Jivitputrika Vrat Katha: संतान के उत्तम स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए कथा सुनने की है मान्यता
Authored By: स्मिता
Published On: Thursday, September 11, 2025
Last Updated On: Thursday, September 11, 2025
Jivitputrika Vrat Katha: जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ नेपाल में भी रविवार को 14 सितंबर 2025 मनाया जा रहा है. मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका कथा सुनने से संतान को उत्तम स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु प्राप्त होती है.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Thursday, September 11, 2025
Jivitputrika Vrat Kath: जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है. यह निर्जला व्रत अपनी संतान के स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है. इस वर्ष यह तिथि 14 सितंबर 2025 को है. माना जाता है कि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने (Jivitputrika Vrat Katha) से संतान के जीवन की बाधा दूर होती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है.
जितिया व्रत की महत्ता (Jivitputrika Vrat Significance)
माताएं अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए जितिया व्रत रखती हैं. यह निर्जला व्रत गहन भक्ति और निस्वार्थता का प्रतीक है. यह त्योहार मां और बच्चे के बीच प्रेम के बंधन, त्याग और उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना के लिए करती हैं. यह पारिवारिक एकता और सांस्कृतिक मूल्यों का उत्सव है. इसकी उत्पत्ति राजा जीमूतवाहन की कथा से हुई है, जिन्होंने नागवंश को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया था. इस कार्य के कारण उन्हें पुत्रों की प्राप्ति हुई. इस त्यौहार के मूल में सुरक्षा और करुणा के भाव और भी प्रबल हो गए.
क्या है जीवित्पुत्रिका व्रत कथा (What is Jivitputrika Vrat Katha)
- जीवित्पुत्रिका व्रत कथा या जितिया व्रत कथा जीवित्पुत्रिका व्रत रखने वाली सभी माताएं सुनती हैं. जब कलियुग का आरंभ हुआ, तो माता अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित थीं.
- कलियुग के प्रभाव से अपने बच्चों को बचाने का उपाय जानने के लिए माताएं विद्वान और बुद्धिमान ऋषि गौतम के पास गईं. धर्मपरायण संत समाधान खोजने के लिए सहमत हुए और महाभारत काल की एक कथा सुनाई.
- 18 दिनों के महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद पांडव बहुत दुखी थे, क्योंकि उनके सभी पुत्र मारे गए थे. बच्चों की माता द्रौपदी अपने दुख दूर करने के उपाय के लिए धौम्य नामक एक विद्वान ब्राह्मण के पास गईं. बुद्धिमान धौम्य ने सतयुग में घटी एक घटना का उल्लेख किया.
दयालुता और परोपकार की कथा (Jivitputrika Vrat Katha)
सत्ययुग में जीमूतवाहन नामक एक प्रसिद्ध राजा रहते थे. राजा अपनी ईमानदारी और सुशासन के लिए प्रसिद्ध थे. वह अपनी प्रजा की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते थे.
एक बार जब राजा अपनी ससुराल में थे, तो उन्होंने एक वृद्ध महिला के रोने की आवाज सुनी. जीमूतवाहन शीघ्र ही उस वृद्ध महिला के पास गए और देखा कि वह इसलिए रो रही थी, क्योंकि उसके पुत्र को भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ ने मारकर खा लिया था. जीमूतवाहन ने वृद्ध महिला से वादा किया कि वह उसका पुत्र वापस लाएंगे.
जितिया व्रत कथा है राजा जीमूतवाहन की कथा (Raja Jimutavahana Katha)
शीघ्र ही जीमूतवाहन एक पर्वत पर गरुड़ के पास पहुंचे. राजा ने एक बड़े गड्ढे में मानव कंकाल पड़े देखे. ये हड्डियां उन सभी लोगों की थीं जिन्हें गरुड़ ने मारकर खा लिया था.
गरुड़ ने शीघ्र ही जीमूतवाहन को देखा और जानना चाहा कि वह वहां क्यों हैं? राजा ने मांग की कि वह बुढ़िया के पुत्र को लौटा दे और बदले में वह उसे खा सके. गरुड़ मान गए और जीमूतवाहन को खाने लगे. जल्द ही गरुड़ रुक गए और जानना चाहा कि वह एक साधारण व्यक्ति के लिए अपनी बलि क्यों दे रहे हैं. जीमूतवाहन ने उत्तर दिया कि एक मां के लिए कोई भी बच्चा साधारण नहीं होता. मैं अपनी बलि इसलिए दे रहा हूं, ताकि एक बूढ़ी मां को उसका इकलौता बच्चा वापस मिल जाए. कोई भी मां अपने बच्चे का नुकसान सहन नहीं कर सकती और बच्चे को खोने से बड़ा कोई दुख नहीं है.
स्वस्थ जीवन का वरदान मिलने की कथा
गरुड़ को जल्द ही एहसास हो गया कि उनके सामने खड़ा व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति नहीं था और वे उसकी पहचान जानना चाहते थे. जीमूतवाहन ने अपना परिचय दिया. गरुड़ से कहा कि वे उसे मारकर खा लें, ताकि बुढ़िया को उसका बेटा वापस मिल जाए. जल्द ही गरुड़ ने जीमूतवाहन को खाना बंद कर दिया और राजा की उदारता और सहानुभूति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया. वरदान के रूप में राजा ने उन सभी लोगों का जीवन मांगा जिन्हें गरुड़ ने मारकर खाया था. गरुड़ उन सभी लोगों को जीवित करने के लिए तैयार हो गए जिन्हें उन्होंने मारकर खाया था. वे अमृत लाए और गड्ढे में पड़े कंकालों पर छिड़का जिससे सभी लोग जीवित हो गए.
ऋषि गौतम ने सुनाया जीवित्पुत्रिका व्रत कथा (Jivitputrika Vrat Katha)
गरुड़ ने यह भी बताया कि जो माता आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन उपवास और कुशा से अनुष्ठान करती हैं, उनके बच्चे कभी नहीं खोते. द्रौपदी इस व्रत के बारे में जानकर प्रसन्न हुईं और उन्होंने इसे किया. जिन माताओं ने ऋषि गौतम से जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी, उन्होंने कलियुग में अपने बच्चों को सभी संकटों से बचाने के लिए इसे किया. माताएं आज भी अपने बच्चों के कल्याण के लिए इसे करती हैं.
यह भी पढ़ें :- Jitiya Vrat 2025 : बच्चे की दीर्घायु के लिए मांएं रखती हैं उपवास और नोनी साग का करती हैं पारण