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Bihar Politics: सिर्फ 5 दिन के लिए बने बिहार के पहले OBC मुख्यमंत्री, जानिए क्यों हुआ यह ऐतिहासिक फैसला
Authored By: Nishant Singh
Published On: Wednesday, October 22, 2025
Last Updated On: Wednesday, October 22, 2025
बिहार की राजनीति में पिछड़ा वर्ग की आवाज़ बुलंद करने का पहला मौका 28 जनवरी 1968 को आया, जब सतीश प्रसाद सिंह बिहार के पहले OBC मुख्यमंत्री बने. हालांकि उनका कार्यकाल सिर्फ 5 दिनों का था, लेकिन इस छोटे से समय ने राज्य की सियासत में बड़े बदलाव की राह खोल दी. अगड़ी जातियों के लंबे प्रभुत्व को चुनौती देते हुए, एसपी सिंह ने पिछड़े वर्ग के लिए राजनीतिक पहचान की नींव रखी.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Wednesday, October 22, 2025
Bihar Politics: बिहार की राजनीति में पिछड़ा वर्ग की आवाज़ बुलंद करने का श्रेय अक्सर कर्पूरी ठाकुर को दिया जाता है, लेकिन असल में यह कहानी शुरू होती है सतीश प्रसाद सिंह से. बिहार के पहले ओबीसी मुख्यमंत्री बनने का गौरव उन्हीं को प्राप्त है. 28 जनवरी 1968 को इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई यह घटना बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव लेकर आई. भूमि-प्रधान, राजपूत या अन्य अगड़ी जातियों के लंबे समय तक राज्य पर काबिज रहने के बाद सत्ता पहली बार कोइरी समाज के एसपी सिंह के हाथ में आई. हालांकि उनका कार्यकाल सिर्फ 5 दिनों का था, लेकिन यह छोटे से समय ने बिहार की सियासत में लंबे समय तक असर डाला.
जन्म और शुरूआती जीवन: बागी तेवरों वाला नेता
सतीश प्रसाद सिंह का जन्म 1 जनवरी 1936 को खगड़िया जिले के एक जमींदार परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी पढ़ाई मुंगेर के डी.जे. कॉलेज से पूरी की. बचपन से ही उनके तेवर अलग थे. पारंपरिक समाज की बंदिशों को तोड़ते हुए उन्होंने इंटरकास्ट प्रेम विवाह किया. सियासी जीवन से दूर होने के बाद उन्होंने जोगी और जवानी नाम की फिल्म बनाई, जिसमें खुद अभिनय भी किया. समाजवादी विचारधारा में विश्वास रखने वाले एसपी सिंह शुरू से ही बदलाव और न्याय के पक्षधर थे.
एक्सीडेंटल नहीं, सुनियोजित रणनीति
सतीश प्रसाद सिंह को सिर्फ पांच दिन के लिए मुख्यमंत्री बनाना कोई आकस्मिक घटना नहीं थी. यह कदम पिछड़ा वर्ग को मजबूत राजनीतिक पहचान दिलाने और अगड़ी जातियों के प्रभुत्व को चुनौती देने की रणनीति का हिस्सा था. उस वक्त बिहार की राजनीति में एक साल पहले यानी मार्च 1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने और कर्पूरी ठाकुर उपमुख्यमंत्री. गैर-कांग्रेसी गठबंधन में सत्ता साझा करने की तैयारी के दौरान सतीश प्रसाद सिंह को यह विशेष स्थान दिया गया.
बीपी मंडल की राह खोलने वाला कदम
दरअसल, सतीश प्रसाद सिंह के 5 दिनों के मुख्यमंत्री बनने का मुख्य उद्देश्य बीपी मंडल को सीएम बनाना था. बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल उस समय लोकसभा सदस्य थे, लेकिन राज्य सरकार में मंत्री बनने के लिए उन्हें पद छोड़ना पड़ा. एसपी सिंह के कार्यकाल ने बीपी मंडल के लिए रास्ता साफ किया. यही वजह थी कि बिहार में पहली बार जोड़-तोड़ की राजनीति ने आकार लिया.
शोषित दल और राजनीतिक उलटफेर
संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के असंतुष्ट नेता बीपी मंडल और जगदेव प्रसाद ने एसपी सिंह के नेतृत्व में शोषित दल की स्थापना की. इस दौरान केबी सहाय और अन्य कांग्रेस नेता भी संविद सरकार को गिराने में शामिल हुए. पत्रकार संतोष सिंह की किताब ‘द जननायक’ के अनुसार, इस पूरे खेल का मकसद था अगड़ी जाति की सत्ता परंपरा को तोड़ना और पिछड़े वर्ग को सियासी पहचान दिलाना.
पांच दिन का शासन और इस्तीफा
28 जनवरी 1968 से 1 फरवरी 1968 तक सतीश प्रसाद सिंह बिहार के मुख्यमंत्री रहे. इस छोटे से कार्यकाल में उन्होंने सत्ता परिवर्तन की दिशा तय की. 1 फरवरी को बीपी मंडल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. चूंकि बीपी मंडल उस समय किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे, इसलिए उन्हें विधान परिषद में मनोनीत होना पड़ा. आपसी सहमति से एसपी सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और बिहार की पहली पिछड़ा वर्ग की नेतृत्व वाली सरकार का मार्ग प्रशस्त किया.
राजनीतिक विरासत
भले ही सतीश प्रसाद सिंह केवल 5 दिनों के लिए मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उनके नेतृत्व ने बिहार की राजनीति में पिछड़े वर्ग की भागीदारी और समाजवादी आंदोलनों को मजबूती दी. यह घटना भविष्य में बिहार की सियासत में बड़े बदलाव की नींव साबित हुई और आने वाले नेताओं जैसे बीपी मंडल और कर्पूरी ठाकुर की राह आसान हुई.
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