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आरक्षण मामले (Reservation Case) में बिहार की नीतीश सरकार को उच्चतम न्यायालय से लगा झटका
आरक्षण मामले (Reservation Case) में बिहार की नीतीश सरकार को उच्चतम न्यायालय से लगा झटका
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Published On: Monday, July 29, 2024
Updated On: Monday, July 29, 2024
बिहार में जातिगत सर्वेक्षण (Caste Survey) के बाद आरक्षण की सीमा बढ़ा दी गई थी। कुल 75 प्रतिशत सीट आरक्षण के दायरे में आ गया था। पटना उच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया था। अब उच्चतम न्यायालय ने पटना हाई कोर्ट के निर्णय पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है।
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Updated On: Monday, July 29, 2024
आज बिहार सरकार को उच्चतम न्यायालय से जोर का झटका धीरे से लगा है। दरअसल, जाति जनगणना के बाद बिहार सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ा दी थी। कोटा बढ़ाने के मामले में पटना उच्च न्यायालय से मुंह की खाने के बाद बिहार सरकार ने उच्चतम न्यायालय की ओर रुख किया लेकिन सरकार को फिलहाल यहां से भी राहत नहीं मिली है। अब इस मामले की सुनवाई सितंबर महीने में होगी।
जाति सर्वेक्षण (Caste Survey) के बाद कोटा में बढ़ोतरी
बिहार की नीतीश सरकार ने वर्ष 2022 में जाति आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी किया था। इस सर्वेक्षण रिपोर्ट के बाद सरकार ने आरक्षण कोटा विधानसभा से पास करवाकर बढ़ दिया। तब बिहार में नीतीश की नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार ने ओबीसी, ईबीसी, एससी और एसटी के लिए आरक्षण कोटा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया था। इसके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत कोटा भी निर्धारित किया गया। इस प्रकार बिहार में 75 प्रतिशत सीट आरक्षण के दायरे में आ गई थी। इसे कानूनी अमलीजामा पहनाने के लिए नवंबर 2023 में आरक्षण वृद्धि को बिहार विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया।
मामला पटना उच्च न्यायालय पहुंचा
तुरंत ही यह मामला पटना उच्च न्यायालय पहुंच गया। उच्च न्यायालय में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई। याचिका में आरक्षण वृद्धि को ‘रोजगार और शिक्षा के मामलों में नागरिकों के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन’ बताया गया। उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान आरक्षण बढ़ाने के खिलाफ तर्क दिया गया कि उच्चतम न्यायालय ने इंदिरा साहनी मामले में अपने फैसले में आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा तय की थी। राज्य का फैसला जातियों के अनुपात के आधार पर लिया गया था, न कि सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर।
उच्च न्यायालय ने आरक्षण वृद्धि को खारिज किया
20 जून को याचिका पर सुनवाई करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति हरीश कुमार की खंडपीठ ने आरक्षण बढ़ाने के लिए 2023 में बिहार विधानमंडल द्वारा पारित संशोधनों को ‘रद्द’ कर दिया। अपने फैसले में न्यायालय ने कहा कि यह संविधान के अधिकार का उल्लंघन करते है। साथ ही संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता का अधिकार का भी उल्लंघन है। न्यायालय ने बिहार सरकार से यह भी कहा कि कुल आरक्षण को 50 प्रतिशत की सीमा के भीतर रखने और इन लाभों से ‘क्रीमी लेयर’ को बाहर रखने पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।
उच्च न्यायालय से पहुंचा उच्चतम न्यायालय
उच्च न्यायालय से खारिज होने के बाद बिहार सरकार 2 जुलाई को उक्त फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंची। आज इस पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया। इस पर बिहार सरकार को नोटिस जारी करते हुए मामले की विस्तृत सुनवाई सितंबर में करने का निर्णय लिया है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने की। खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा थे।
कितना किया गया था आरक्षण
बिहार सरकार ने अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी) के लिए मौजूद आरक्षण 18 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया था। इसी तरह पिछड़े वर्गों की आरक्षण सीमा 12 से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया था। अनुसूचित जातियों (एससी) की आरक्षण 16 प्रतिशत से बढ़कर 20 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षण की सीमा एक से बढ़कर दो प्रतिशत कर दिया था।