से थे मशहूर
- उनकी शागिर्दी में कई ने सीखें नेता बनने के गुर
- विदेश में जन्म हुआ दिल्ली में की पढ़ाई
- सज्जन कुमार से मिली थी हार
- बेटे गुमनाम तो पोती ने कमाया दुनिया भर में नाम
इत्तेफाक से दिल्ली के पहले सीएम बने थे चौधरी ब्रह्म प्रकाश
1952 में दिल्ली में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 48 में से 39 सीटें जीती थीं. चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने नांगलोई सीट से जीत हासिल की थी. वह सामान्य विधायक की तरह जीत कर विधानसभा पहुंचे थे. मुख्यमंत्री के रूप में कांग्रेस के दिग्गज नेता लाला देशबंधु गुप्ता का नाम सबसे आगे चल रहा था. इसके बाद डॉ. सुशीला नायर का नाम लिया जा रहा था. दोनों ही मुख्यमंत्री पद के लिए प्रमुख दावेदार थे. इस बीच शपथ ग्रहण से कुछ रोज पहले ही लाला देशबंधु का निधन हो गया. कांग्रेस आलाकमान ने सारे दिग्गजों के नामों को दरकिनार करते हुए नांगलोई विधानसभा सीट से जीते चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव को सीएम बना दिया. इससे पहले ब्रह्म प्रकाश कांग्रेस विधायक दल के नए नेता चुने गए. विधायक दल की भी बैठक में भी किसी विधायक ने ब्रह्म प्रकाश के नाम पर विरोध नहीं किया. आजादी के आंदोलनों में भाग लेने के कारण 6 मई, 1943 को उन्हें 2 वर्ष जेल की सजा मिली. वह कई महीनों तक जेल में रहे. जेल से बाहर निकले तो उन पर कई प्रतिबंध लगा दिए गए, लेकिन उन्होंने मानने से इन्कार कर दिया था. इसके बाद अंग्रेजी शासन में उनकी दोबारा गिरफ्तारी हो गई.
सिर्फ 34 साल में बने दिल्ली के सीएम
चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव सिर्फ 34 साल की उम्र में दिल्ली के सीएम चुने गए. दिल्ली का सबसे युवा सीएम बनने का रिकॉर्ड आज भी उन्हीं के नाम है. सिर्फ 34 साल की उम्र में दिल्ली की कमान संभालने वाले चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया. वह उस दौर के लोकप्रिय नेताओं में शुमार थे. कांग्रेस आलाकमान भी उनकी सांगठनिक और प्रशासनिक कौशल का लोहा मानता था. वह 17 मार्च, 1952 से 12 फरवरी, 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने महात्मा गांंधी के करीब-करीब सभी आंदोलनों में हिस्सा लिया. देश की आजादी का जुनून उनके सिर पर इस कदर सवार था कि वह जेल जाने से भी नहीं कतराए. उन्होंने जेल में भी बंद कर दिया गया, लेकिन उनके दिल में आजादी की लौ तब तक जलती रही जब तक देश स्वतंत्र नहीं हो गया. देश के लिए कुछ करने का जुनून था, इसलिए जनप्रतिनिधि बनकर देश सेवा का जज्बा जगा तो उन्होंने नांगलोई सीट से चुनाव लड़ा और जीत भी गए. इसके बाद उन्होंने दिल्ली का सबसे युवा सीएम बनकर इतिहास रच दिया.
सीएम बनाने में पंडित नेहरू का था रोल
कहा जाता है कि आजादी के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के चलते चौधरी ब्रह्म प्रकाश को पंडित जवाहर नेहरू और महात्मा गांधी भी जानते थे. युवा और जोशीले स्वभाव के ब्रह्म प्रकाश पर कांग्रेस आलाकमान की भी नजर पड़ी. यह भी कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमिका भी ब्रह्म प्रकाश को मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलवाने में थी. यह भी कहा जाता है कि बाद में नेहरू से कुछ मुद्दों पर मतभेद के चलते उन्हें सीएम के पद से हटा दिया. जानकारों की मानें तो पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं होने से सीएम को काम करने में दिक्कत आ रही थीं. वह अधिक स्वायत्तता चाहते थे.
इसके लिए तत्कालीन पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात कर अपना पक्ष रखा था, लेकिन सहमति नहीं बन पाई. इसके चलते मतभेद गहरा गए और आखिरकार चौधरी ब्रह्म प्रकाश को सीएम के पद से हटा दिया गया. यह भी दावा किया जाता है कि उस दौर में महात्मा गांधी के अलावा जवाहर लाल नेहरू और सीके नायर को वह खास तौर पर पसंद करते थे. यह भी कहा जाता है कि ब्रह्म प्रकाश और पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ कुछ मुद्दों को लेकर अनबन थी. इस बीच वर्ष 1955 में गुड़ घोटाले ने दिल्ली की राजनीति में हलचल मचाई. इसके बाद नैतिक दबाव के चलते ब्रह्म प्रकाश ने 12 फरवरी 1955 को इस्तीफा दे दिया. इसके अगले रोज 13 फरवरी, 1955 को गुरुमुख निहाल सिंह को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई.
अपना घर तक नहीं बना पाए दिल्ली में
ब्रह्म प्रकाश सादगी पसंद नेता था. उन्होंने हमेशा आम जनता की परेशानियों को प्राथमिकता दी. वह आम जनता के बीच रहते और यहां तक कि वह आम यात्रियों की तरह बसों में सफर करते थे. कभी-कभार तो वह बस में सफर करने के दौरान ही लोगों की समस्याएं सुनते और जरूरत पड़ने पर कार्रवाई भी करते थे. बताते हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री का पद भी नहीं बदला पाया और वह स्वभाव से शालीन ही रहे. सड़कों पर चलने के दौरान लोगों से हालचाल ले लिया करते थे. कई बार तो वह सड़क किनारे किसी से बात करके चले जाते और बाद में उस शख्स को पता चलता कि उससे मुलाकात करते वाले दिल्ली के सीएम चौधरी ब्रह्म प्रकाश थे. कुल मिलाकर वह बन तो गए थे दिल्ली के सीएम, लेकिन आचरण और व्यवहार बेहद सादगी भरा था. यह जानकर हैरत होगी कि उन्होंने दिल्ली में अपना घर तक नहीं बनाया. अपने आचरण, व्यवहार और काम के जरिये जनता में लोकप्रिय चौधरी ब्रह्म प्रकाश सीएम पद से हटने के बाद भी 4 बार दिल्ली की अलग-अलग सीट से सांसद रहे.
शेर-ए-दिल्ली के नाम से थे मशहूर
समाज सेवा करने के साथ वह पढ़ने-लिखने के भी शौकीन थे. कहा जाता है कि जब भी वह कनॉट प्लेस आते तो एक-दो किताबें जरूर खरीदते थे. अगर उनके साथ कोई दोस्त या करीबी नहीं होता तो वे इंडिया इंटरनेशनल के पुस्तकालय में चले जाते. वहां पर लगातार अध्ययन करते. वह अपनी बात तर्क के साथ ठोस ढंग से रखते थे, इसलिए उन्हें शेर-ए-दिल्ली भी कहा जाता था. जाति से वह अहीर (यादव) थे, लेकिन उन्हें सरनेम लिखना पसंद नहीं था. यही वजह है कि वह अपना नाम चौधरी ब्रह्म प्रकाश लिखते थे. दिल्ली-एनसीआर में नाम के पहले चौधरी जाट और गुर्जर समुदाय के लोग भी लिखते हैं, लेकिन वह यादव थे. बावजूद इसके वह अपनी जाति यादव को कभी अपने नाम के साथ नहीं जोड़ते थे. दरअसल उन्हें यह सब पसंद नहीं था. वह अक्सर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आकर बैठते और जो मिलना चाहता तो मिलते भी थे. इसमें कोई दो राय नहीं कि दिल्ली की राजनीति में उन्हें बहुत सम्मान मिला. उस दौर के नेता चौधरी ब्रह्म प्रकाश का बहुत सम्मान करते थे.
उनकी शागिर्दी में कई ने सीखे नेता बनने के गुर
चौधरी ब्रह्म प्रकाश को बहुत सम्मान हासिल था. उस दौर के सभी दिग्गज और युवा नेताओं का उनके घर आना-जाना था. चार बार सांसद रहने के दौरान उनकी पकड़ भी दिल्ली की राजनीति में खूब थी. ब्रज मोहन, सज्जन कुमार और राम बाबू शर्मा के अलावा एचके एल भगत, जगदीश टाइटलर समेत कई नेताओं ने उनसे राजनीति सीखी और कांग्रेस में शिखर पर पहुंचे. कहा जाता है कि दिल्ली कांग्रेस में राजनेता उन्हें पिता तुल्य मानते थे और उसी तरह का सम्मान भी देते थे. बावजूद इसके उनका एक दौर में कांग्रेस से नाता टूट गया. मतभेदों के चलते वह 1980 के दशक में लोकदल पार्टी में शामिल हो गए. इसके बाद केंद्र में चौधरी चरण सिंह की सरकार बनी तो उन्होंने बतौर केंद्रीय खाद्य, कृषि, सिंचाई और सहकारिता मंत्री अपनी जिम्मेदारी निभाई. इमरजेंसी के बाद 1977 में उन्होंने जनता पार्टी दामन थाम लिया. इसके बाद 1979 में जब जनता दल टूटा तो वह चौधरी चरण सिंह के साथ आ गए.
विदेश में जन्म हुआ दिल्ली में की पढ़ाई
16 जून, 1918 को केन्या में जन्में चौधरी ब्रह्म प्रकाश सिर्फ 13 साल के थे जब उनके माता-पिता दिल्ली आ गए. मूलरूप से परिवार हरियाणा के रेवाड़ी जिले का रहने वाला था. कुछ साल बाद परिवार हरियाणा छोड़कर दिल्ली के शकूरपुर गांव के रहने आ गया. मिली जानकारी के मुताबिक, पिता का नाम चौधरी भगवान दास था. उन्होंने दिल्ली से पढ़ाई-लिखाई की थी. इसके बाद महात्मा गांधी से प्रभावित हुए तो आजादी के आंदोलन में कूद पड़े. यह भी अजब संयोग है कि 11 अगस्त, 1993 को 75 वर्ष की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा जबकि इसी साल दिल्ली को अपनी पहली ‘पूर्ण विधानसभा’ भी मिली थी.
सज्जन कुमार से मिली थी हार
शांत और शालीन स्वभाव वाले चौधरी ब्रह्म प्रकाश कुछ मामलों में बहुत जिद्दी भी थे. यही वजह है कि उन्हें सीएम का पद तक गंवाना पड़ा, क्योंकि दिल्ली के विकास के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार से कुछ अधिकार मांग रहे थे. सही मायनों में उन्होंने ही दिल्ली के विकास की नींव रखी थी. केन्या में रहने दौरान उन्होंने उस शहर को बारीकी से देखा और समझा था. दरअसल वह नैरोबी की तर्ज पर दिल्ली शहर का विकास करना चाहते थे, लेकिन राजनीतिक मतभेदों के चलते वह ऐसा नहीं कर पाए. अपने कार्यों की वजह से चौधरी ब्रह्म प्रकाश को शेर-ए-दिल्ली, मुगल-ए-आजम जैसे उपनाम भी मिले. वैसे मदन लाल खुराना को भी दिल्ली का शेर कहा जाता था, लेकिन दिल्ली की राजनीति में ब्रह्म प्रकाश का अलग ही रुतबा था. यह अलग बात है कि 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे सज्जन कुमार से चुनाव हार गए थे. चौधरी ब्रह्म प्रकाश के नाम पर दक्षिणी पश्चिम दिल्ली में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज है. वहीं, चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेद चरक संस्थान भी है.
बेटे गुमनाम तो पोती ने कमाया दुनिया भर में नाम
चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने बहुत प्रसिद्धि पाई, लेकिन बेटे राजनीति में कुछ खास नहीं कर सकें. वहीं, उनकी पोती एकता चौधरी यादव मॉडल हैं और कई सौंदर्य प्रतियोगिता जीती है. उन्होंने फेमिना मिस इंडिया यूनिवर्स 2009 का खिताब जीता है. इसके बाद एकता ने मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया था लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.