चुनाव आते ही क्यों नेताओं की जुबान पर आता है जंगलराज
Authored By: सतीश झा
Published On: Friday, September 12, 2025
Last Updated On: Friday, September 12, 2025
बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025) के मद्देनजर अक्सर राजनीति में एक शब्द बार-बार सुनने को मिलता है – ‘जंगलराज’. यह शब्द नब्बे के दशक में राज्य की भयावह स्थिति का प्रतीक बन चुका है. उस दौर में अपराध, भ्रष्टाचार और अव्यवस्था ने आम जनजीवन को असुरक्षा और भय की गिरफ्त में डाल दिया था. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि ‘जंगलराज’ का शब्दावलम्बी उपयोग केवल अतीत की याद दिलाने तक सीमित नहीं, बल्कि यह वर्तमान सरकार की उपलब्धियों और विकास एजेंडे को उजागर करने का भी जरिया बन जाता है. बिहार के मतदाता अब भी बदलाव और सुधार की कहानियों पर ध्यान देते हैं, लेकिन चुनाव के मौसम में जंगलराज की चर्चा इस उम्मीद और डर दोनों को जागृत करती है.
Authored By: सतीश झा
Last Updated On: Friday, September 12, 2025
Jungle Raj in Bihar Politics: बिहार की राजनीति पर चर्चा हो और नब्बे का दशक याद न आए, यह संभव ही नहीं. आज के लाखों मतदाता उस दौर में पैदा भी नहीं हुए थे, फिर भी लालू (Lalu Prasad Yadav) राज के समय का जंगलराज (Jungleraj in Bihar) आज भी लोगों की स्मृतियों और चर्चाओं में जीवित है. सोशल मीडिया पर आए दिन उसी दौर से जुड़े वीडियो और मीम्स सामने आते हैं, जो उस कालखंड के भयावह माहौल की याद दिलाते हैं.
दरअसल, नब्बे के दशक का बिहार भ्रष्टाचार, अपराध और विकासहीनता का पर्याय बन चुका था. उद्योग-धंधे ठप, शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई हुई. अपराध-राजनीति के गठजोड़ ने निवेश की संभावनाओं को खत्म कर दिया. नालंदा और विक्रमशिला जैसी ऐतिहासिक धरोहर की भूमि शिक्षा के मामले में पिछड़ गई. हालात इतने बिगड़े कि पटना हाईकोर्ट (Patna Highcourt) तक को कहना पड़ा कि “बिहार में सरकार नाम की कोई चीज़ नहीं है, यहाँ जंगलराज कायम है.”
2005 का विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2005) इस अंधकारमय दौर से निकलने का मोड़ साबित हुआ. के. जे. राव की निगरानी में हुए निष्पक्ष चुनावों ने राजद (RJD) को सत्ता से बेदखल किया और एनडीए (NDA) सरकार ने सत्ता संभाली. इसके बाद कानून-व्यवस्था की बहाली, सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं में सुधार, तथा शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान देकर बिहार ने एक नई राह पकड़ी.
नोबेल विजेता लेखक वी. एस. नैपाल ने जिस बिहार को कभी “सभ्यता समाप्ति की भूमि” कहा था, वही बिहार अब विकास और परिवर्तन की मिसाल बन रहा है. पिछले दो दशकों में कानून-व्यवस्था की मजबूती, राष्ट्रीय राजमार्गों का विस्तार, 100% विद्युतीकरण और IIT, IIM, AIIMS जैसे संस्थानों की स्थापना ने राज्य की तस्वीर बदल डाली.
औद्योगिक क्षेत्र में भी राज्य ने उल्लेखनीय प्रगति की है. बिहटा का ड्राई पोर्ट बिहार को ग्लोबल सप्लाई चेन से जोड़ रहा है, मखाना बोर्ड की स्थापना ने निर्यात का नया द्वार खोला है. ऊर्जा क्षेत्र में हजारों करोड़ का निवेश हो चुका है. निवेशक सम्मेलन के जरिए राज्य में लाखों करोड़ रुपये के प्रस्ताव आए हैं, जिससे उद्योग और स्टार्टअप्स को नई ऊर्जा मिली है.
सरकार ने बिहार को “नॉर्थ इंडिया का औद्योगिक ग्रोथ इंजन” बनाने का विज़न रखा है. बजट, जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय में कई गुना वृद्धि इसका प्रमाण है. सामाजिक योजनाओं और आर्थिक सुधारों के साथ बिहार नई ऊँचाइयों की ओर अग्रसर है.
आज का बिहार अब भय और पलायन की भूमि नहीं, बल्कि अवसर और विकास का केंद्र बन रहा है. जंगलराज का काला अध्याय अब बीते समय की बात हो चुका है. राज्य की युवा पीढ़ी अब जॉब सीकर नहीं बल्कि जॉब गिवर बनने की दिशा में आगे बढ़ रही है. स्पष्ट है कि यदि यही विकास की गति बनी रही तो आने वाले वर्षों में बिहार न केवल अपनी पिछली छवि बदल देगा बल्कि देश के अग्रणी राज्यों की कतार में मजबूती से खड़ा होगा.
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