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एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में क्या है फर्क? जानिए कैसे होता है ये सर्वे का खेल
Authored By: Nishant Singh
Published On: Tuesday, November 11, 2025
Last Updated On: Tuesday, November 11, 2025
बिहार चुनाव 2025 अपने चरम पर है और अब सबकी निगाहें एग्जिट पोल के नतीजों पर टिकी हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में असली फर्क क्या होता है? एक जनता के इरादे को बताता है तो दूसरा उनके किए गए फैसले को उजागर करता है. जानिए, कैसे किया जाता है ये सर्वे और क्यों दोनों की सटीकता पर सवाल उठते हैं.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Tuesday, November 11, 2025
Exit Polls and Opinion Polls: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब अपने निर्णायक दौर में है. राज्य की 243 सीटों में से 121 सीटों पर पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को हो चुका है, जबकि बाकी 122 सीटों पर आज यानी 11 नवंबर को वोट डाले जा रहे हैं. अब सभी की निगाहें एग्जिट पोल के नतीजों पर टिकी हैं, जो मतदान खत्म होने के बाद शाम करीब 6:30 बजे तक सामने आ सकते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ये “एग्जिट पोल” और “ओपिनियन पोल” होते क्या हैं? और दोनों में फर्क क्या है? आइए जानते हैं सरल भाषा में पूरा सच.
ओपिनियन पोल क्या होता है?
ओपिनियन पोल यानी जनता का “मत” जानने की कोशिश, लेकिन मतदान से पहले! ये सर्वे चुनाव से कई हफ्ते या महीनों पहले किए जाते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि जनता किस पार्टी या नेता के पक्ष में सोच रही है. इन्हें आमतौर पर मीडिया हाउस, निजी सर्वे एजेंसियां, या विश्वविद्यालयों के रिसर्च ग्रुप करते हैं.
इन पोल में मतदाताओं से सवाल पूछे जाते हैं जैसे – “आप किस पार्टी को वोट देंगे?”, “आपकी पसंद का मुख्यमंत्री कौन है?”, “आपके लिए सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा क्या है?” इस सर्वे के लिए सैंपलिंग तकनीक अपनाई जाती है, यानी पूरे राज्य की जनता की जगह कुछ हजार लोगों से राय ली जाती है जो औसतन जनमत का प्रतिनिधित्व करती है.
- मकसद: चुनावी माहौल को समझना और जनता की सोच का अंदाज़ा लगाना.
- सीमा: ओपिनियन पोल 100% सटीक नहीं होते क्योंकि अंतिम समय में जनता का मूड बदल सकता है, या सर्वे का सैंपल पक्षपाती हो सकता है.
एग्जिट पोल क्या होता है?
एग्जिट पोल यानी “किसने किसे वोट दिया” – ये जानने की कोशिश मतदान के दिन ही की जाती है. जब मतदाता वोट डालकर बूथ से बाहर निकलते हैं, तब सर्वे एजेंसी उनसे गुप्त रूप से पूछती है कि उन्होंने किस पार्टी या प्रत्याशी को वोट दिया.
इससे विशेषज्ञ अनुमान लगाते हैं कि चुनाव परिणाम किस ओर जा सकता है. क्योंकि यह सर्वे वोटिंग के तुरंत बाद होता है, इसलिए इसे ओपिनियन पोल की तुलना में ज़्यादा सटीक माना जाता है.
- मकसद: परिणाम आने से पहले जनता के वास्तविक मतदान व्यवहार का अंदाजा लगाना.
- कानूनी नियम: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के नियमों के अनुसार, मतदान समाप्त होने से पहले किसी भी तरह का एग्जिट पोल प्रकाशित या प्रसारित नहीं किया जा सकता, ताकि बाकी बचे मतदाताओं पर इसका असर न पड़े.
कैसे किया जाता है ये सर्वे?
- सैंपल चयन: एजेंसियां हर जिले या क्षेत्र से तय संख्या में मतदाताओं का चयन करती हैं.
- गोपनीय सवाल: उनसे गुप्त रूप में पूछा जाता है कि उन्होंने किस पार्टी को वोट दिया.
- डेटा एनालिसिस: इस जानकारी को सॉफ्टवेयर और सांख्यिकीय मॉडल की मदद से विश्लेषित किया जाता है.
- नतीजों का अनुमान: प्राप्त डाटा के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि किस पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती हैं.
ये पूरा प्रोसेस गोपनीयता के साथ किया जाता है ताकि किसी मतदाता की पहचान उजागर न हो.
दोनों में क्या है बड़ा अंतर?
| पहलू | ओपिनियन पोल / एग्जिट पोल | विवरण |
|---|---|---|
| समय | चुनाव से पहले / मतदान के बाद | मतदान से पहले / मतदान के बाद |
| उद्देश्य | जनता के रुझान का अनुमान / वास्तविक मतदान के बाद परिणाम का अनुमान | जनता के मूड और परिणाम का अनुमान |
| विश्वसनीयता | सीमित / अपेक्षाकृत अधिक | जनता के मूड और मतदान की स्थिति पर निर्भर |
| नियम और प्रतिबंध | कोई विशेष प्रतिबंध नहीं / ECI की अनुमति के बाद ही प्रकाशित किया जा सकता है | निर्धारित नियमों और अनुमति पर आधारित |
निष्कर्ष
ओपिनियन पोल जनता के मन की “सोच” बताते हैं, जबकि एग्जिट पोल जनता के “निर्णय” की झलक. दोनों ही चुनावी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन इन पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता. क्योंकि आखिर में असली फैसला तो EVM की गूंजती बीप और मतगणना के दिन ही सामने आता है. बिहार चुनाव 2025 में अब सबकी निगाहें उसी पल पर हैं – जब 14 नवंबर को तय होगा कि जनता ने इस बार किसे “वोट की सत्ता” सौंपी है.
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