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अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने खींची ट्रंप की लगाम, नेशनल गार्ड तैनाती पर लगाया रोक
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Published On: Wednesday, December 24, 2025
Last Updated On: Wednesday, December 24, 2025
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप को शिकागो और इलिनोइस में नेशनल गार्ड तैनात करने से रोक दिया है. कोर्ट का यह फैसला ट्रंप प्रशासन की उस रणनीति पर सवाल खड़ा करता है, जिसमें वह विरोध प्रदर्शनों और इमिग्रेशन मुद्दों से निपटने के लिए सैन्य बलों के इस्तेमाल पर जोर देता रहा है. यह फैसला राज्यों के अधिकारों और राष्ट्रपति की शक्तियों की सीमाओं के लिए एक अहम मिसाल माना जा रहा है.
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Last Updated On: Wednesday, December 24, 2025
Trump National Guard: अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 23 दिसंबर को अपने एक फैसले में डोनाल्ड ट्रंप को शिकागो इलाके में नेशनल गार्ड तैनात करने से रोक दिया है. इसके पीछे कारण बताया गया है कि रिपब्लिकन प्रेसिडेंट, डेमोक्रेटिक नेतृत्व वाले इलाकों में अपने राजनीतिक मकसदों के लिए सेना का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैं. इसे पॉलिसी के दृष्टिकोण से भी उचित नहीं माना गया.
जजों ने ट्रंप के इस कदम को सरकारी नीतियों की आलोचना करने वालों से दुश्मनों सा व्यवहार करने और असहमति को दबाने की कोशिश बताया है. जबकि अमेरिकी न्याय विभाग ने केस चलने तक तैनाती की इजाज़त देने की मांग की थी.
ट्रंप के खिलाफ जज
जजों ने बहुमत से इलिनोइस में नेशनल गार्ड सैनिकों को कानून लागू करने के लिए तैनात करने के ट्रंप प्रशासन के कदम को रोक दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि ट्रंप प्रशासन यह साबित नहीं कर पाई कि राष्ट्रपति के पास ऐसा करने का स्पष्ट कानूनी अधिकार है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि किसी राज्य की नेशनल गार्ड पर फेडरल कंट्रोल लेने का राष्ट्रपति का अधिकार केवल ‘असाधारण परिस्थितियों’ में ही लागू हो सकता है. फिलहाल इलिनोइस में हालात ऐसे नहीं हैं.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के तीन कंज़र्वेटिव जज, जस्टिस सैमुअल अलिटो, क्लेरेंस थॉमस और नील गोरसच इस फैसले से असहमत थे. जबकि 9 सदस्यीय जजों के बेंच में 6 न्यायायधीश फैसले के समर्थन में थे. इसलिए कोर्ट ने 6-3 के बहुमत से ट्रंप प्रशासन को राहत देने से इनकार कर दिया.
व्हाइट हाउस की प्रतिक्रिया
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एबिगेल जैक्सन ने फैसले के बाद बयान जारी कर कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिकी जनता से वादा किया है कि वह इमिग्रेशन कानूनों को सख्ती से लागू करेंगे. फेडरल कर्मचारियों को हिंसक दंगाइयों से बचाएंगे. उनके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ट्रंप के मुख्य एजेंडे को कमजोर नहीं करता.
इलिनोइस गवर्नर की प्रतिक्रिया
इलिनोइस के डेमोक्रेटिक गवर्नर जेबी प्रिट्ज़कर ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने फैसले पर खुशी जताते हुए इसे ट्रंप प्रशासन द्वारा सत्ता के लगातार गलत इस्तेमाल पर रोक लगाने की दिशा में ज़रूरी कदम बताया. उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ट्रंप के तानाशाही रवैये को रोकता है.
ट्रंप को सुप्रीम झटका
यह फैसला ट्रंप के लिए बड़ा झटका है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में कंज़र्वेटिव जजों का बहुमत है. उन्होंने हाल के महीनों में कई मामलों में ट्रंप के प्रेसिडेंशियल अधिकारों के दावों का समर्थन किया है. जनवरी में व्हाइट हाउस लौटने के बाद से सुप्रीम कोर्ट ने अधिकतर मामलों में ट्रंप प्रशासन का साथ दिया था. जबकि इस मामले में रोक लगना ट्रंप के लिए असामान्य और बड़ा झटका माना जा रहा है.
नेशनल गार्ड आमतौर पर राज्य-आधारित मिलिशिया फोर्स होती है. यह राज्य के गवर्नर के प्रति जवाबदेह होती है. केवल खास परिस्थितियों में ही राष्ट्रपति इसे फेडरल सर्विस में बुला सकते हैं. ट्रंप ने इससे पहले लॉस एंजिल्स, मेम्फिस और वॉशिंगटन डी.सी. में सैनिकों की तैनाती का आदेश दिया था. इसके बाद उन्होंने शिकागो और पोर्टलैंड जैसे डेमोक्रेटिक नेतृत्व वाले शहरों में भी सैनिक भेजने का फैसला किया.
- अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने शिकागो में ट्रंप की मिलिट्री तैनाती को खारिज किया.
- सुप्रीम कोर्ट ने डेमोक्रेटिक शासित राज्यों में ट्रंप के मिलिट्री इस्तेमाल को पावर का गलत इस्तेमाल बताया.
- जजों ने एडमिनिस्ट्रेशन के विरोध प्रदर्शनों को हिंसक दिखाने पर सवाल उठाया.
- इलिनोइस और शिकागो का कहना है कि विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण हैं.
इमिग्रेशन कानूनों के खिलाफ विरोध
यह मामला खास तौर पर शिकागो और उसके आसपास हुए उन विरोध प्रदर्शनों से जुड़ा है, जो ट्रंप के आक्रामक इमिग्रेशन कानूनों के खिलाफ हो रहे थे. ट्रंप और उनके सहयोगियों ने इन शहरों को कानूनविहीन, अपराध से ग्रस्त और हिंसक विरोध प्रदर्शनों से प्रभावित बताया. ट्रंप प्रशासन का कहना था कि इमिग्रेशन और कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) के डिटेंशन सेंटरों और फेडरल कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए सैनिकों की जरूरत है.
इसके उलट, डेमोक्रेटिक मेयरों, गवर्नरों और ट्रंप के आलोचकों ने इन दावों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया हुआ बताया. आलोचकों का कहना है कि सैनिकों की तैनाती सिर्फ सत्ता का गलत इस्तेमाल है. इससे हालात और बिगड़ सकते हैं.
निचली अदालतों से भी झटका
फेडरल जजों ने भी ट्रंप प्रशासन के आकलन पर संदेह जताया था. अदालतों के मुताबिक स्थानीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने इन विरोध प्रदर्शनों को सीमित, ज़्यादातर शांतिपूर्ण और स्थानीय पुलिस द्वारा संभाले जा सकने वाला बताया था. जजों ने कहा कि हालात ट्रंप प्रशासन द्वारा बताए गए ‘वॉर ज़ोन’ जैसे नहीं थे.
शिकागो में मौजूद यूएस डिस्ट्रिक्ट जज अप्रैल पेरी ने 9 अक्टूबर को नेशनल गार्ड की तैनाती पर अस्थायी रोक लगा दी थी. उन्होंने पाया कि ब्रॉडव्यू इलाके में इमिग्रेशन सेंटर के पास हुए प्रदर्शनों के दौरान हिंसा के दावे सही नहीं थे. जज पेरी ने साफ कहा कि न तो बगावत के कोई सबूत हैं और न ही यह दिखता है कि कानून लागू नहीं हो पा रहा था.
जिला जज ने यह भी कहा था कि नेशनल गार्ड की तैनाती ‘आग में घी डालने’ जैसा कदम होगा. बाद में 7वें यू.एस. सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स ने भी इस रोक को हटाने से इनकार कर दिया था. खास बात यह रही कि इस पैनल में रिपब्लिकन राष्ट्रपतियों द्वारा नियुक्त जज भी शामिल थे, जिनमें एक ट्रंप द्वारा नियुक्त जज भी थे.
नेशनल गार्ड को वापस बुलाया गया
इलिनोइस और शिकागो द्वारा दायर मुकदमे के बाद प्रशासन को सैकड़ों नेशनल गार्ड सैनिकों को वापस बुलाना पड़ा. इन्हें कैलिफोर्निया, टेक्सास और अन्य राज्यों से भेजा गया था. इसी तरह पोर्टलैंड में प्रस्तावित तैनाती पर भी एक अलग मामले में स्थायी रोक लगाई गई है, जिसके खिलाफ प्रशासन ने अपील की है.
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